धर्मेन्द्र मोहन पंत
श्रीनगर गढ़वाल का महल (1882) सौजन्य : भारतीय भू वैज्ञानिक सर्वेक्षण |
पहला ... नागपुर गढ़ : यह जौनपुर परगना में था। यहां नागदेवता का मंदिर है। यहां का अंतिम राजा भजनसिंह हुआ था।
दूसरा ... कोल्ली गढ़ : यह बछवाण बिष्ट जाति के लोगों का गढ़ था।
तीसरा ... रवाणगढ़ : यह बद्रीनाथ के मार्ग में पड़ता है और रवाणीजाति का होने के कारण इसका नाम रवाणगढ़ पड़ा।
चौथा ... फल्याण गढ़ : यह फल्दकोट में था और फल्याण जाति के ब्राहमणों का गढ़ था। कहा जाता है कि यह गढ़ पहले किसी राजपूत जाति का था। उस जाति के शमशेर सिंह नामक व्यक्ति ने इसे ब्राह्मणों का दान कर दिया था।
पांचवां ... वागर गढ़ : यह नागवंशी राणा जाति का गढ़ था। इतिहास के पन्नों पर झांकने पर पता चलता है कि एक बार घिरवाण खसिया जाति ने भी इस पर अधिकार जमाया था।
छठा ... कुईली गढ़ : यह सजवाण जाति का गढ़ था जिसे जौरासी गढ़ भी कहते हैं।
सातवां ... भरपूर गढ़ : यह भी सजवाण जाति का गढ़ था। यहां का अंतिम थोकदार यानि गढ़ का प्रमुख गोविंद सिंह सजवाण था।
आठवां ... कुजणी गढ़ : सजवाण जाति से जुड़ा एक और गढ़ जहां का आखिरी थोकदार सुल्तान सिंह था।
नौवां ... सिलगढ़ : यह भी सजवाण जाति का गढ़ था जिसका अंतिम राजा सवलसिंह था।
दसवां ... मुंगरा गढ़ : रवाई स्थित यह गढ़ रावत जाति का था और यहां रौतेले रहते थे।
11वां ... रैका गढ़ : यह रमोला जाति का गढ़ था।
12वां ... मोल्या गढ़ : रमोली स्थित यह गढ़ भी रमोला जाति का था।
13वां ... उपुगढ़ : उद्येपुर स्थित यह गढ़ चौहान जाति का था।
14वां ... नालागढ़ : देहरादून जिले में था जिसे बाद में नालागढ़ी के नाम से जाना जाने लगा।
15वां ... सांकरीगढ़ : रवाईं स्थित यह गढ़ राणा जाति का था।
16वां ... रामी गढ़ : इसका संबंध शिमला से था और यह भी रावत जाति का गढ़ था।
17वां ... बिराल्टा गढ़ : रावत जाति के इस गढ़ का अंतिम थोकदार भूपसिंह था। यह जौनपुर में था।
18वां ... चांदपुर गढ़ : सूर्यवंशी राजा भानुप्रताप का यह गढ़ तैली चांदपुर में था। इस गढ़ को सबसे पहले पवांर वंश के राजा कनकपाल ने अपने अधिकार क्षेत्र में लिया था।
19वां ... चौंडा गढ़ : चौंडाल जाति का यह गढ़ शीली चांदपुर में था।
20वां ... तोप गढ़ : यह तोपाल जाति का था। इस वंश के तुलसिंह ने तोप बनायी थी और इसलिए इसे तोप गढ़ कहा जाने लगा था। तोपाल जाति का नाम भी इसी कारण पड़ा था।
21वां ... राणी गढ़ : खासी जाति का यह गढ़ राणीगढ़ पट्टी में पड़ता था। इसकी स्थापना एक रानी ने की थी और इसलिए इसे राणी गढ़ कहा जाने लगा था।
22वां ... श्रीगुरूगढ़ : सलाण स्थित यह गढ़ पडियार जाति का था। इन्हें अब परिहार कहा जाता है जो राजस्थान की प्रमुख जाति है। यहां का अंतिम राजा विनोद सिंह था।
23वां ... बधाणगढ़ : बधाणी जाति का यह गढ़ पिंडर नदी के ऊपर स्थित था।
