अद्भुत, अद्धितीय, अनुपम, अनोखा, अप्रतिम, अनोखा, विलक्षण, देवताओं का प्रिय और उत्तराखंड का राज्य पुष्प। अगर आप 'ब्रह्म कमल' की तारीफ में कुछ लिखना चाहेंगे तो विशेषण कम पड़ जाएंगे। एक ऐसा पुष्प जो साल में केवल एक बार खिलता है। एक ऐसा पुष्प जो अपनी विरादरी के अन्य फूलों से विपरीत सूर्यास्त के बाद खिलकर अपने सौंदर्य और सुगंध से पूरे वातावरण को मदहोश कर देता है। एक बेहद दुर्लभ पुष्प जो देवताओं को भी प्रिय है। हिमालय में फूलों का राजा क्योंकि भारत में इसकी जो 61 प्रजातियां पायी जाती हैं उनमें से अकेली 58 हिमालय में मिलती हैं। हिमालय के अलावा यह फूल उत्तरी म्यांमा और दक्षिण पश्चिम चीन में भी पाया जाता है। उत्तराखंड में यह फूल कई स्थानों पर पाया जाता है लेकिन फूलों की घाटी, केदारनाथ, हेमकुंड, रूपकुंड, पिंडारी, चिफला आदि जगहों पर आप आसानी से इस दिव्य फूल के दर्शन कर सकते हैं।
एक और महत्वपूर्ण बात यह है कि भले ही यह कमल की तरह दिखता है लेकिन पानी में नहीं बल्कि जमीन पर उगता है। अमूमन ब्रह्म कमल 3000 से 5000 मीटर की ऊंचाई पर मिलता है। इसे कई अन्य नामों से भी जाना जाता है जैसे कि हिमालच प्रदेश में दूधाफूल, कश्मीर में गलगल, श्रीलंका में कदुफूल और जापान में गेक्का विजिन जिसका शाब्दिक अर्थ है चांदनी रात की खूबसूरत स्त्री। चीन में इसे तानहुआयिझियान कहते हैं जिसका अर्थ है प्रभावशाली लेकिन कम समय तक ख्याति रखने वाला। इसका वानस्पति नाम साउसुरिया ओबुवालाटा है। वैसे कुछ लोग दावा करते हैं कि आर्किड कैक्टस प्रजाति का फूल जिसका वानस्पतिक नाम इपिफीलम ओक्सीपेटालम है, वह असल में ब्रह्म कमल है। ये सभी ब्रह्म कमल की ही प्रजातियां हैं जो रात में खिलती हैं और इस तरह के फूल को आप घरों में भी उगा सकते हैं लेकिन उत्तराखंड का जो ब्रह्म कमल है वह साउसुरिया ओबवालाटा है। यह फूल बरसात के दिनों में जुलाई से लेकर सितंबर अक्तूबर तक ही खिलता है।
एक और महत्वपूर्ण बात यह है कि भले ही यह कमल की तरह दिखता है लेकिन पानी में नहीं बल्कि जमीन पर उगता है। अमूमन ब्रह्म कमल 3000 से 5000 मीटर की ऊंचाई पर मिलता है। इसे कई अन्य नामों से भी जाना जाता है जैसे कि हिमालच प्रदेश में दूधाफूल, कश्मीर में गलगल, श्रीलंका में कदुफूल और जापान में गेक्का विजिन जिसका शाब्दिक अर्थ है चांदनी रात की खूबसूरत स्त्री। चीन में इसे तानहुआयिझियान कहते हैं जिसका अर्थ है प्रभावशाली लेकिन कम समय तक ख्याति रखने वाला। इसका वानस्पति नाम साउसुरिया ओबुवालाटा है। वैसे कुछ लोग दावा करते हैं कि आर्किड कैक्टस प्रजाति का फूल जिसका वानस्पतिक नाम इपिफीलम ओक्सीपेटालम है, वह असल में ब्रह्म कमल है। ये सभी ब्रह्म कमल की ही प्रजातियां हैं जो रात में खिलती हैं और इस तरह के फूल को आप घरों में भी उगा सकते हैं लेकिन उत्तराखंड का जो ब्रह्म कमल है वह साउसुरिया ओबवालाटा है। यह फूल बरसात के दिनों में जुलाई से लेकर सितंबर अक्तूबर तक ही खिलता है।
