शनिवार, 15 अगस्त 2015

क्या है हन्त्या? रहस्य, अंधविश्वास, वास्तविकता या जागरियों का कमाल?

      सेरी के सभी पाठकों को स्वतंत्रता दिवस की शुभकामनाएं। पिछले दिनों में मेरे पत्रकार मित्र महावीर सिंह ने फेसबुक पर एक पोस्ट डाली थी, जिसमें उन्होंने कई सवाल उठाये थे। उन्होंने लिखा था, ''उत्तराखंड को देवभूमि कहा गया है। क्या सचमुच में यह देवभूमि है? कहां हैं हमारे देवी देवता? गर्मियों में स्कूलों की छुटि्टयों के दौरान यहां हर क्षेत्र में हर गांव में होने वाले मेले, पूजा पाठ और ढोल दमाऊ की थाप पर नाचने वाले नर—नारी, क्या सचमुच उस देव अथवा देवी का प्रतिरूप होते हैं? क्या है सच्चाई? क्या आज भी हमारे देवी देवता मनुष्य शरीर में प्रवेश होकर प्रकट होते हैं?'' महावीर भाई ने सवालों की जो झड़ी लगायी है वह किसी को सोचने के लिये मजबूर कर सकती है। बचपन से मैंने इसे अंधविश्वास की श्रेणी में माना लेकिन यह आस्था है और इस शब्द के बहुत मायने होते हैं।

क्या है हन्त्या? रहस्य, अंधविश्वास, वास्तविकता या जागरियों का कमाल?
   
      आपने हन्त्या नचाणा भी सुना होगा यानि अपने मृत पूर्वजों का आह्वान। वह अपने किसी करीबी के शरीर में प्रवेश करते हैं और अपनी मुक्ति के लिये रास्ता भी दिखा देते हैं। देखा होगा कि देवी देवता के साथ साथ जागरी (देवी देवताओं का आह्वान करने वाला) हन्त्या भी नचाता है। कई बार देखा गया है कि जब वह आत्मा यानि रूह किसी के शरीर में प्रवेश करती है तो ऐसा लगता है कि उस व्यक्ति को मानो बहुत पीड़ा हो रही हो। क्या वास्तव में ऐसी रूह अपने करीबी के शरीर में प्रवेश करती है? यह सवाल भी अनुत्तरित है। मैं यहां पर दो घटनाओं का जिक्र कर रहा हूं जिनको लेकर आप अनुमान लगा सकते हैं कि सच्चाई वास्तव में क्या है?
     पहाड़ के अपने पंडित जी एक दिन बातों बातों में एक सच्चा किस्सा सुनाया। मैं पूरी कोशिश करूंगा कि मैं पंडित जी के शब्दों में ही वह किस्सा आपके सामने पेश कर सकूं। बकौल पंडित जी ....
      ''काफी साल पहले मैं एक बार किदवई नगर में किन्हीं यजमान के यहां गया था। अक्सर जैसे हम पूछ लेते हैं कि आप गढ़वाल में कहां के रहने वाले हैं मैंने भी परिवार के बुजुर्ग से यह सवाल कर दिया। वह कुछ देर चुप रहे और फिर कहा, 'आपने मेरी दुखती रग पर हाथ रख दिया है। मैं बता नहीं सकता।' मैंने उनसे कहा कि अब तो आपने बात को और रहस्यमयी बना दिया है। आपको बताना पड़ेगा। आखिर में वह मान गये। उन्होंने एक लंबी सांस ली और फिर अपनी कहानी कहने लगे। ''

     अब उन बुजुर्ग की वह कहानी जो उन्होंने पंडित जी को बतायी थी .....

