माणा को आखिरी गांव इसलिए कहा जाता है क्योंकि इसके बाद चीन सीमा तक कोई रिहायशी इलाका नहीं है। |
भारत के आखिरी गांव 'माणा' के बारे
में बचपन से सुनता आया हूं। उसकी एक काल्पनिक तस्वीर भी मन में बना ली थी लेकिन इस
बार उस गांव को देखने और समझने का मौका मिल ही गया जिसका सीधा संबंध महाभारत से जोड़ा
जाता है। 'भारत का आखिरी गांव' से ऐसा आभास
होता है जैसे कि इस गांव के तुरंत बाद ही पड़ोसी देश यानि चीन की सीमा लग जाएगी लेकिन
वास्तव में ऐसा नहीं है। माणा से चीन या तिब्बत की सीमा लगभग 43 किमी दूर है लेकिन
यह भी सचाई है कि यह भारत का इस क्षेत्र में आखिरी गांव है। इसके बाद चीन की सीमा तक
कोई भी रिहायशी इलाका नहीं है, क्योंकि आगे पहाड़ बेहद दुर्गम
हैं जहां के बारे में कहा जाता है कि केवल कुछ साधुओं को ही यहां धुनी रमाये हुए देखा
गया।
माणा गांव राष्ट्रीय राजमार्ग 58 पर हिन्दुओं के तीर्थस्थल बद्रीनाथ से केवल
तीन किलोमीटर की दूरी और 3118 मीटर की ऊंचाई पर स्थित है। बद्रीनाथ की यात्रा पर जाने वाले जिस भी तीर्थ यात्री
को माणा का महत्व पता है वह इस गांव में जरूर जाता है। ऐसे में यह पर्यटन के लिहाज
से भी महत्वपूर्ण स्थान बन गया है। बद्रीनाथ की तरह माणा भी छह महीने तक बर्फ से ढका
रहता है। यह कह सकते हैं कि अक्तूबर . नवंबर से मार्च तक माणा गांव जनशून्य हो जाता
है और यहां केवल सेना के जवान ही दिखायी देते हैं। इस दौरान माणा गांव के लोग पांडुकेश्वर,
जोशीमठ, चमोली और गोपेश्वर आदि को अपना ठिकाना
बना लेते हैं। अप्रैल से लेकर सितंबर तक हालांकि यहां अच्छी चहल पहल रहती है। विशेषकर
मई और जून माणा गांव जाने के लिये आदर्श समय है क्योंकि बरसात में बद्रीनाथ मार्ग के
टूटने या भूस्खलन के कारण उसके बंद होने की संभावना बनी रहती है। मैंने एक स्थानीय निवासी से पूछा कि छह महीने माणा
और छह महीने अन्य स्थानों पर बिताने से बच्चों की पढ़ाई पर असर नहीं पड़ता तो उनका
जवाब था, 'बच्चे छह महीने यहां और छह महीने पांडुकेश्वर में पढ़ते
हैं। ऐसा वर्षों से चला आ रहा है।' पांडुकेश्वर जोशीमठ और बद्रीनाथ
के बीच में पड़ता है।
गांव के मकान और रास्ते में दुकान सजाकर ऊनी वस्त्र बेचती महिलाएं |
माणा में
मर्छिया या भोटिया जनजाति के लोग रहते हैं जो मंगोल प्रजाति से संबंध रखते हैं। गर्म
कपड़े तैयार करना, तुलसी से बनी स्थानीय चाय और दाल में पड़ने
वाला खासा मसाला 'फरण' बेचना इन लोगों का
मुख्य व्यवसाय है। माणा गांव में प्रवेश करते ही आपको बुनाई करती हुई महिलाएं दिख जाएंगी।
वे स्वेटर, टोपी, मफलर, स्कार्फ, कारपेट, आसन, पाखी, पंखी, पट्टू आदि बड़ी कुशलता
से बना लेती हैं। इन कपड़ों और अन्य सामान को बेचने के काम में भी महिलाओं की भूमिका
अहम होती है। गर्मियों में यहां आलू की खेती भी की जाती है। पहले यहां के लोग तिब्बत
के साथ व्यापार भी करते थे। यहां के घर भी पहाड़ों के अन्य गांवों के घरों की तरह मिट्टी,
पत्थरों और टिन के बने हुए हैं। छोटे से घर जिनमें छह महीने ताला लगा
रहता है। अब कुछ 'लेंटर वाले मकान' भी बनने
लग गये हैं। इस तरह के यहां लगभग 150 घर होंगे। इनमें से प्रत्येक घर में अमूमन दो
कमरे होते हैं जिनमें जरूरत पड़ने पर पर्यटकों को भी ठहराया जाता है। इन कमरों का एक
दिन का किराया 500 से 1000 रूपये तक है। माणा गांव की कुल जनसंख्या लगभग 600 है। यहां के लोग तोल्छा भाषा बोलते हैं जो गढ़वाली के बहुत करीब है। इसलिए यह आसानी से समझ में आ जाती है। मुझे
