यह प्यारा ऊंचा गढ़वाल
विस्तृत स्वर्णिम
भारत का भाल
यह प्यारा ऊंचा गढ़वाल ।।
गिरि शिखरों से घिरा
हुआ है
तृण कुसुमों से हरा
हुआ है
विविध वृक्षों से
भरा हुआ है
जैसे शीशम, सेब और साल
यह प्यारा ऊंचा गढ़वाल ।।
गिरी गर्त से भानु
चमकता
मानो अग्निवृत दहकता
बहुरंगी पुष्पाहार
महकता
ऐसा मनोहर प्रात:काल
यह प्यारा ऊंचा गढ़वाल ।।
शीतल हवा यहां है
चलती
निर्मल, निश्चल नदियां बहती
सबको सहज बनने को
कहती
शीत विमल की ये हैं
मिसाल
यह प्यारा ऊंचा गढ़वाल ।।
शुभ्र हिमालय झांक
रहा है
विश्व सत्य को आंक
रहा है
शांति प्रियता मांग
रहा है
जो भारत का ताज विशाल
यह प्यारा ऊंचा गढ़वाल ।।
बद्री केदार के मंदिर
पावन
उपवन यहां के हैं
मनभावन
मानो वर्ष पर्यंत
हो सावन
यह प्रकृति की सुंदर
चाल
यह प्यारा ऊंचा गढ़वाल ।।
नहीं कलह और शोर
यहां है
नहीं लुटेरे चोर
यहां हैं
लगता निशदिन भोर
यहां है
शांति एकता का यह
हाल
यह प्यारा ऊंचा गढ़वाल ।।
जगह जगह खुलते औषधालय
नवनिर्मित हो रहे
विद्यालय
जागरूक गढ़वाली की
लय
भौतिक विकास करता
गढ़वाल
यह प्यारा ऊंचा गढ़वाल ।।
हो रहा अविद्या का
जड़मर्दन
फैले नव विहान का
वर्जन
नव शैलों का हो रहा
सृजन
गिरि चलें विकास
की ले मशाल
यह प्यारा ऊंचा गढ़वाल
विस्तृत स्वर्णिम
भारत का भाल
यह प्यारा ऊंचा गढ़वाल ।।
लेखक / कवि का परिचय
जितेंद्र मोहन पंत। जन्म 31 दिसंबर 1961 को गढ़वाल के स्योली गांव में। राजकीय महाविद्यालय चौबट्टाखाल से स्नातक। इसी दौरान पहाड़ और वहां के जीवन पर कई कविताएं लिखी। 'यह प्यारा ऊंचा गढ़वाल' नामक उपरोक्त कविता 1978 में लिखी गयी थी। बाद में सेना के शिक्षा विभाग कार्यरत रहे। 11 मई 1999 को 37 साल की उम्र में निधन।
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