     ''यह आजादी से पहले की बात है। मैं तब 18 या 19 साल का था। शादी हो चुकी थी और घरवालों ने परदेस की तरफ धकेल दिया कि अब तो मुझे कुछ काम करना होगा। टिहरी गढ़वाल के अपने गांव से किसी परिचित का पता लेकर दिल्ली आ गया। पहाड़ी लोग सरल और ईमानदार होते हैं और इसलिए यहां आकर किसी सेठ साहूकार के यहां घर या दुकान पर उन्हें काम मिल जाता है। मैं भी जिन महानुभाव का पता लेकर आया था वह भी ऐसे ही किसी सेठ के घर में काम करते थे। उन्होंने साफ इन्कार कर दिया कि मैं उनके साथ नहीं रह सकता था। अब न मैं घर वापस जाने की स्थिति में और दिल्ली में किसी अन्य व्यक्ति को भी नहीं जानता था। फुटपाथ मेरा आसरा बन गया था। द्वितीय विश्वयुद्ध के बाद आजादी की लड़ाई अपने चरम पर थी। अंग्रेज सरकार लोगों को परेशान कर रही थी। मुझे भी एक दिन फुटपाथ से उठाकर जेल में ठूंस दिया गया। आजादी मिलने के बाद जब जेल से बाहर निकला तो स्थिति भयावह थी लेकिन घरवाले, गांव वाले, रिश्तेदारों को जब पता चलेगा कि मैं जेल में बंद था तो वे क्या सोचेंगे? बस इस वजह से गांव नहीं गया और फिर से मेहनत मजदूरी करने में लग गया। इसके एक डेढ़ साल बाद जब मुझे लगा कि अब मैं सक्षम बन गया हूं तो गांव जाने की तैयारी कर ली। ''
     ''बहुत खुश था कि गांव में मुझे देखकर मां पिताजी, भाई बहन और पत्नी सभी को बहुत खुशी होगी। बड़े उल्लास के साथ गांव में कदम रखा लेकिन गांव के जिस भी शख्स की नजर मुझ पर पड़ी उसके चेहरे पर मैंने कई सवाल तैरते हुए देखे। मैं समझ गया कि गांव में सब कुछ सही नहीं है। कुछ तो गड़बड़ है। घर में पहुंचा तो सब हक्के बक्के। खुशी के बजाय उनके चेहरे पर हवाईयां तैर रही थी। मां पिताजी जरूर खुश थे। गांववालों और घरवालों ने यह मान लिया था कि स्वतंत्रता मिलने के बाद जो दंगे हुए उनमें मेरी मौत हो गयी है। मेरी पत्नी का विवाह मेरे छोटे भाई से कर दिया गया और तब उनका एक बच्चा भी हो गया था। मैंने कभी इसके लिये अपने भाई, पत्नी या माता पिता को दोष नहीं दिया क्योंकि परिस्थितियां ही ऐसी थी। मैंने इन बदले हुए रिश्तों को स्वीकार कर लिया लेकिन तभी मुझे पता चला कि मेरी पत्नी जो अब मेरे छोटे भाई की पत्नी बन गयी है उस पर मेरी हन्त्या भी आयी थी और मेरी नारायणबलि भी कर दी गयी क्योंकि मेरे कारण होने वाले कष्टों से बचने के लिये यही उपाय मेरी रूह और जागरी ने बताया था। मैं सन्न रह गया। नारायणबलि की तो कोई बात नहीं लेकिन जब मैं जिंदा था तो मेरी रूह कहां से यहां आकर उसके शरीर में प्रवेश कर गयी थी। मुझे यह भी पता चला कि वह बहुत रोयी थी। उसने यह भी बताया था कि किस तरह से मौत हुई थी। मुझे मारा जा रहा था। उसके शरीर के जरिये मेरी रूह ने बताया था कि मुझे बहुत पीड़ा हो रही थी और मैं मां पिताजी को याद कर रहा था। उस हन्त्या की पीड़ा से तब मां पिताजी ही नहीं पूरा गांव रो पड़ा था। ''
     ''मैं इतना सुनकर धप्प से बैठ गया। बस यही सवाल मेरे मन में कौंध रहा था कि आखिर सब हुआ कैसे? मन कसैला हो गया। तुरंत मां पिताजी से विदा लेकर गांव से निकल गया और फिर कभी गांव का रूख नहीं गया। गढ़वाल में कई जगह गया लेकिन कभी गांव नहीं गया। लेकिन मेरा सवाल अब भी अनुत्तरित है कि उसके शरीर में मेरी रूह ने कैसे प्रवेश किया जबकि मैं जिंदा था? जब जवाब नहीं मिला तो मैंने यह मान लिया कि हन्त्या जैसा कुछ होता ही नहीं है। लेकिन क्या आप मेरे सवाल का जवाब दोगे?''
     न बुजुर्ग का पंडित जी के लिये किया गया सवाल उन्होंने मेरी तरफ दाग दिया। तब मुझे गांव की एक घटना याद आयी। मैं बचपन से ही जागरी, डौंर थाली, देवी देवता हन्त्या नचाने को पसंद नहीं करता था। मुझे लगता था कि किसी व्यक्ति के शरीर में देवता या रूह के प्रवेश में डौंर और थाली से निकलने वाली तरंगों का भी योगदान होता है। एक दिन मुझे पता चला कि गांव के फलां भाई साहब के शरीर में कभी उनकी मां की हन्त्या आयी थी। वह भाई हमेशा परदेस में रहे। हिन्दी में ही बोलते थे। बेहद पढ़ाकू और राजनीति से लेकर विज्ञान तक की अच्छी समझ रखने वाले। उनसे जब भी बातें हुई तो लगा कि वह अंधविश्वासी नहीं हैं। जब पता चला कि उन पर एक बार हन्त्या आयी थी तो उन्हीं से जवाब जानने के लिये चल पड़ा। उन्होंने जो मुझे बताया वह इस तरह से है, ''हां धर्मेन्द्र यह सही है कि मुझ पर मेरी मां की हन्त्या आयी थी। जागरी हन्त्या के जागर लगा रहा था। मैं भी सभी लोगों के साथ बैठा हुआ था। अचानक मुझे कुछ अजीब सा महसूस होने लगा। मुझे लगा कि मेरा शरीर जैसे हवा में तैर रहा है और धीरे धीरे मैंने खुद को काफी ऊपर हवा में तैरता हुआ पाया। इस बीच नीचे जागरी के सामने क्या हो रहा था मुझे पता नहीं। कुछ मिनट बाद जब मैं होश में आया तो पसीने से तरबतर था और काफी थका हुआ महूसस कर रहा था। मुझे बताया गया कि मेरे शरीर में मेरी मां की हन्त्या नाची थी। ऐसा क्यों हुआ इसका जवाब मैं भी आपको नहीं दे सकता। मैंने जो अनुभव किया था उसको मैंने आपको बता दिया है। ''
     अब ये दो​ किस्से आपके सामने हैं। क्या आपके पास कोई जवाब है कि क्या वास्तव में हन्त्या जैसा कुछ होता है या यह भी महज भ्रम है जिसकी सचाई और वास्तविकता से असल में जागरी भी अनभिज्ञ हैं? नीचे टिप्पणी वाले कालम में अपने अनुभव या जवाब जरूर प्रेषित करें। आपका धर्मेन्द्र पंत

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33 टिप्‍पणियां:

  1. पत्नी के शरीर में जीवित पति की हंत्या का आना !...ज़ाहिर है ये महज़ बिछोह, अशिक्षा और अंधविश्वास से उपजी एक मनोवैज्ञानिक समस्या थी जिसे 'हंत्या' का नाम दे दिया गया। यही बात मां की हंत्या को लेकर भी कही जा सकती है। सीज़ोफ्रेनिया के मरीज़ों को ऐसे अनुभव होते ही रहते हैं और एक स्वस्थ व्यक्ति को भी विशेष परिस्थितियों में कभीकभार अस्थायी तौर पर सीज़ोफ्रेनिया के लक्षणों से गुज़रना पड़ सकता है...कहने का अर्थ ये, कि हंत्या महज़ एक मनोवैज्ञानिक बीमारी है, हालांकि...