इससे आत्मीयता का अहसास भी हुआ, क्योंकि किसी मोड़ पर कोई न कोई
यह जरूर पूछ लेता कि 'आप कौन से गांव के हो।'
माणा और महाभारत
कहा जाता है कि इसी गुफा में महाभारत की रचना की थी व्यास ने |
माणा महाभारत काल का गांव है। इसलिए कहा जा सकता है कि यह उत्तराखंड के सबसे
प्राचीन गांवों में से एक है। कहा जाता है कि वेदव्यास ने माणा गांव में ही महाभारत
की रचना की थी और पांडव स्वर्गारोहिणी इसी गांव से होकर गये थे। इन दोनों घटनाओं के
कुछ चिन्ह अब भी यहां विद्यमान हैं। माणा गांव में व्यास गुफा और गणेश गुफा है। पौराणिक
कथाओं के अनुसार व्यास ने इसी गुफा में महाभारत का सृजन किया था। व्यास के आग्रह पर
भगवान ब्रह्मा ने गणेश जी को महाभारत लिखने का काम सौंपा था। कहा जाता है कि तब गणेश
ने व्यास के सामने शर्त रखी थी कि उन्हें बीच में रूकना नहीं होगा और लगातार बोलते
रहना होगा। व्यास ने भी गणेश से कहा कि वह जो भी कहेंगे उसका अर्थ समझने के बाद ही
उन्हें उसे लिखना होगा। इससे व्यास को समय मिल जाता था। यह भी कहा जाता है कि लगातार
लिखते रहने से गणेश की कलम टूट गयी थी और उन्होंने तब अपनी सूंड का उपयोग कलम के रूप
में किया था। व्यास गुफा लगभग सात वर्ग फीट की होगी जहां पर व्यास ने कई महीने बिताये
थे। इससे थोड़ी दूर नीचे गणेश गुफा है जहां पर गणेश जी ने बैठकर महाभारत लिखी थी। माना
जाता है कि ये गुफाएं 5000 से भी अधिक साल पुरानी हैं।
माणा गांव से
थोड़ी दूर पर सरस्वती नदी है। इस नदी पर पत्थर से बना पुल है। इसे भीमपुल कहते हैं।
इसके बारे में कहा जाता है कि जब पांडव स्वर्गारोहिणी के लिये आगे बढ़ रहे थे तो द्रौपदी
सरस्वती नदी को पार नहीं कर पायी। पांडवों ने इसके बाद सरस्वती से रास्ता देने का आग्रह
किया लेकिन सरस्वती नहीं मानी। पांडवों में सबसे बलशाली भीम ने तब दो बड़े पत्थर लुढकाकर
पुल बना दिया। भीम ने तब अपनी गदा जोर से सरस्वती नदी पर मारी थी जिससे यह विलुप्त
हो गयी। यह नदी थोड़ा आगे बढ़कर अलकनंदा में मिलती है लेकिन ऐसा आभास होता है जैसे
कि यह विलुप्त हो रही हो। इसके विलुप्त होने के पीछे एक और कहानी भी है। गणेश जब महाभारत लिख रहे थे तो सरस्वती
बड़ा शोर करते हुए बह रही थी। गणेश ने उससे शोर कम करने को कहा लेकिन सरस्वती नहीं
मानी। इससे क्रोधित होकर गणेश ने सरस्वती को विलुप्त होने का श्राप दे दिया था। इस
तरह से यह नदी अपने उदगम से कुछ मीटर बहने के बाद ही विलुप्त हो जाती है लेकिन आज भी
भीमपुल के पास वह पूरी गर्जना के साथ बहती है। कहा जाता है कि यह नदी आगे जाकर प्रयाग
में गंगा और यमुना से मिलती है लेकिन वहां पर भी यह दिखती नहीं है। भीमपुल में संभलकर
चलें तो बेहतर है क्योंकि इस पुल से नीचे गिरने का मतलब जान से हाथ धोना है। यहां पर
अब भी सुरक्षा के पर्याप्त उपाय नहीं किये गये हैं।
उदगम स्थल से कुछ दूरी पर जाकर विलुप्त भी हो जाती है सरस्वती नदी |
सरस्वती नदी के तट पर ही सरस्वती का मंदिर और दो दुकाने हैं। इन पर लगे बोर्ड पर
बड़े बड़े अक्षरों में लिखा भी गया है, 'हिन्दुस्तान की अंतिम दुकान'। यहां से आप सरस्वती नदी का पानी भी अपने
साथ लेकर जा सकते हैं। नदी के दूसरे छोर यानि माणा गांव वाले छोर पर 'बर्फानी बाबा' भी बैठते हैं। पूरी तरह से राख से सने
बाबा की फोटो लेने में पहले मुझे हिचकिचाहट हुई लेकिन बाद में उन्होंने छोटे बेटे प्रदुल
को न सिर्फ आशीर्वाद दिया बल्कि उसके साथ फोटो भी खिंचवाई।