24वां ... लोहबागढ़ : पहाड़ में नेगी सुनने में एक जाति लगती है लेकिन इसके कई रूप हैं। ऐसे ही लोहबाल नेगी जाति का संबंध लोहबागढ़ से था। इस गढ़ के दिलेवर सिंह और प्रमोद सिंह के बारे में कहा जाता था कि वे वीर और साहसी थे।
25वां ... दशोलीगढ़ : दशोली स्थित इस गढ़ को मानवर नामक राजा ने प्रसिद्धि दिलायी थी।
26वां ... कंडारागढ़ : कंडारी जाति का यह गढ़ उस समय के नागपुर परगने में थे। इस गढ़ का अंतिम राजा नरवीर सिंह था। वह पंवार राजा से पराजित हो गया था और हार के गम में मंदाकिनी नदी में डूब गया था।
27वां ... धौनागढ़ : इडवालस्यू पट्टी में धौन्याल जाति का गढ़ था।
28वां ... रतनगढ़ : कुंजणी में धमादा जाति का था। कुंजणी ब्रहमपुरी के ऊपर है।
29वां ... एरासूगढ़ : यह गढ़ श्रीनगर के ऊपर था।
30वां ... इडिया गढ़ : इडिया जाति का यह गढ़ रवाई बड़कोट में था। रूपचंद नाम के एक सरदार ने इस गढ़ को तहस नहस कर दिया था।
31वां ... लंगूरगढ़ : लंगूरपट्टी स्थिति इस गढ़ में भैरों का प्रसिद्ध मंदिर है।
32वां ... बाग गढ़ : नेगी जाति के बारे में पहले लिखा था। यह बागूणी नेगी जाति का गढ़ था जो गंगा सलाण में स्थित था। इस नेगी जाति को बागणी भी कहा जाता था।
33वां ... गढ़कोट गढ़ : मल्ला ढांगू स्थित यह गढ़ बगड़वाल बिष्ट जाति का था। नेगी की तरह बिष्ट जाति के भी अलग अलग स्थानों के कारण भिन्न रूप हैं।
34वां ... गड़तांग गढ़ : भोटिया जाति का यह गढ़ टकनौर में था लेकिन यह किस वंश का था इसकी जानकारी नहीं मिल पायी थी।
35वां ... वनगढ़ गढ़ : अलकनंदा के दक्षिण में स्थित बनगढ़ में स्थित था यह गढ़।
36वां ... भरदार गढ़ : यह वनगढ़ के करीब स्थित था।
37वां ... चौंदकोट गढ़ : पौड़ी जिले के प्रसिद्ध गढ़ों में एक। यहां के लोगों को उनकी बुद्धिमत्ता और चतुराई के लिये जाना जाता था। चौंदकोट गढ़ के अवशेष चौबट्टाखाल के ऊपर पहाड़ी पर अब भी दिख जाएंगे।
38वां ... नयाल गढ़ : कटुलस्यूं स्थित यह गढ़ नयाल जाति था जिसका अंतिम सरदार का नाम भग्गु था।
39वां ... अजमीर गढ़ : यह पयाल जाति का था।
40वां ... कांडा गढ़ : रावतस्यूं में था। रावत जाति का था।
41वां ... सावलीगढ़ : यह सबली खाटली में था।
42वां ... बदलपुर गढ़ : पौड़ी जिले के बदलपुर में था।
43वां ... संगेलागढ़ : संगेला बिष्ट जाति का यह गढ़ यह नैल चामी में था।
44वां ... गुजड़ूगढ़ : यह गुजड़ू परगने में था।
45वां ... जौंटगढ़ : यह जौनपुर परगना में था।
46वां ... देवलगढ़ : यह देवलगढ़ परगने में था। इसे देवलराजा ने बनाया था।
47वां ... लोदगढ़ : यह लोदीजाति का था।
48वां ... जौंलपुर गढ़
49वां ... चम्पा गढ़
50वां ... डोडराकांरा गढ़
51वां ... भुवना गढ़
52वां ... लोदन गढ़
(स्रोत : गढ़वाल का इतिहास, पं. हरिकृष्ण रतूड़ी)
(स्रोत : गढ़वाल का इतिहास, पं. हरिकृष्ण रतूड़ी)
आपका धर्मेन्द्र पंत
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Heartiest thanks for such a great information about our roots.