    ...1960 के दशक के उत्तरार्ध में मेरे घर में, मेरी आंखों के सामने एक ऐसी घटना घटी थी जिसे मनोवैज्ञानिक बीमारी कहकर टाला जा सकता है। लेकिन इस प्रश्न का उत्तर हमें आज तक नहीं मिला कि ध्यानावस्था में बैठे झाड़फूंक करने वाले उस नवयुवक की पीठ पर एकाएक चिमटे के 3 निशान कैसे उभर आए थे जो (उसके अनुसार) कुपित होकर उसके गुरू ने उसे मारे थे। और झाड़फूंक से परिस्थितियों के सामान्य हो जाने के बाद कैसे वो आम का विशाल पेड़ जड़ से उखड़कर गिर गया था जिस पर हमारे घर को हिलाकर रख देने वाले " नट " का वास था। ये देहरादून की सर्वे ऑफ़ इण्डिया कॉलोनी (हाथीबड़कला एस्टेट) की घटना है।

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    1. धन्यावाद भैजी। आपने इस पूरे विषय के ऐसे पहलू को पकड़ा है जो वास्तव में सचाई लगती है। यह मनोवैज्ञानिक समस्या हो सकती है। लेकिन गीता में कहा गया है कि जो आंखों में सामने घटित हुआ हो वह सच है। ऐसी एक घटना का आपने भी जिक्र किया है। हर व्यक्ति को अपने जीवन में ऐसी कुछ घटनाओं रूबरू होना पड़ता है। इस तरह की घटनाएं समाज में अंधविश्वास को बढ़ावा देती हैं। हो सकता है कि यह जागरियों या झाड़ फूंक करने वाले व्यक्ति के हाथों का कमाल हो। आखिर उनको भी अपनी रोजी रोटी चलानी है। बहरहाल हन्त्या को लेकर मैं आपसे पूरी तरह सहमत हूं कि यह मनोवैज्ञानिक समस्या है और यदि पहाड़ों में इसे इस रूप में देखा जाए तो इस अंधविश्वास पर काफी हद तक काबू पाया जा सकता है।

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    2. हत्या , देवी देवता यह सब मेरे विश्वाश से पर हैं किन्तु एक बात जो कई साल बाद भी मेरे मन को विचलित किये हुए है वह यह की एक बार हमारे गांव में पुजाई चल रही थी. तो हमारी एक भाबी पहली बार गढ़वाल आयी थी और शायद मनी उन्हें उनकीसादि के बाद पहली बार मिला अर्थात उनकी जानकारी मेरे विषय में कुछ नहीं थी तो अचानक उन पर देवी नाचने लगी और उन्होंने कई लोगो के बीच से मुझे बुलाया और मेरे बाल पकड़ लिए तथा कहने लगी की तुमने मेरी यात्रा आधे मनी क्यों छोड़ दी . जब की यह बात मेरे परिवार वालों को भी पता नहीं था की वैष्णव देवी जाकर में बिना भैरव के दर्शन किये घर आया था

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    3. Haa ye sirf ek manovigyanik thathay hai.esme koi sachai nhi hai..ye sirf mind m janam lene wali oscillation hoti hai jo doorn thali ki thaaf pe active ho jati hai.jo insaan in chizo m pala bada ho uspe is baat ka acha khasa asar hota hai

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    4. जिस तरह से आप मान रहे हो की यह अंधविश्वास है उसी विश्वास के साथ इसे मनोवैज्ञानिक परस्तिथि क्यों मान रहे हो. मेरा तो यह मानना है की न तो यह अंधविश्वास है और न ही कोई मनोवैज्ञानिक परस्तिथि. बल्कि यह प्रकृति की ऐसी घटना है जो हमारे सीमित व विकसित दिमाग की सीमा के बाहर है, जिसने समझा उसे ना समझने वालो ने अंधविश्वास बतला दिया और जिसने नहीं माना उसने मनोवैज्ञानिक परस्तिथि. विज्ञान की भी एक सीमा है, जो आजतक यह नहीं बता पाया की एड्स जैसी बिमारी का वाइरस का ओरिजिन क्या है. जो आज तक यह नहीं बता पाया की स्त्री की अंडकोष में अंडा कहा से बनता है. (कृपया हॉर्मोन्स का नाम मत लेना ) नहीं तो वैज्ञानिक उस हारमोन को बाहर ही बना डालेंगे. बिज्ञान सिर्फ हार्मोन्स को जिम्मेदार मानता है पर इस हारमोन का भी ओरिजिन अभी विज्ञान के पास नहीं है. प्रकृति में हर एक वास्तु एक दूसरे को आकर्षित करती है जिसे हमारे विज्ञान ने अभिकेंद्रिय बल (सेंट्रिपिटल फाॅर्स ) का नाम दिया है पर ये बल आता कहा से है इसे विज्ञान आजतक नहीं बता पाया. सूरज में हीलियम और ह्य्द्रोजन जैसी गैसे उसकी गर्मी या आग का कारण है पर ये गैसे आती कहा से है ये विज्ञान नहीं बता पाया. तो कुछ चीजे विज्ञान की सीमा से भी बाहर है. क्या आपको नहीं लगता की विज्ञान से भी उप्पर एक और ज्ञान है जो हमारे मन-मस्तिष्क की सीमा से कई गुना बाहर है.

      प्रकृति की गोद में कुछ रहस्य ऐसे है जिन्हे विश्वास की रेखा के अंदर ही मानना चाहिए क्युकी उनका जबाब ढूंढते ढूंढते शायद जिंदगी निकल जाय. रही बात ज़िंदा आदमी की हन्त्या की बात तो वह भी एक मनघडंत कहानी हो सकती है या फिर किसी और की हन्त्या हो सकती है जो की ज़िंदा आदमी की ही तरह ब्यवहार कर रहा हो. यही कुछ न कुछ गड़बड़ी है जो शायद वो बुजुर्ग बताना नहीं छह रहे हो..