पांडव स्वर्गारोहण के लिये जब सरस्वती नदी से आगे बढ़े तो उन्होंने एक एक करके
देहत्याग करनी शुरू कर दी थी। सबसे पहले द्रौपदी ने देह त्याग की थी। केवल युद्धिष्ठर
और उनके साथ एक कुत्ता ही सशरीर स्वर्ग गये थे। यह कुत्ता कोई और नहीं बल्कि धर्म था।
पांडव शरीर छोड़ने से पहले जिस आखिरी स्थल पर रूके थे वह वसुधारा है। माणा से लगभग छह किमी
दूर इस जगह पर पांडवों ने स्नान किया था। कहा जाता है कि जिसने पाप किये हों उस पर
इसका पानी नहीं पड़ता है। यहां पर विष्णु गंगा या अलकनंदा 122 मीटर की ऊंचाई से नीचे
गिरती है। बसुधारा का पानी भी गंगाजल की तरह लोग अपने घरों में रखते हैं। माणा से लगभग
18 किमी की दूरी पर सतोपंथ ताल भी है। कहा जाता है कि यहां किसी पवित्र दिन पर ब्रह्मा, विष्णु और महेश स्नान करते हैं। यहां से नीलकंठ पर्वत भी देखा जा सकता है।
बसुधारा और सतोपंथ ताल के बीच लक्ष्मीवन पड़ता है जिसने धानो ग्लेसियर के नाम से भी
जाना जाता है।
माणा के अन्य आकर्षण : भारत की आखिरी दुकान और बाबा बर्फानी का आशीर्वाद |
कैसे और कब जाएं माणा
बद्रीनाथ और माणा गांव का रास्ता एक ही है। कोटद्वार से सतपुली और पौड़ी होते हुए
श्रीनगर या फिर हरिद्वार, रिषिकेश या देहरादून से देवप्रयाग होते हुए श्रीनगर पहुंचकर आगे का रास्ता तय होता
है। श्रीनगर से आगे रूदप्रयाग, गौचर, कर्णप्रयाग, चमोली, पीपलकोटी और जोशीमठ रास्ते में पड़ते हैं। जोशीमठ से माणा गांव लगभग 46 किमी की
दूरी पर है। अप्रैल से सितंबर के महीनों में ही माणा जाया जा सकता है। माणा गांव जाने
के लिये बद्रीनाथ में रूकना बेहतर होता है जहां ठहरने और खाने पीने की अच्छी व्यवस्था
है।
(Photo by .. Dharmendra and Pranjal Pant)
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धर्मेन्द्र पंत
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Aapke post gyaanvardhak hote hae aabhar
जवाब देंहटाएंBeautiful thanks for updating us
जवाब देंहटाएंNice article Pant Ji, keep it up, God Bless You
जवाब देंहटाएंThanx Anoop Bhai. उम्मीद है कि आप घसेरी के साथ भविष्य में भी बने रहेंगे।
हटाएंअत्यंत सुंदर व्याख्या माणा गाँव के इतिहास की। घसेरी को ऐसे स्थानों के टूरिज्म को बढ़ावा देने के लिए अन्य जानकारियां भी देनी चाहिये। जैसे वहाँ का तापमान, रहने, खाने, नहाने धोने का प्रबंध घूमने के लिए रमणीक स्थल, लोक संस्कृति क मेले ( अगर लगते हों तो ) स्थानीय उत्पादों की किस्में और उनके मूल्य। पर्यटक परिवारों की महिलाओं और बच्चों के मनोरंजन के साधन, अकेले घुमन्तुओं के लिए आकर्षण के स्थान और गतिविधियां. , बैंक, डाकघर, फोन की सुविधाएँ इत्यादि।
जवाब देंहटाएंआशा है की आगे आपकी घसेरी उत्तराखंड में पर्यटन को गढ़वाल के कोने कोने तक ले जाने में सहायक होगी।
आपका एक शुभचिंतक।
धन्यवाद भैजी। आपके उत्साहजनक और प्रेरणादायी शब्द निश्चित रूप से मुझ में ओज भरते हैं। भविष्य में ऐसी जगहों के बारे में जानकारी देते समय आपके सुझावों पर अवश्य गौर करूंगा। उम्मीद है कि आप भी घसेरी में अपना योगदान देंगे।
हटाएंआपका छोटा भाई
BAHUT SUNDAR
जवाब देंहटाएंभारत के आखिरी गांव 'माणा' के बारे में बहुत अच्छी विस्तृत जानकारी प्रस्तुति हेतु धन्यवाद!
जवाब देंहटाएंThanku Sir
जवाब देंहटाएंपढ़ने में बहुत मजा आया हमें। क्या आप इसे देखना पसंद करोगे बाबा बर्फानी उत्तराखंड
जवाब देंहटाएं