ब्रहमा का सृजन है ब्रह्म कमल
ब्रह्म कमल से जुड़ी कई धार्मिक मान्यताएं और गाथाएं हैं। माना जाता है कि इसका सृजन स्वयं ब्रहमा ने किया था। इसके पीछे भी एक पौराणिक कहानी है। कहा जाता है कि माता पार्वती ने जब गणेश का सृजन किया तो तब भगवान शिव बाहर गये हुए थे। माता पार्वती स्नान कर रही थी और उन्होंने गणेश को घर के बाहर खड़ा करके आदेश दिया कि वह किसी को भी अंदर नहीं आने दें। तभी भगवान शिव पधार गये। गणेश ने उन्हें अंदर नहीं जाने दिया और क्रोध में शिव ने उनका सिर धड़ से अलग कर दिया। माता पार्वती के आने के बाद उन्हें असलियत का पता चला। माता पार्वती के आग्रह पर ब्रहमा ने ब्रह्म कमल का सृजन किया जिसकी मदद से हाथी का सिर गणेश के धड़ पर जोड़ा गया। ब्रह्मा अपने चार हाथों में से एक हाथ में सफेद पुष्प लिये हुए हैं। यह ब्रहम कमल ही है। यह भी कहा जाता है कि जब भगवान विष्णु हिमालय क्षेत्र में आये थे तो उन्होंने भगवान शिव को 1000 ब्रह्म कमल चढ़ाये थे।
पृथ्वी पर ब्रह्म कमल के आगमन से भी एक कहानी जुड़ी है। भगवान राम और रावण की सेना के बीच युद्ध चल रहा था। इस युद्ध में एक बार लक्ष्मण मूर्छित हो गये थे। हनुमान हिमालय पर्वत से संजीवनी लेकर गये और लक्ष्मण को होश आ गया। इससे भगवान राम के साथ देवता भी खुश हो गये। उन्होंने आकाश से पुष्प वर्षा की। यह कोई और पुष्प नहीं बल्कि ब्रह्म कमल था। इस दौरान ये पुष्प फूलों की घाटी पर भी पड़ा जहां इसने अपनी जड़े जमा दी और फिर यह हिमालय में यत्र तत्र फैल गया।
भीम और हनुमान के मिलन से भी ब्रह्म कमल का जोड़ा जाता है। महाभारत से पहले जब पांडव वनों में अपने दिन गुजार रहे थे तब हिमालय प्रवास के दौरान एक दिन द्रौपदी इसकी सुंगध से मदहोश हो गयी और उन्होंने भीम को यह पुष्प लाने के लिये कहा। भीम पुष्प की खोज में निकल पड़े। रास्ते में उन्हें अपनी पूंछ फैलाये हनुमान मिले। भीम ने कड़े शब्दों में रास्ते से हट जाने को कहा। हनुमान ने भीम को अपनी शक्ति का परिचय दिया और जब भीम को अपनी गलती का अहसास हुआ तो उन्हें बताया कि ब्रह्म कमल बद्रीनाथ में मिलेगा।
ब्रह्म कमल साल में एक बार और वह भी रात में चंद घंटों के लिये खिलता है। कहा जाता है कि जो भी व्यक्ति इसे खिलता हुआ देखता है उसकी मनोकामना पूरी होती है। कहने का मतलब है कि ब्रह्म कमल को खिलता हुआ देखना बेहद पुण्य माना जाता है। बद्रीनाथ और केदारनाथ सहित उत्तराखंड के कई मंदिरों में इस फूल को चढ़ाने का बड़ा महत्व माना जाता है। इससे ब्रह्म कमल के अस्तित्व पर भी खतरा मंडरा रहा है क्योंकि चढ़ावे के लिये इसका बद्रीनाथ और केदारनाथ क्षेत्र में अंधाधुंध दोहन किया जाता है। हेमकुंड साहिब में इसका दोहन हो रहा है। पर्यावरण में आ रहे बदलावों का भी इस पुष्प पर विपरीत प्रभाव पड़ रहा है। ब्रह्म कमल मां नंदादेवी का भी प्रिय पुष्प है। नंदाष्टमी के समय इसे तोड़ा जाता है लेकिन इसमें भी नियमों का पालन करना पड़ता है। पिथौरागढ़ में 35 किमी के दुर्गम रास्ते से होकर 17000 फीट की उंचाई पर स्थित हीरामणि कुंड से ब्रह्म कमल लाकर मां नंदा को अर्पित किया जाता है। यहां ब्रह्मकमल हर तीसरे साल नंदादेवी पर्वत शृंखला से लाया जाता है। नंदा अष्टमी के दिन देवताओं पर चढ़ाये गये ब्रह्म कमल के फूलों को प्रसाद के रूप में भी बांटा जाता है।
पृथ्वी पर ब्रह्म कमल के आगमन से भी एक कहानी जुड़ी है। भगवान राम और रावण की सेना के बीच युद्ध चल रहा था। इस युद्ध में एक बार लक्ष्मण मूर्छित हो गये थे। हनुमान हिमालय पर्वत से संजीवनी लेकर गये और लक्ष्मण को होश आ गया। इससे भगवान राम के साथ देवता भी खुश हो गये। उन्होंने आकाश से पुष्प वर्षा की। यह कोई और पुष्प नहीं बल्कि ब्रह्म कमल था। इस दौरान ये पुष्प फूलों की घाटी पर भी पड़ा जहां इसने अपनी जड़े जमा दी और फिर यह हिमालय में यत्र तत्र फैल गया।
भीम और हनुमान के मिलन से भी ब्रह्म कमल का जोड़ा जाता है। महाभारत से पहले जब पांडव वनों में अपने दिन गुजार रहे थे तब हिमालय प्रवास के दौरान एक दिन द्रौपदी इसकी सुंगध से मदहोश हो गयी और उन्होंने भीम को यह पुष्प लाने के लिये कहा। भीम पुष्प की खोज में निकल पड़े। रास्ते में उन्हें अपनी पूंछ फैलाये हनुमान मिले। भीम ने कड़े शब्दों में रास्ते से हट जाने को कहा। हनुमान ने भीम को अपनी शक्ति का परिचय दिया और जब भीम को अपनी गलती का अहसास हुआ तो उन्हें बताया कि ब्रह्म कमल बद्रीनाथ में मिलेगा।
ब्रह्म कमल साल में एक बार और वह भी रात में चंद घंटों के लिये खिलता है। कहा जाता है कि जो भी व्यक्ति इसे खिलता हुआ देखता है उसकी मनोकामना पूरी होती है। कहने का मतलब है कि ब्रह्म कमल को खिलता हुआ देखना बेहद पुण्य माना जाता है। बद्रीनाथ और केदारनाथ सहित उत्तराखंड के कई मंदिरों में इस फूल को चढ़ाने का बड़ा महत्व माना जाता है। इससे ब्रह्म कमल के अस्तित्व पर भी खतरा मंडरा रहा है क्योंकि चढ़ावे के लिये इसका बद्रीनाथ और केदारनाथ क्षेत्र में अंधाधुंध दोहन किया जाता है। हेमकुंड साहिब में इसका दोहन हो रहा है। पर्यावरण में आ रहे बदलावों का भी इस पुष्प पर विपरीत प्रभाव पड़ रहा है। ब्रह्म कमल मां नंदादेवी का भी प्रिय पुष्प है। नंदाष्टमी के समय इसे तोड़ा जाता है लेकिन इसमें भी नियमों का पालन करना पड़ता है। पिथौरागढ़ में 35 किमी के दुर्गम रास्ते से होकर 17000 फीट की उंचाई पर स्थित हीरामणि कुंड से ब्रह्म कमल लाकर मां नंदा को अर्पित किया जाता है। यहां ब्रह्मकमल हर तीसरे साल नंदादेवी पर्वत शृंखला से लाया जाता है। नंदा अष्टमी के दिन देवताओं पर चढ़ाये गये ब्रह्म कमल के फूलों को प्रसाद के रूप में भी बांटा जाता है।