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  2. These incidents have created more confusion that answer ... ��.

    I think it is a sort of trans state, where sub-conscious mind takes over conscious mind. Instruments/music (at a consistent pace) used by Jagri, helps in pushing someone to that trans state.

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    1. मुझे भी यही लगता है ​भरत। यह एक तरह से यौगिक क्रिया है। वह व्यक्ति जिसके शरीर में आत्मा या देवता प्रवेश करता है वह अवचेतन अवस्था में पहुंच जाता है और फिर वह वही करता है जो उसने देखा या सुना है। आप किसी ऐसे व्यक्ति को जागरियों के बीच बिठा दो जिसने इन सब चीजों के बारे में कभी नहीं सुना हो तो उसके शरीर में ऐसी कोई हरकत नहीं होगी। कुछ अवसरों पर मुझे भी अहसास हुआ कि डौंर या थाली की तरंगे मुझे प्रभावित कर रही हैं। फिर भी एक बार सी पी कण्डवाल जी की टिप्पणी पढ़ लेना। उन्होंने यहां पर एक किस्सा बयां किया है।

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    2. Nhi hamare uttrakhand me bina jagar lagaye bhi ghr ki kuldevi ya hantya unki raksha ke liye ati hai aap logo ke hisab se jagri ek aisa maholl banata h jisse ki samne wali ki body react krne lgti hai but kbhi kbhi jb koi negative energy (bhoot pret ya masan)ghr me ghusne ki koshish krti h to ghr ki kuldevi ya hantya jiski body me vo humesha ati h uski body me ake ghr walo ki raksha krti hai or ye mai isliye nhi bolri kyuki Maine sirf dekha hai balki isliye bol rhi hu kyuki Maine use mehesus kiya h meri body me meri mom ki hantya ati hai or vo humesha hume protect krti hn jb bhi mere aas pass koi negative energy hoti h to mujhe khud hi unconscious sa feel hone lgta h or kisi ko vo mehesoos nhi hota but mujhe vo har kadam me mehesoos hota hai bhut baar to mujhe vo negetive energy dikhti hu hai jab ki mai seher ki ek padi likhi science stream ki ek student hu mujhe sociology bhi acche se pta hai mind control krna ata h but jb bhi koi negative energy pass hoti hai to mehesoos hota hai or jagar me ghr walo ki sari problem batati h unka solution batati hai or vo sach bhi hota hai or kisi ke.man me.kuch ho to vo bhi bta deti hai to ye sb jhut to nhi h na hi andhvishwas hai but kuch log Inka jhuta natak krkeise jhuta bata dete hn mai in sab me beleive nhi krti thi kbhi but ab mera manna h kuch natural powers hoti hn jinhe hum Nazar andaz nhi kar skte jb bhagwan hai to shetan bhi hai problem hn to solution bhi hn

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  3. देव भूमि उत्तराखंड के अनेक रहस्यों से पर्दा उठना अभी बाकि है । वैज्ञानिक विचारधारा रहस्यों की बजाय सटीक तर्क और सिद्धांतों के आधार पर निष्कर्ष तक पहुंचती हैं । हिमालयी क्षेत्रों में कुछ न कुछ इस प्रकार बाते अक्सर देखने सुनने को मिलती रहती है । विज्ञान आद्यात्म या इससे जुड़ी घटनाओं को आसानी से स्वीकार नही करता है ।

    एक उदाहरण मुझे भी चंडीगढ़ में देखने को मिला । एक आठवीं कक्षा में पढ़ने वाली बालिका अक्सर अपने स्कूल में अचानक बेहोश हो जाती, स्कूल वाले उसे रिक्शे में बिठाकर उसे घर भेज देते । यह क्रम कई दिनों तक कुछ इसी प्रकार चलता रहा । एक दिन उसकी हालत स्कूल में काफी बिगड़ गई स्कूल में कुछ देर तक उसे रेस्ट रूम में रखा गया और फिर अभिवावकों को बुलाकर सीधे उसे शहर के हॉस्पिटल में भर्ती करा दिया गया । हॉस्पिटल में उसकी हालत दिनों दिन बिगड़ती चली गई , सारे ब्लड एवं रेडिओलॉजिकल टेस्ट उसे नार्मल दिखा रहे थे , लगभग आठ दिन तक अस्पताल में ग्लूकोज के सहारे जीवित रही, माता पिता तंग हो गए
    डाक्टरों की समझ में कुछ नही आ रहा था उसके पिता जी ने डाक्टर से कहा यदि बीमारी आप की समझ से बाहर तो इसे पी. जी. आई रेफेर क्यों नही कर देते ? लड़की बेसुध बिस्तरे में थी, यह सुनकर एकदम बैठ गई और अपने पिता जी से बोलने लगी "अरे बेटा इनकी समझ में कहाँ आएगा? बेटा ये जहाँ मर्जी भेज दे कुछ नही होगा?" बेटा तेरे को हाथ जोड़ता हूँ मुझे अपने घर ले चल , मेरा दिल शिकार (मीट) और भात खाने का कर रहा है बहुत साल हो गए तेरे हाथ से नही खाया । सारा संवाद अपनी गढ़वाली भाषा में चलता रहा, सभी डा. उस मरणासन्न लड़की की हालत देखकर चकित हो गए, परन्तु उन्होंने उसे न तो पी जी आई रेफेर किया और नही डिस्चार्ज । वह बालिका बिस्तर से उठ गई और हॉस्पिटल की सबसे ऊपरी मंजिल से पैदल ही सीढ़ियों के सहारे ग्राउंड फ्लोर तक पहुँच गई अंत में माता पिता के आग्रह पर डा. ने उसे सशर्त डिस्चार्ज कर दिया । घर पहुँचने के बाद उसने बकरे का मीट और भात खाया, जबकि डाक्टरों ने खिचड़ी या हल्का खानेki सलाह दी थी , अपने पिता के सर पर हाथ फेरते हुए बोलने लगी बेटा सुरेन्द्र तू जुग जुग जियो बेटा, एक अहसान मेरे पर और कर दे गाँव के दर्शन भी करा दे, हरिद्वार में चंडी माता के दर्शन भी कर लूँगा और गंगा स्नान भी, इस छोकरी को बहुत परेशान किया है जब तुम सात आठ साल पहले गाँव गए थे ता से इस पर पंजा रखा है जब भी इसे परेशान किया तुम हॉस्पिटल के चक्कर काटते लग जाते, तुम्हारे ज्ञान विज्ञान ने मेरा रास्ता रोक कर रखा था , अब घर जाकर मेरी घड्याळी लगाकर मुझे थान-भौंन तक पंहुचा दो तेरी बड़ी कृपा होगी, मै बहुत दिनों से भटक रहा हूँ ।

