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शुक्रवार, 3 नवंबर 2017

खिचड़ी के बहाने गिंजड़ी की याद

    खिचड़ी भी राष्ट्रीय बहस का हिस्सा बन सकती है यह लोकतांत्रिक देश भारत में ही संभव है। लेकिन भला हो खिचड़ी का जिसके बहाने मुझे गिंजड़ी की याद आ गयी। गिंजड़ी ही नहीं बाड़ी, पल्यो, छछिन्डु सब जेहन में घूम गये। बचपन में कभी न कभी इनका स्वाद जरूर लिया है। खिचड़ी को पौष्टिकता से भरपूर गिंजड़ी बनाना तो कोई हम पहाड़ियों से सीखे। हमें 'बाड़ी खैंडणा' भी आता है और 'पल्यो सपोड़ना' भी। हमारी नयी पीढ़ी जरूर इनसे अनभिज्ञ है इसलिए आज मैं उनका अपनी 'घसेरी' के जरिये '​गिंजड़ी' और ' बाड़ि या बाड़ी' से परिचय करवा रहा हूं। 
      भारत में खिचड़ी क्षेत्र के हिसाब से अलग अलग तरीके से बनायी जाती है और इसलिए गिंजड़ी भी खि​चड़ी का ही एक रूप है। गढ़वाल में गिंजड़ी को गिंजड़ु, गिंजड़ू, गिंजड़ो आदि नामों से भी जाना जाता है। यह सदियों से पहाड़ के व्यंजनों में शामिल है। बेहद पौष्टिक है और खिचड़ी के भी गुण इसमें समाये होते हैं। गिंजड़ी मैंने बचपन में खायी थी। मां बनाती थी क्योंकि दादी ने अपने बच्चों को गिंजड़ी काफी खिलायी थी और मैंने पिताजी को कई बार मां से कहते सुना कि 'आज गिंजड़ी या फिर बाड़ी खाने का मन कर रहा है।' कई बार हमें न चाहते हुए गिंजड़ी या बाड़ी खानी पड़ी लेकिन ऐसे मौके बहुत कम आये। अब जरूर मन करता है कि काश वे मौके बार बार आते। 


     बहरहाल अब बात इस पर करते हैं कि गिंजड़ी कैसे बनायी जाती है। इसको बनाना भी खिचड़ी की तरह आसान है। बस अंतर यह है कि खिचड़ी के लिये चावल की जरूरत होती है और गिंजड़ी झंगोरा (झंगोरा के बारे में पढ़ने के लिये क्लिक करें — झंगोरा : बनाओ खीर या सपोड़ो छांछ्या) से बनायी जाती है। गिंजड़ी को झंगोरा के साथ काले भट और इसी तरह की अन्य पहाड़ी दालों को मिलाकर बनाया जाता है। खिचड़ी सूखी भी हो सकती है लेकिन गिंजड़ी सूखी हो तो फिर मजा नहीं। मैंने चाचाजी श्री हरिराम पंत से जब गिंजड़ी के बारे में पूछा तो उन्होंने बताया कि बजरू (बाजरा) की ब​हुत अच्छी गिंजड़ी बनती है। सुना है कि एक बार सरकार ने पहाड़ों में अन्न के नाम पर बाजरा का खूब वितरण किया था और शायद तभी से वहां के लोगों ने इससे गिंजड़ी बनाना सीखा होगा। बाजरा को उरख्यालु (ओखली) में कूट कर उसका बाहर का छिलका बा​हर निकाल दिया जाता है और ​अंदर वाले दानों के साथ दालें मिलाकर गिंजड़ी तैयार कर दी जाती है। वैसे चावल और विभिन्न तरह की दालों को एक साथ मिलाकर बने पकवान को भी गिंजड़ी या गिंजोड़ो कहा जाता है। 

बाड़ी खैंडणू


      ये तो रही बात गिंजड़ी की लेकिन मैंने पहले कहा था कि आपका आज 'बाड़ी' से भी परिचय कराऊंगा तो अब बात की जाए इस विशेष पहाड़ी व्यंजन की। बाड़ी मंडुआ के आटे (चूनो या चूनू) से तैयार किया जाता है और इसे खास तौर पर मसफ्वड़ी (काली दाल पीस बनाया जाने वाला व्यंजन) के साथ खाया जाता है। बाड़ी बनाने के लिये पहले पानी उबाला जाता है। इसके ऊपर शुरू में थोड़ा सा चूनो डाल दिया जाता है जिसे 'छापड़' कहते हैं। जब पानी खौलने लग जाए तो उसमें मंडुआ का आटा डाला जाता है। ​फिर इसे लगातार 'दबळु' (लकड़ी का बना एक विशेष तरह का गोलाकार वस्तु) से घुमाया जाता है। इसी को गढ़वाल में 'बाड़ी खैंडणू' यानि बाड़ी घोटना कहा जाता है। चाचाजी ने बताया कि दादी कहती थी कि बाड़ी तब तक घोटना चाहिए जब तक उसमें गैस के बुलबुले नहीं फूट जाएं। छोटी चाचीजी श्रीमती मनोरमा पंत को बाड़ी खाने का बहुत शौक है और वह दिल्ली में रहकर भी बाड़ी बनाती है और दबळु की जगह पर बेलन का उपयोग करती हैं। कुछ लोग मीठा बाड़ी भी बनाते हैं। अंतर इतना है कि इसे गुड़ के खौलते पानी में मंडुवे का आटा डालकर तैयार किया जाता है। इसे मंडुवे के आटे का हलवा भी कहा जाता है।
     ये तो थी गिंजड़ी और बाड़ी की बात। कैसा लगा आपको इसका स्वाद। बताना जरूर। गिंजड़ी और बा​ड़ी खाने के लिये तो 'घसेरी' आपका मेहमान बनने के लिये भी तैयार है। 'घसेरी' से अपना प्यार बनाये रखिये। आपका धर्मेन्द्र पंत  