औषधीय गुण भी हैं ब्रह्म कमल में
ब्रह्म कमल औषधीय गुणों से भी भरपूर है। इसके अंदर से निकलने वाले पानी को अमृत कहा जाता है क्योंकि इसके सेवन से व्यक्ति एकदम से स्पूर्त हो जाता है और उसकी थकान मिट जाती है। ब्रह्म कमल के फूलों की राख को शहद के साथ मिलाकर खाने से यकृत की वृद्धि रोकने में मदद मिलती है। इसे मिर्गी के दौरे रोकने में भी सहायक माना जाता है और घाव भरने में भी इससे मदद मिलती है। इसे जीवाणुरोधी माना जाता है और इसका इस्तेमाल सर्दी-ज़ुकाम, हड्डी के दर्द आदि में भी किया जाता है। लोग इसके कपड़ों के बीच डालकर रखते हैं। इसकी मदहोश करने वाली सुगंध से कपड़े महकते रहते हैं और उन पर कीड़े भी नहीं लगते। मूत्र संबंधी रोगों में भी इसका उपयोग किया जाता है। भोटिया जनजाति के लोग तो इसे अपने घरों में लटकाकर रखते हैं क्योंकि उनका मानना है कि यह बीमारियों को आने से रोकता है। वियतनामी लोग इसका सूप बनाकर टानिक के रूप में पीते हैं। तिब्बती लोग इसका उपयोग लकवा और दिमागी रोगों के लिये करते हैं। यह जलोदर (एक रोग जिसमें पेट में पानी जमा हो जाता है) को दूर करने में भी उपयोगी है।
घर में उगाईये ब्रह्म कमल
ब्रह्म कमल की कुछ प्रजातियों को आप घर में भी उगा सकते हैं। इसकी पत्ती को तने सहित काटकर पानी में डुबोकर रखा जाता है। लगभग तीन सप्ताह में इसमें जड़ें आ जाती हैं जिसे किसी गमले में मिट्टी डालकर लगाया जा सकता है। इसका तना काटकर मिट्टी में रोपने पर भी नये पौधा तैयार हो जाता है। असल में इपिफीलम ओक्सीपेटालम श्रेणी के पौधे को उगाना आसान होता है जो हिमालय के अलावा देश के कई अन्य हिस्सों में भी पाया जाता है।
ब्रह्म कमल का संरक्षण हालांकि जरूरी है। आप इसे देवताओं को अर्पित करिये लेकिन इसकी सीमा तय होनी चाहिए। अगर इसको बचाये रखने के प्रयास नहीं किये गये तो उत्तराखंड का राज्य पुष्प विलुप्त होने की कगार पर पहुंच सकता है। तब आप इसे देवकोप कहेंगे लेकिन उससे बचाव के उपाय अभी से शुरू कर देने चाहिए। आपका धर्मेन्द्र पंत
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ब्रह्म कमल का संरक्षण हालांकि जरूरी है। आप इसे देवताओं को अर्पित करिये लेकिन इसकी सीमा तय होनी चाहिए। अगर इसको बचाये रखने के प्रयास नहीं किये गये तो उत्तराखंड का राज्य पुष्प विलुप्त होने की कगार पर पहुंच सकता है। तब आप इसे देवकोप कहेंगे लेकिन उससे बचाव के उपाय अभी से शुरू कर देने चाहिए। आपका धर्मेन्द्र पंत
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ब्रह्म कमल की बारे में बहुत अच्छी ज्ञानवर्धक जानकारी प्रस्तुति हेतु धन्यवाद!
जवाब देंहटाएंनव वर्ष की हार्दिक शुभकामनायें!
आपका दिल से शुक्रिया दीदी। आपको भी नववर्ष की शुभकामनाएं।
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