    उस लड़की कथनानुसार सब कुछ किया जैसे उसने कहा था, आज वह लड़की सुख चैन शादी शुदा होकर अपने सुसराल में बैठी है ।

    अंत में टिप्पणी करना चाहता हूँ कि सब कुछ है यदि आप उसे सच्चे मन से स्वीकार करें । मैं स्वयं वैज्ञानिक पृष्ठ भूमि से जुड़ा व्यक्ति हूँ आसानी से इन बातों पर हरेक आदमी विश्वास नहीं कर पाता है, पंरतु जिस पर बीतती है वही जान सकता है । अंत में यही कह कर अपनी बात को विराम देता हूँ :-

    मानो तो मैं गंगा माँ हूँ ...... ना मानो तो बहता पानी .....

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  4. कुमांउ में जागर बडा होता है..उसके अलावा बैसी होती है 22 दिन की..छोटे रूप में वहां की परम्पराओं के अनुसार किसी भी दिन एक दिन में देवता बुलाकर हाल जान सकते हैं..नेपाल में तो यह अधिक मान्य है..वे कहीं उत्तराखंड से आगे हैं हर कर्म धर्म में..
    जरूरी नहीं कि छल या आत्मा हो..कई कारण हो सकते हैं..यह वहां के लोग जानेंगे ..जो हाईफाई हैं वे इसे वैज्ञानिक आधार पर खारिज कर देंगे..मैंने तो खुद ऐहसास किया है..उस आत्मा का..जब उबरा तो आध्यात्म से समझने में लगा हूं उस परमात्मा को...

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  5. जागर वास्तव में सचाई हैं

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  6. dear Sir,
    Devi devta pitra sabhi 100% sach hai. aur ye bhi sach hai ki ye hamare sharir me khelte hai. zarurat hai kewal unhen pahchan karne ki, ki actual me jo khel ya nach raha hai woh kaun hai, actual me koi devi devta pitra hai ya kewal aapni mansik stithi ke karan ya kewal ek dhong.
    uske liye ek guru chahiye jo proof kar sake ki aapke samne kaun hai.
    adhyatam ki shuruwat hi wahan se hoti hai jahan vigyan khatam hota hai.
    Sach to sach hi rahega. hum kewal aapne dristikon badal sakte hai.

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    1. मैं आपसे भी सहमत हूं। वही बात है कि मानो तो मैं गंगा जल हूं न मानो तो बहता पानी। लेकिन यहां पर रहस्य की बात हो रही है। आखिर क्या है यह रहस्य?

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  7. पंत जी आपने घसेरी में गढ़वाल से जुड़े मूलभूत विषय को उठाया यह अच्छी बात है। पहाड़ों से जुड़ा हर व्यक्ति कहीं न कहीं इन घटनाओं से प्रत्यक्ष अथवा अप्रत्यक्ष तौर पर जुड़ा रहा है। आपने मृत आत्मा को हंत्या का नाम दिया, यह शब्द मुझे नकारात्मक घ्वनि लिये हुये लगा। गांव गाले में जब कभी पित्रों का आह'वान किया जाता है तो कहते हैं घ्डयलु दीड़ा छिन। हंत्या शब्द कुछ खास परिस्थितियों को इंगित करता है — जैसे किसी की युवा अवस्था में अक्स्मात मृत्यू होना अथवा किसी अन्य कारणवश मृत्यू होना आदि।
    खैर, वास्तविक मुद'दा यह है कि किसी व्यक्ति के शरीर में वह कौन से शक्ति अथवा आत्मा आती है जो कि उसे खुद को भुलाकर उस शक्ति का व्यवहार करवाती है। इस बारे में कुछ बेहतर वही व्यक्ति बता सकता है जिसपर खुद कोई शक्ति आती हो अथवा कभी आई हो। जिन सज्जनों ने अपने अनुभव उपर बताये हैं, उससे यह तो साबित होता है कि कोई हवा, शक्ति अथवा आत्मा है जो अपना प्रभाव दिखाती है, लेकिन यह कैसे होता है, उस व्यक्ति को क्या लगता है, इस बारे में ज्यादा कुछ पता नही चल पाया। हम लोग अक्सर तभी किसी बात को सत्य मानते हैं अथवा प्रभावित होते हैं जब कोई चमत्कार होता है। उसके बाद ही हम विश्वास कर पाते हैं अन्यथा कुछ तवज्जो नहीं देते। मेरे साथ भी एक वाक्या हुआ जब एक शक्ति ने मुझे अपनी ताकत का एहसास कराया। तब से ही मैं इस उधेड़बुन में हूं कि आखिर यह सब क्या है। हमारे गांव में दो महीने पहले जून में देवी का मंडाण लगा, तब भी मेरे मन में कई तरह के सवाल तैरते रहे। जब कोई बात सही साबित होती है तो सब सच लगता है और जब कुछ नहीं होता तो संदेह होता है। लेकिन इतना कहना चाहूंगा कि इन बातों को सिरे से खारिज करना मुश्किल है।