जवाब देंहटाएंGreat Great Information abt our Garhwal ..
जवाब देंहटाएंKuldeep Rawat
Vill - Gajera
Janda Devi ,..
bahut hi achi jankari cha...jeka barama bahut hi kam logo the pata hwalu
जवाब देंहटाएंJo Ghansali side rana hai wo kon se garh k hai?
जवाब देंहटाएंBadiyargarh
हटाएंबहुत अच्छी ऐतिहासिक जानकारी दी सर आपने
हटाएंbut why we have been told since our birth that our ancestor belongs to Rajasthan.
जवाब देंहटाएंपहाड़ों में अधिकतर जातियां बाहर से आयी हैं। कुछ जनजातियां ही यहां की मूल निवासी हैं। पंवार वंश के पहले राजा कनकपाल मालवा से यहां आये थे। उनके साथ कई अन्य जातियों के भी लोग आये थे। पंत मराठा से आकर कुमांऊ में बसे और वहां से गढ़वाल में आये। जोशी और पांडे के लिये भी यही कहा जा सकता है। राजस्थान से कुछ जातियां आकर गढ़वाल में बसी हैं।
हटाएंइस आलेख में उन गढ़ों की जानकारी दी गयी है जो कभी गढ़वाल में हुआ करते थे। अगर किसी एक गढ़ पर किसी जाति का आधिपत्य था तो इसका मतलब यह नहीं कि उस गढ़ में केवल उसी जाति के लोग रहा करते थे। मैं गढ़वाल की तमाम जातियों पर जानकारी जुटाने की कोशिश कर रहा हूं। तब शायद सभी सवालों के सटीक जवाब के साथ आपके सामने उपस्थित हो पाऊंगा।
जवाब देंहटाएंpant ji bangari rawat ka aap kon se gad se hi
जवाब देंहटाएंpant ji bangari rawat kon se gad se hi
जवाब देंहटाएंबंगारी रावत खुद को सूर्यवंशी मानते हैं लेकिन कुमांऊ का इतिहास लिखने वाले श्री बद्रीदत्त पांडे ने इन्हें कत्यूरियों की संतान बताया है। कुछ इतिहासकार इन्हें पंवारवंशी मानते हैं।
हटाएंनेगी लक्षमण के बंशज है।गोत्र है कोंडिल
जवाब देंहटाएंनेगी लक्षमण के बंशज है।गोत्र है कोंडिल
जवाब देंहटाएंमुंगरा गढ़ के बारे मे विस्तार से बतायें की वहाँ रौतेला जाती के लोग कहाँ से आए ओर केसे आयें
जवाब देंहटाएंश्री बद्रीदत्त पांडे ने अपनी पुस्तक 'कुमांऊ का इतिहास' में लिखा है कि ''रौतेला चंदों की संतान थे।'' यह जाति कुमांऊ से ही गढ़वाल में आयी। पं. हरिकृष्ण रतूड़ी ने 'गढ़वाल का इतिहास' में बताया है रौतेला की पूर्व जाति परमार थी और वे धार (गुजरात) के रहने वाले थे।
हटाएंमे मुंगरा गड़ के रौतेला के बारे में जानना चाह रहा था की मुंगरा गड़ में कब ओर केसे आए यदि आपको इस बारे मे जानकारी हे तो कृपया बताएँ
जवाब देंहटाएं47वां गढ़ लोदी जाति का होना बताया है इस जाति के बारे में जानकारी दें।धन्यवाद्
जवाब देंहटाएंसर कौरव राजपूत व पयाल जाती केबारे म बताएब
जवाब देंहटाएंSir tell me about Bangari cast history in Uttarakhand. Please sir
जवाब देंहटाएंPant ji agar koi kitaab ho jisme garhwal or kumaun ka itihaas ho jarur bateye
जवाब देंहटाएंप्रणाम गुरु देव
जवाब देंहटाएंजय जिया
बंगारी रावत पाली पता का वंश कया हे????