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गाय या भैंस का बच्चा होने पर शुद्धीकरण के लिये होती है बधाण देवता की पूजा। फोटो... श्रीकांत घिल्डियाल |
भुला बिपिन पंत का फोन आया ''भैजी हमारे यहां बालण या बधाण देवता की भी पूजा होती है। घसेरी में इस पर लिखना।'' बिपिन का फोन आने के बाद बचपन की कई यादें ताजा हो गयीं। घर में गाय या भैंस के व्याहने के बाद हम 11वें दिन का इंतजार करते थे जबकि बालण या बधाण देवता की पूजा होती थी। घर में कई तरह के पकवान बनते थे और हमारा मतलब सिर्फ इन पकवानों से होता था। बड़ी चाचीजी कपोत्री देवी ने गाय और भैंस के बालण या बधाण पूजन के बारे में कुछ जानकारी दी। गाय का बछड़ा होने पर 11वें दिन होने वाली पूजा को बालण देवता का पूजन कहते हैं। इस दिन घर में लगड़ी (आटे के साथ चीनी को घोल कर तवे पर बनाया जाने वाला पकवान) बनती है। बालण पूजन उस खूंटे (कीलू) पर ही की जाती है जिस पर गाय को बांधा जाता है। भैंस के व्याहने पर 11वें दिन होने वाली पूजा बधाण पूजन कहते हैं। इस दिन हलुवा और खीर बनती है। बधाण पूजन के लिये मेरे गांव में पंदेरा (जल स्रोत) के पास एक जगह नियत है। गांव में इस जगह को ही बधाण या बदवाण कहा जाता है। यहां पर एक मोटे खड़ीक के पेड़ की जड़ पर बधाण देवता स्थापित है और वहीं पर यह पूजा की जाती है। गांव के बच्चे भी यहां पर हलुवा और खीर का आनंद लेने के लिये पहुंच जाते हैं।
प्रत्येक गांव में बालण या बधाण पूजन की अपनी विधि है। कई गांवों में बालण पूजन के लिये भी जगह नियत होती है। कई लोग 11वें दिन अपने कुल देवता या कुल देवी को दूध चढ़ाकर यह पूजा करते हैं। कर्णप्रयाग के विषय में कहा जाता है कि वहां कभी प्राचीन चट्टी थी जहां पर गाय या भैंस के व्याहने के बाद बधाण देवता की पूजा की जाती है। दूर . दूर से गांवों के लोग इस स्थल पर बधाण देवता का पूजन करने के लिये आते थे। यह स्थान 1894 में आयी बाढ़ में बह गया था। यह जगह वर्तमान के राम मंदिर के पास में है। सवाल उठता है कि आखिर यह पूजा क्यों? पंडित सुरेंद्र प्रसाद डोबरियाल ने इस बारे में बताया, '' जब इंसान का बच्चा होता है तो 11वें दिन नामकरण करके घर का शुद्धीकरण किया जाता है। इसी तरह से जब गाय या भैंस का बच्चा होता है तो उसके लिये भी शुद्धीकरण की जरूरत पड़ती है और इसलिए बधाण पूजन होता है। इससे पहले आप दूध का देव कार्यों के लिये उपयोग नहीं कर सकते लेकिन इसके बाद दूध को मंदिर आदि हर जगह पर चढ़ाया जा सकता है। ''
बधाण या बालण देवता की पूजा शुद्धीकरण के साथ ही धन और वैभव आदि की प्राप्ति के लिये भी जाती है। विशेषकर यह गौमाता की भी पूजा है। वेदों में कहा गया है की “गोमय वसते लक्ष्मी” अर्थात गोबर में लक्ष्मी का वास है और “गौमूत्र धन्वन्तरी” अर्थात गौमूत्र में भगवान धन्वन्तरी का निवास है। इसलिए बालण या बधाण पूजन के समय शुद्धीकरण की शुरुआत गौमूत्र से की जाती है और गाय के गोबर से गणेश जी भी बनाये जाते हैं।
गाय का बालण पूजन में लगड़ी, घी, दूध और दही रखी जाती है। कई जगह गाय के खूंटे पर ही सांकेतिक रूप से गणेश जी को स्थापित करके बालण पूजन किया जा सकता है। खूंटे में ही दूध, दही और घी का अर्पण करना पड़ता है। वहां पर धूप अगरबत्ती जलायी जाती है और लगड़ी का भोग चढ़ाया जाता है। भैंस के बधाण पूजन में हलुवा, खीर, दही, दूध, घी और उसी दिन तैयार की गयी छांछ से पूजा की जाती है। दोनों ही तरह के पूजन में कुत्ता और कौआ के लिये सबसे पहले भोजन निकाला जाता है।
बधाण या बालण पूजन में किस मंत्र का जाप किया जाए। किसी भी पूजा के लिये 'गायत्री मंत्र' सबसे उत्तम होता है। आप 11 बार ''ॐ भूर्भुवः स्वः तत्सवितुर्वरेण्यं भर्गो देवस्य धीमहि धियो यो नः प्रचोदयात् '' का जाप करके पूजा संपन्न कर सकते हैं। वैसे बेहतर है कि शुरुआत गणेश पूजन से की जाए। पंडित डोबरियाल जी ने भी एक मंत्र बताया, ''एक दंताये धि विधमाहि, वक्रतुंडाये धिमाही, तनोदंति प्रचोदयात।'' इस मंत्र का आप 11 या 21 बार जाप करके बधाण या बालण पूजन संपन्न कर सकते हैं। एक अन्य मंत्र है जिससे बधाण पूजन किया जा सकता है। यह मंत्र है... ''ॐ नमो ब्रत्पत्ये नमो गणपतये नम: प्रथम पतये नमस्तेस्तु, लम्बोदराय क दंताये विघ्नविनासिने शिव सुताये श्री वरद मूर्तये नमो नम। ''
हर गांव, हर क्षेत्र की संस्कृति में कुछ बदलाव पाया जाता है। आपके यहां भी बालण या बधाण पूजन की विधि अलग होगी। मैंने यहां पर जो तरीका बताया है वह पौड़ी गढ़वाल में बसे मेरे गांव स्योली में होने वाली बधाण पूजा पर केंद्रित है। आप अपने अनुभवों, रीतियों को यहां पर (नीचे टिप्पणी वाले कालम में) जरूर साझा करें। आपका धर्मेन्द्र पंत
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