    महाबीर सिंह

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    1. महावीर जी आपने सही कहा कि हन्त्या शब्द थोड़ा नकारात्मक लग रहा था लेकिन आपने गढ़वाल में अक्सर यह कहते हुए भी सुना होगा कि ''फलंणै हन्त्या फलण पर आणी च'' । क्या ईश्वर है? यह भी एक बड़ा सवाल है। यदि ईश्वर है तो हम मृतात्मा का किसी के शरीर में प्रवेश की बात को कुछ हद तक स्वीकार कर सकते हैं। सच कहूं मैं तो अभी तक इसी उधेड़बुन से बाहर नहीं निकला हूं कि ईश्वर है या नहीं।

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  8. आशीष बर्थवाल जी ने जो लिखा है वह मन में काफी कुछ ठीक बैठता है। जरूरत है एक बेहतर गुरू की जो ठीक से यह पहचान सके कि सामने जो शक्ति अपना प्रभाव दिखा रही है वह सही है या कुछ और। वास्तव में आज विद्याओं के बारे में हमारे सामने आधा अधूरा ज्ञान ही है। गांव गाले में पुराने जागर अथवा ढोल दमाउं के गुरू अब उतने जानकार नहीं रहे जितने पहले हुआ करते थे। आज इस विद्या को गहराई से जानने में भी किसी की रूचि नहीं है। हमारे ढोल दमाउं विद्या जानने वालों के बच्चों ने उस विद्या को आगे नहीं बढ़ाया बल्कि वे भी हमारी तरह परदेश में नौकरी की खोज में निकल गये। यही हाल हमारे पैतृक ब्राहम्णों के मामले में हो रहा है। जब जजमान ही गांव में नहीं रहे तो पूरा ताना बाना ही बिगड़ रहा है। जहां तक हमारी जानकारी है ढोल सागर, ज्योतिष की बातें केवल कुछ पुस्तकों तक ही सीमित रह गई हैं। कम से कम गढ़वाल के खाली गांवों में तो इनके बड़े ज्ञाता नहीं दिख रहे हैं।

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  9. SABHI SAJJANO DHANYAWAD .. KIRPAYA GUIDE KAREN KI MAIN YAHAN PAR HINDI MAIN KAISE LIKHUN . KUCH LIKHANE KA VICHAR THAA.

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    1. अगर आप हिन्दी टाइपिंग जानते हैं तो http://krutidevunicode.com/ पर जाकर हिन्दी में टाइप कर सकते हैं। यदि रोमन में टाइप करके हिन्दी में परिणाम पाना है तो http://www.quillpad.in/index.html#.VerUhcnLIlM या http://indiatyping.com/index.php/typing-tutor/hindi-typing-indic का सहारा लें।

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  10. बहुत सारी घटनाये ऐसी हैं जिनको हम अन्धविश्वास कह कर टाल सकते हैं लेकिन बहुत सारी आँखों देखि ऐसी भी हैं जिनसे सवाल वही का वहीँ अटका पड़ा रह जाता है हमारे यहाँ पौड़ी गढ़वाल के पाबौ ब्लाक में डली की पूजा होती है जिसमें पांच पांडवो की पूजा होती है और उसमे पहले दिन भीम अपने हाथ में थोड़े से चावल लेकर जाता है और चीज के एक पेड़ को जड़ से उखड कर ले अत है बिना किसी हथियार के तो आखिर उसके अंदर वह ताकत कैसे आती है यह अभी भी मेरी समझ नहीं आया दूसरा वो केले के पेड़ को भी ऐसे ही उखड लेकर अता है इसका भी मुझे पता नहीं जबकि एक सामान्य इंसान केलिए वह चीड और केले का पेड़ बिना औजार का उखाड़ना बहुत मुश्किल है
    दूसरी घटना यह मेरी आँखों देखि यह है की एक दिन मैं रात को रस्ते से जा रहा था तो अचानक मुझे बाघ मिला और भले ही मेरे घर के बगल में ही देखा और बाघ ने कुछ नहीं किया वह सीधा चला गया लेकिन मैं बहुत डर और सहम गया मेरी रूह काँप गयी यह बात मैने सिर्फ अंपने घर वालो को बताई थी लेकिन अगले ही दिन गाँव में पूजा थी और एक महिल जिस पर दुर्गा माता नाचती थी वो उसने भीड़ से मुझे बुलाया और बाल पकडकर मुझे मरने लगी और कहने लगी की तू उस दिन डरा क्यों तेरे ह्रदय में दर भर गया
    अब बात यह है की वो महिला तो इस घटना से बिलकुल अपरिचित थी फिर भी उसे ये सब कैसे पता चला

    तीसरा उदहारण है की मेरे एक दोस्त जिस पर गुरिल आता है वह मेरे साथ गहती घटनाओ को उजागर कर देता है जबकि मैं बहुत सी बाते उसे नहीं बताता
    और फिर चौथा जो बक्या होते हैं जो कीसी भी इंसान के बारे में शुरू से लेकर अब तक का सारा चिटठा खोल देते है आखिर वो क्या हैं उनको यह ताकत कहाँ से मिलती हैं

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    1. ऐसी ही कुछ घटनाएं हैं​ जिनसे की आमजन का विश्वास इन पर बना हुआ है। मेरे लिये यह कल भी रहस्य था और आज भी रहस्य है।