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गुरुवार, 9 जुलाई 2015

झंगोरा : बनाओ खीर या सपोड़ो छांछ्या

     सुबह लेकर अखबार में पढ़ा की उत्तराखंड की झंगोरा की खीर राष्ट्रपति भवन के मेन्यू में शामिल कर ली गयी है। खुशी मिली और साथ में मुंह पानी भी आ गया। कुछ लोगों के लिये यह शब्द नया हो सकता है लेकिन मुझे नहीं लगता कि जो व्यक्ति कुछ दिन भी पहाड़ में रहा हो वह झंगोरा से अपरिचित हो। उत्तराखंड आंदोलन के दौरान भी यह नारा अक्सर सुनने को मिल जाता था, '' मंडुवा . झंगोरा खाएंगे, उत्तराखंड बनाएंगे।'' 
पौष्टिकता से भरपूर होता है झंगोरा
     उत्तराखंड में झंगोरा की खेती सदियों से की जा रही है और एक समय इसका उपयोग चावल के स्थान पर भात की तरह पकाकर खाने के लिये किया जाता था। चावल की बढ़ती पैठ के कारण दशकों पहले ही पहाड़ों में इसे दूसरे दर्जे के भोजन की सूची में धकेल दिया था। यह अलग बात है कि चावल की तुलना में झंगोरा अधिक पौष्टिक और स्वास्थ्यवर्धक है और इसकी खेती के लिये उतनी मेहनत भी नहीं करनी पड़ती है जितनी की धान उगाने के लिये। उत्तराखंड में जिन खेतों की मिट्टी मुलायम और उपजाऊ होती है वहां धान बोया जाता है और जो खेत थोड़ा पथरीला हो वहां झंगोरा की खेती की जाती है। इसके धान के खेत के किनारे भी रोपा जाता है। एक समय आया जबकि उत्तराखंड के किसानों का इससे मोहभंग हो गया था लेकिन अब वे धीरे धीरे इसके गुणों से परिचित हो रहे हैं। इसलिए पहाड़ी खेतों के फिर से झंगोरा की तरह लहलहाने की उम्मीद की जा सकती है। यदि आप इस लेख को पढ़ रहे हों तो लोगों को झंगोरा उत्पादन के लिये प्रेरित कर सकते हैं। कई खेतों में झंगोरा के साथ कौणी भी बो दी जाती है। कौणी का दाना पीला होता है और मरीजों के लिये इसकी खिचड़ी काफी उपयोगी होती है।
     झंगोरा खरीफ ऋतु की फसल है क्योंकि पानी के लिये यह बरसात पर निर्भर रहती है। पहाड़ों में झंगोरा की खेती करने के लिये खेत को हल से जोता जाता है और इसमें झंगोरा छिड़क दिया जाता है। बरसात में इसकी निराई, गुड़ाई, रोपाई की जाती है। इधर बारिश हुई और गांवों के लोग खेतों में झंगोरा को व्यवस्थित तरीके से लगाने के लिये चले जाते हैं। वैसे इसकी बुवाई मार्च से मई तक कर दी जाती है और बरसात इसको नया जीवन देती है। सितंबर . अक्तूबर में कटाई का काम चलता है। इसकी लंबी बालियां मनमोहक होती हैं, जिन्हें मांडकर या कूटकर झंगोरा का एक एक दाना अलग कर दिया जाता है। तब यह भूरे रंग का होता है। इसके भूरे रंग के छिलके को निकालने के लिये ओखली (उरख्यालु) में कूटा जाता था जिसके अंदर का दाना सफेद होता है। इसी दाने का उपयोग खीर, खिचड़ी या चावल की तरह पकाने के लिये किया जाता है। पहाड़ी घरों में आज भी झंगोरा से छंछ्या बनाया जाता है जो वहां के लोगों में काफी लोक​​प्रिय है। 
      पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी जब अपने ग्रीष्मकालीन प्रवास पर नैनीताल जाते थे तो झंगोरा की खीर उनका पसंदीदा व्यंजन होता था। ब्रिटेन के प्रिंस चार्ल्स और उनकी पत्नी कैमिला पार्कर जब नवंबर 2013 में भारत दौरे पर आये तो वे उत्तराखंड भी गये थे। वहां उन्हें झंगोरा की खीर परोसी गयी थी जिसकी उन्होंने काफी तारीफ की थी। यहां तक उन्होंने इसे बनाने की विधि भी पूछी थी। राष्ट्रपति प्रणव मुखर्जी को इस साल मई में उत्तराखंड प्रवास के दौरान राजभवन में झंगोरा की खीर परोसी गयी थी। यहीं से इस पहाड़ी व्यंजन का राष्ट्रपति भवन तक पहुंचने का रास्ता साफ हुआ था। गढ़वाल मंडल विकास निगम पहले ही इसे अपने मेन्यू में शामिल कर चुका है।
     माना जाता है कि झंगोरा मध्य एशिया से भारत में पहुंचा और उत्तराखंड की जलवायु अनुकूल होने के कारण वहां इसने अपनी जड़ें मजबूत कर ली। भारत के कुछ प्राचीन ग्रंथों में भी इसका वर्णन मिलता है। चीन, अमेरिका और कुछ यूरोपीय देशों में भी इसकी खेती की जाती है। झंगोरा का वैज्ञानिक नाम इक्निकलोवा फ्रूमेन्टेसी है। हिन्दी में इसे सावक या श्याम का चावल कहते हैं। राष्ट्रीय पोषण संस्थान केे अनुसार झंगोरा में कच्चे फाइबर की मात्रा 9.8 ग्राम, कार्बोहाइड्रेट 65.5 ग्राम, प्रोटीन 6.2 ग्राम, वसा 2.2 ग्राम, खनिज 4.4 ग्राम, कैल्शियम 20 मिलीग्राम, लौह तत्व पांच मिलीग्राम और फास्फोरस 280 ग्राम पाया जाता है। 
     यह सभी जानते हैं कि खनिज और फास्फोरस शरीर के लिये बेहद महत्वपूर्ण होते हैं। झंगोरा में चावल की तुलना में वसा, खनिज और लौह तत्व अधिक पाये जाते हैं। इसमें मौजूद कैल्शियम दातों और हड्डियों को मजबूत बनाता है। झंगोरा में फाइबर की मात्रा अधिक होने से यह मधुमेह के रोगियों के लिये उपयोगी भोजन है। झंगोरा खाने से शरीर में शर्करा की मात्रा को नियंत्रित करने में मदद मिलती है। यही वजह है कि इस साल के शुरू में उत्तराखंड सरकार ने अस्पतालों में मरीजों को मिलने वाले भोजन में झंगोरा की खीर को शामिल करने का सराहनीय प्रयास किया। उम्मीद है कि इससे लोग भी झंगोरा की पौष्टिकता को समझेंगे और चावल की जगह इसको खाने में नहीं हिचकिचाएंगे। असलियत तो यह है कि जो चावल की जगह झंगोरा खा रहा है वह तन और मन से अधिक समृद्ध है। 

