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सोमवार, 6 अप्रैल 2015

'शिकारी' बोर ने बसाया था सोमेश्वर (बोरारौ घाटी)


बोरारौ घाटी का विहंगम दृश्य। फोटो : शंकर सिंह 
                                                        ———— शंकर सिंह ————
    सोमेश्वर आज एक तहसील है, जिसमें 150 गांव आते हैं। सांस्कृतिक नगरी जिला अल्मोड़ा से करीब 40 किलोमीटर दूर और सुप्रसिद्ध कवि सुमित्रानंदन पंत की जन्मस्थली कौसानी से करीब 12 किलोमीटर पहले स्थित इस घाटी का इतिहास कुछ यूँ रहा है -
     कहते हैं कि चंपावत के राजा गोरिया अर्थात पूरे कुमाऊं में न्यायप्रिय राजा के रूप में पूजे जाने वाले भगवान ग्वल ने धानिरौ में चार जातों को थात (जागीर) दे रखी थी, जिसमें बोर, बोरिला, चौधरी और कार्की थे। इनमें बोर काफी लड़ाकू था और उसने दूसरी तीनों जातों को काफी परेशान किया। आखिरकार तीनों ने मिलकर ग्वल के दरबार में गुहार लगाई। ग्वल ने बोर को बुलाकर काफी समझाया, लेकिन वो नहीं माना। इसलिए ग्वल ने बोर को अपने राज्य से निकाल दिया। बोर धानिरौ छोड़कर अल्मोड़ीहाट यानी तत्कालीन आलमशहर, अल्मोड़ा आ गया, जहां उस समय चंद वंशीय राजाओं का राज था।
    कहते हैं कत्यूरी राजवंश का पतन 700 ईस्वी के करीब हो गया था, जिसके बाद चंद वंशीय राजाओं का उदय हुआ। इसके प्रथम शासक सोमचंद बताए जाते हैं। हालांकि कुमाऊं में चंद और कत्यूरी राजवंश समकालीन माने जाते हैं। लेकिन सत्ता संघर्ष में चंद राजा विजयी रहे, जिन्होंने शुरुआत में अपनी राजधानी चंपावत बनाई। लेकिन 1563 ईस्वी में राजा बलदेव कल्याण चंद इसे अल्मोड़ा ले आए।
      शायद ये इसके बाद की ही घटना होगी, तब अल्मोड़ा में राजा उदय चंद, तिरमोली चंद, राजा वीर विक्रमी चंद का राज था। बोर ने धानिरौ से आने के बाद इनके दरबार में नौकरी मांगी, तो इन्होंने कैड़ के साथ बोर को भी अपना शिकारी बना लिया। एक दिन जब राजा शिकार करते हुए रिहेड़छिन यानी रनमन के करीब आए, तो दोनों शिकारियों ने राजा से जागीर की मांग की। ऐसे में राजा ने दोनों को अपनी मर्जी से जगह हथियाने के लिए कह दिया।
      कहते हैं कि बोर काफी चतुर था, जिसने एक किल यानी सीमा रेखा के लिए लकड़ी वही रिहेड़छिन में गाड़ दी। इसके बाद दूसरा हथछिन यानी कौसानी, तीसरा लोदछिन यानी मवे के पास लोद में और चौथा गिरेछिन यानी भूलगांव-आगर के करीब गाड़ दिया। इसके बाद चार छिन का मालिक बन गया बोर। इस चार किलों के एरिया को ही बोरारौ घाटी कहते हैं।
       बोर खुद छह राठ फल्या यानी चारों किलों के केंद्र सोमेश्वर में विराजमान हुए। कहते हैं कि बोर बाद में भाना राठ, अर्जुन राठ, हतु राठ और रितु राठ समेत छह भाई हुए, जिनके नाम पर आज भी फल्या में छह गांव बंटे हुए हैं। इस चारों छिन के एरिया में खाती, खर्कवाल, महरा, फर्त्याल राणा, भंडारी, नेगी और भैसौड़ा समेत कई जातियां रहती हैं। ब्राह्मणों में जोशी, कांडपाल, तिवारी, लोहनी लोगों के भी कुछ गांव हैं।
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    हिन्दी पत्रकारिता के युवा तुर्क शंकर सिंह दिल्ली विश्वविद्यालय और जामिया मिलिया इस्लामिया से शिक्षा प्राप्त करने के बाद मीडिया से जुड़े। पंजाब केसरी, दैनिक जागरण, अमर उजाला और जनसत्ता में विभिन्न पदों पर काम करने के बाद वर्तमान समय में नवभारत टाइम्स में विशेष संवाददाता पद पर कार्यरत। 
       समय मिलने पर अक्सर पहाड़ों की सैर पर निकलने वाले शंकर कुमांऊ के इतिहास, सामाजिक व्यवस्था और संस्कृति पर भी गहरी पैठ रखते हैं। 


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