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    2. आज न जाने क्यों मन में विचार उठा कि गांव के देवी देवता जिनकी अब शहर में अपने को शिक्षित आधुनिक मानने की भूल के कारण हम लोग भूल से गये हैं क़े बारे में देखें गूगल कुछ सूचना बताता है या नहीं यही जिज्ञासा आपके इस अनुभवयुक्त लेख तक ले आयी।अनायास हमारे स्मृतिपटल पर अपने गांव में घटित घटनाएं याद आ रहीं हैं उन्हें आपके साथ साझा कर रहा हूँ।
      पहली घटना 1984 के दरम्यान की है, मैं अपने माताजी,पिताजी के साथ गांव गया ।लगभग बीस बाइस सालों के बाद गांव जाने पर पिताजी ने नरसिंह, नागरजा,गुविल देवता की पूजा के लिए व्यवस्था की ।जगरी का इंतजआम करके रात में तिबारी में पूजा शुरू हुई तो परिवार की हमारी ताई पर हमारी दादी जिनको न हमने देखा था न ही उनके बारे में कभी कुछ सुना था की हन्त्या आगई।पता चला कि इस दादी को हम नहीं जानते हैं क्योंकि उनकी मृत्यु के बाद हमारे दादा जी ने दूसरी शादी कर ली थी और हमने वही दादी देखी थीजो इस समय जीवित है।इस आत्मा ने हमसे पिताजी से माताजी से खूब लिपट लिपट कर रोते हुए उलाहना दिया कि तुम लोग मुझे याद भी नहीं करते हो ।बाद में आशीर्वाद दे कर यह आत्मा चली गयी और वो ताई फिर सामान्य स्थिति में हो गईं ।फिर बारी आई देवताओं की जगरी जी ने जागर लगा लगा कर कई लोगोँ को नचाया।यह दृश्य ओर घटना हमारे लिए एक अनबूझ पहेली बनी रही ।यह हन्त्या ,देवता शच हैं या झूट ,कोई निष्कर्ष न निकाल सका।विज्ञान के इस युग में आधुनिक शिक्षा से यह प्रश्न अनुत्तरित रहा।फिर दस पन्द्रह वर्षों बाद गांव जाने का फिर संयोग बना इस बार इच्छा हुई कि अपनी ननिहाल ,गांव में रह रही मामी जी से मिल आएं ।मेरे साथ मेरे दो छोटे भाई जिन्होंने इससे पहले पहाड़ कभी देखा भी न था वे भी साथ में थे।हमलोग लंबा दस बारह किलोमीटर का लंबा सफर पूरा करके ननिहाल पहुंचे जहां मामी को छोड़कर हमें पहचाननेवाला भी कोई न था।अगले दिन मामी ने शाम को बताया कि गांव में परिवार में किसी के घर मे नागरजा की पूजा है।जिज्ञासाबस हम तीनों भाई जाकर पूजा में बैठ गए,जगरी ने जागर शुरू ही कि थी कि जिस घर में पूजा हो रही थी उस घर कि एक बहू पर हन्त्या आ गयी और उसने हम तीनों भाइयों को गले लगाकर खूब रोते रोते हमलोगों का ओर हमारे माताजी पिताजी का हाल चाल पूछा औऱ फिर कुछ देर में आशीर्वाद ओर याद रखने की बात कहकर वह शान्त हो गईं।ननिहाल में ऐसा हम लोगों को कोई जाननेवाला था ऐसा हमने सुना भी न था।बाद में जिस घर में पूजा होरही थी उन लोगों के घर के बुजुर्गों ने बताया कि हमारी एक बुआ इस घर में ब्याही थी और तीस चालीस साल पहले उनकी मृत्यु हो गई थी जिसने न तो हमें देखा था न ही उसके सामने हम लोग पैदा ही हुए थे ,न ही उस बहू ने जिस पर वह आई थी।इस घटना ने तो सोचने को औऱ मजबूर कर दिया कि यह मृतात्मायें अपनी परिवार की आनेवाली पीढ़ी को भी बिना बताए पहचानने में समर्थ हैं ऐसा क्यों और कैसे होता है। इस विद्या के जानकारों से यह दुर्लभ ज्ञान अगलीपीढ़ी को दिलाना होगा नहीं तो आनेवाले समय में लोग इसे कोरी कल्पना ,गप मिथ्याभाषण कहने लग जाएंगे।

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  11. Jaagar sache h....or koi khani isnko bdal nhi Sakti...ye purwjo se chli as this Partha h.....

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  12. देवभूमि में ये सब संभव है , हमारी आस्था और विश्वास का प्रतीक है ये सब।।

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  13. Nai galT h ye sab m ni manTa ki aisa kuch hota h isme jagar se mra hua insan kisi dusre ki bodY m aana phir apna dukh bYan krna mahaj ik drama h bs that'it
    Aur ase kuch h to hm phadiyOn m hi kyon hoTa h auron ke bhi purwaj hote hn sabhi unse pyar karte hn jo chla gya wo gya hn ye bat sahi h puja kro but kisi pe devta aana m ni believe krta inpe

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  14. बृजराजसिंह रावत16 अगस्त 2017 को 7:16 pm बजे

    हमारे यहां हन्त्या उस आत्मा को बोला जाता है जो अल्पायु में काल का ग्रास बन गया हो किसी बीमारी की वजह से या एक्सीडेंट की वजह से। जो सब कुछ भोग कर मरते हैं अगर उनकी आत्मा अवतरित होती है तो उनको घरभूत बोलते हैं। हन्त्या शब्द सिर्फ ढ़केल में मृत्यु पाए लोगों के लिए उपयोग किया जाता है। और मैं इन सब बातों में थोड़ा विश्वास करता हूं थोड़ा नहीं। ये सब कुछ जागरी पर निर्भर करता है कि वो कितना ईमानदारी से अपना फर्ज निभा रहा है। कुछ वाकयों में जागरी लालच में आकर प्रपंच करवाते हैं। और कुछ पर हमको विश्वास करना ही पड़ता है।

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    1. बृजराजसिंह रावत16 अगस्त 2017 को 7:19 pm बजे

      ढ़केल को अधकाल पढ़ने का कष्ट करें। गलती हेतु क्षमा।

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  15. मै आप सभी लोगो के बातों से सहमत हुॅ । लेकिन ये बात समझ नही आती है कि ये हनत्या या नाचना हमारे पहाडो मे ही क्यों होती है ऐसा नही कि और प्रान्ततों मे नही होता है। होता है लेकिन इतना नही होता है जितना हमारे पहाडों में । प्रत्येक घर मे यही समस्या है क्या सभी लोगो को मनोवैज्ञानिक समस्या है। कई लोग तो इस समस्या से बहुत परेशान है । इस बारे मे ना समझ हुं। जो भी गलती होगी उसके लिऐ माफी चाहुंगा