झंगोरा से बनने वाले भोज्य पदार्थ

     त्तराखंड में नवरात्रों या व्रत आदि के समय में भी झंगोरा का उपयोग किया जाता है लेकिन आम दिनों में इसे चावल की तरह पकाया जाता है या फिर इसकी खीर, खिचड़ी, छंछ्या या छछिंडु बनाया जाता है। झंगोरा की खीर भी चावल की खीर की तरह की बनायी जाती है। यदि आप 300 ग्राम के करीब झंगोरा लेते हैं तो उसमें 150 ग्राम चीनी और लगभग डेढ़ लीटर दूध मिलाया जाता है। झंगोरा को पहले 15 से 20 मिनट तक पानी में भिगो कर रख दो और इस बीच दूध को उबाल दो। उबले हुए दूध में झंगोरा मिला दो और अच्छी तरह से पकने तक इसमें करछी चलाते रहो। इसके बाद चीनी मिलाओ। स्वाद बढ़ाना है तो काजू, किसमिस, बादाम, चिरौंजी जैसे ड्राई फ्रूट भी मिला सकते हो। अब इसे आप गरमागर्म परोसो या ठंडा होकर खाओ, स्वाद लाजवाब होता है।
    जिस तरह से चावल को पकाते हैं झंगोरा को उस तरह से इसका भात पकाकर दाल के साथ खाया जाता है। इसके अलावा इसकी खिंचड़ी भी पकायी जाती है। छंछ्या के लिये छांछ में झंगोरा मिलाकर उसे पकाया जाता है। इसे नमकीन और मीठा दोनों तरह से बना सकते हैं। इसके अलावा अब झंगोरा की रोटी और उपमा भी बनाया जाने लगा है। आपका धर्मेन्द्र पंत (इनपुट ... निर्मला घिल्डियाल)

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