शनिवार, 24 जनवरी 2015

गढ़वाल के राजा के लिये जब गंगा ने बदली धारा

                           
       पिछली पोस्ट में हमने रानी कर्णावती का जिक्र किया था। आज हम उनके पोते मेदिनीशाह के बारे में आपको एक रोचक जानकारी से अवगत कराएंगे। पृथ्वीपति शाह के पुत्र मेदिनीशाह 1667 के आसपास राजा बने थे। माना जाता है कि मेदिनीशाह की औरंगजेब से मित्रता हो गयी थी और इसलिए उन्हें अपनी दादी या पिता की तरह मुगलों से जंग नहीं लड़नी पड़ी थी।
       मेदिनीशाह को इसलिए अधिक याद किया जाता है क्योंकि कहा जाता है कि एक बार उनके लिये गंगा नदी ने भी अपनी धारा बदल दी थी। इसमें कितनी सच्चाई है कहा नहीं जा सकता। गढ़वाल के राजा को तब बदरीनाथ का अवतार भी माना जाता था और हो सकता हो कि राजा ने लोगों के सामने खुद को 'भगवान' साबित करने और अपने खिलाफ किसी भी तरह के विद्रोह को दबाने के लिये के लिये यह किस्सा गढ़कर फैला दिया हो, क्योंकि औरंगजेब से करीबी रिश्ते रखने और इस मुगल शासक के दरबार में जाकर कुछ समय उसकी राजधानी में बिताने के कारण तब हो सकता है कि मेदिनीशाह से जनता नाराज रही हो। यह भी हो सकता है कि राजा के पास तब ऐसे कुछ कुशल कारीगर रहे हों जिन्होंने रातों रात गंगा की धारा बदल दी हो। वास्तव में तब क्या हुआ था इसकी सही जानकारी किसी को नहीं है। यह महज एक किस्सा है जिसके बारे में कहा जाता है कि मेदिनीशाह के राज्यकाल के दौरान इस तरह की घटना घटी थी।
हरिद्वार में नील धारा
     किस्सा इस तरह से है कि हरिद्वार में जब कुंभ मेला लगता था तो गढ़वाल का राजा हरी जी के कुंड में सबसे पहले स्नान करता था। उसके बाद ही बाकी राजाओं का नंबर आता था। जिस साल की यह घटना है उस साल कहा जाता है कि कई राजा हरिद्वार पहुंचे थे। उन सभी ने सभा करके तय किया कि पर्व दिन पर सबसे पहले गढ़वाल का राजा स्नान नहीं करेगा। सभी राजा इस पर सहमत हो गये। यहां तक कि गढ़वाल के राजा को किसी तरह की जबर्दस्ती करने पर जंग के लिये तैयार रहने की चेतावनी भी दी गयी। बाकी सभी राजा एकजुट थे और गढ़वाल का राजा अलग थलग पड़ गया। मेदिनीशाह ने कहा कि यह पुण्य क्षेत्र है और यहां कुंभ मेला जैसा महापर्व का आयोजन हो रहा है इसलिए रक्तपात सही नहीं है। अन्य राजा ही पहले स्नान कर सकते हैं। उन्होंने अन्य राजाओं के पास जो संदेश भेजा था उसमें आखिरी पंक्ति यह भी जोड़ी थी कि, ''यदि वास्तव में गंगा मेरी है और उसे मेरा मान सम्मान रखना होगा तो वह स्वयं मेरे पास आएगी। '' बाकी राजा इस पंक्ति का अर्थ नहीं समझ पाये। वे अगले दिन गढ़वाल के राजा से पहले कुंड में स्नान करने की तैयारियों में जुट गये।
      कहा जाता है कि गढ़वाल के राजा ने चंडी देवी के नीचे स्थित मैदान पर अपना डेरा डाला और मां गंगा की पूजा में लीन हो गये। बाकी राजा सुबह हरि जी के कुंड यानि हरि की पैड़ी में स्नान के लिये पहुंचे लेकिन वहां जाकर देखते हैं कि पानी ही नहीं है। मछलियां तड़प रही थी। गंगा ने अपना मार्ग बदल दिया था। वह गढ़वाल के राजा के डेरे के पास से बह रही थी। राजा मेदिनीशाह ने गंगा पूजन करने के बाद स्नान किया। जब अन्य राजाओं को पता चला तो उन्हें अपनी गलती का अहसास हुआ। उन्हें भी लगा कि गढ़वाल का राजा वास्तव में भगवान बदरीनाथ का अवतार हैं और इसलिए किसी अनहोनी से बचने के लिये सभी राजा तुरंत मेदिनीशाह के पास पहुंचे। उनसे माफी मांगी और फिर स्नान किया। उस रात गंगा ने जब अपना मार्ग बदला तो जो नयी धारा बनी उसे नील धारा कहा जाता है। इसके बाद यह तय हो गया कि किसी पर्व के समय गढ़वाल की राजा की उपस्थिति में वही सबसे पहले स्नान करेंगे। आज यह नील धारा पक्षी विहार के कारण अधिक प्रसिद्ध है।

 आपका धर्मेन्द्र पंत

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