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    1. Mahesh bhai, UTTARAKHAND devo ki bhoomi h. Aur yhn ke pahado ghation(valley) gadero me kai rahasye h jinse bahri dunia aanjan h, pahado me rehna bhut difficult hota h, aur purane wqt me jb bhi koi powerful insaan ki death hoti thi to uski pooja ki jati thi, aage chal kr ve shaktiya kuldevta bn chuki h. Samasya kisi ek ko ho skti h, 2 ko ho skti h, pure rajya ke logon ko to nhi..? Meri dadi jo iss wqt 94yrs ki h, 12saal me unki shadi ho gyi thi, gaw ki sabse purani h. Unke mayke me har 12saal me ek baar pandav pooje jate h, aur meri dadi 5pandavo ki bhen nachti h, mere dadi ke 5 bhai h, jin me se ek ki death ho chuki h, baki 4bhai bhi 90+ ho chuke h, agli pooja 2026 me hogi. Meri dadi batati thi ki hamare pahad ki choti ko "paryun-dand" kha jata h, mtlb pariyon ka dand. Dadi batati thi vhn pehle pariyan nivaas krti thi. Jinhe aachri bhu bola jata h. Mgr aab bdhte kukarmo ki wjh se vhn se jaa chuki h, uss dand(pahad ki choti) par logon dwara aag bhi lagai jaa chuki h, aise bhut si ghatnaye h jo hame aur aane wali generation ke liye mehej ek kahani bn ke reh jayegi. Aapne khait parvat ke bare me bhi suna hoga, vhn 9 aachri(pariyan) unka bhai aur sem Nagraja rehte h. Khait parvat pariyon ka desh naam se bhi jana jata h, vo bhi kai gaw me pooji jati h aur logon ki kul ki rksha krti h. Jeetu Bagdwal ki khata bhi vikhyat h, ve bhi kul devta ke roop me pooje jate h, bhut si aesi kathaye h jo aaj ki generation ke liye sirf ek kahani aur rahasya bn kr reh gya h.
      Baat krta hu apne kul devi-devta ki. Mere kul devta nou-narsing, nagraja, aur Maa Kaalratri h, aur bhut se sthaniya devi-devta h jinhe pitr ya poorvaj kha jaa skta h.
      Mene abhi tk kai dev-jagar, hantya-jagar aur pitra-jagar dekhe h. Me logon ko nachte hue dekhta tha, hr saal diwali me gaw ke chowk pr mandaan lgta h, 12bhen devi sahit kai deviya khushi se jhoomti h dhol sagar ki taal pr, meri dadi bhi unme se ek devi nachti h, dekhne me aisa nhi lgta koi 90+ nach rha hu, Sem Mukhem tk paidal Yatra bhi kari h dadi ne 86ki age me, Neelkanth mahadev mandir se. Mana jaye to pahadi gaw me rehne wale bhut mehanti aur lambi umr jeete h
      Me Delhi me rehta hu aur nov-dec me 2 shadiyan thi, to me diwali se pehle hi gaw chla gya, diwali nikli aur 11dec tk dusri shadi bhi complete ho gyi, jb me shadi me apne doston ke sath nach rha tha to ham me se ek alag tarike se nachne lga, uski aankhe bnd thi, ham khuch smjh nhi paye the, uske baad vo dono haaton ko failate hue dhol sagar ke pass chla gya aur cheekh kr rone lga, dhol rokkr daas ne grhwali me pucha, kon h tu, to usne jvb diya " kaali hu me, Kaalratri hu me" fir aage pucha gya to kha ki "bhut preshan hu me, 18saal se mujhe nhi pooja inhone mujhe, mene bhut ishare kiye fir bhi nhi pooja mujhe, me bhut preshan hu", cheekh kr rone lgi, uske baad unhone daas ko bola ki me aadhe ghte tk nachungi, mera jagar lagao katha lagao, fir jakar ek chimta chulhe me daal diya, daas ne jagar lagaya, 10 mint tk kilki marte hue nachi fir vo shsnt ho gya aur uski didi chillate hue apne baal nochte hue naachne lgi, me bgl me hi khada tha aur bhut drr lg rha tha uss wqt, uske khuch der baad uske papa par nachi aur jakar aangaro me hath dekar laal hua chimta utha liya, unke hath se bhap uth rha tha, ye natak to nhi ho skta, kisi aam insaan me itni taqat to nhi ki vo grm chimta pkde rkhe, uske baad dhol Sagar ki garzan tez hoti h to khuch der baad uske papa chimta ger deta h aur vps mera dost chimte ko utha kr jeebh bhr nikal ke lagane lgta h, bhut hi dravana drishya tha. Karib 15 minute ke baad jb shakti sharir ko chor deti h to vo chimta chor deta h aur hathon ko jhatakta h, uske hathon me chale pd chuke the, aur uske papa ke hath kaale pd chuke the, un dono ka hath thik hone me 1hfta lga tha, uske baad maa ki jagari lgi hui thi.
      Fir me bhi 17dec ko Delhi vps aagya aur mera is topic pr interest aur bhi bdh gya.
      Mene bhi deviya shakti ko mehsoos kiya , aage comment milne pr apna experience bataunga

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  16. सच ओर छलावा क्या है ये कोंन जाने पर एक बात जिसने अपनी आंखों से देखा उसके लिए सच ओर जिसने नहींदेख उसके लिए झूट ओर इसको बीमारी कहने वालों जरा बालाजी जाकर देखो और जरा उनका इलाज अपने मनोवैज्ञानिक तरीको से करने की कोशिश करो तो मने

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  17. बहुत खूब। उत्तराखंड की संस्कृति और परम्परा को संजोने के लिए धन्यवाद - आप मेरे ब्लॉग को पढ़ सकते है नरसिंह देवता के बारें में

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