---- बिन्देश्वर या बिनसर महादेव : कभी पांडवों ने की थी यहां पूजा
---- पहाड़ी कौथिगौं की शान जलेबी की कहानी
.... गुणों की खान है मीठा करेला (परमला, ककोड़ा)
---- ताड़केश्वर धाम : भगवान शिव की विश्रामस्थली
---- स्वास्थ्य के लिये सर्वोत्तम है पंदेरा का पानी
---- उत्तराखंड की शादियों का अहम अंग है 'बान'
---- उत्तराखंड के आभूषण : गुलबंद से लेकर तगड़ी तक
---- खिचड़ी के बहाने गिंजड़ी की याद
---- गढ़वाली शादियों में गीत—गाली
--- आओ फिर से बोलें 'ब्वे, बुबाजी'
.... शैव पीठ एकेश्वर में 'खड़रात्रि' से पड़ी थी कौथीग की नींव
.... कुमांउनी परंपरा : देवर—भाभी और साली—जीजा को करते हैं टीका
.... आओ मनायें उतरैणी—मकरैणी और घुघुतिया
.... मिक्सी रानी से पिछड़ रहा है राजा सिलौटा यानि सिलबट्टा
... जौनसार के दो गांवों के बीच होता है अद्भुत 'गागली युद्ध'
.... घी संक्रांति या घी—त्यार : घी नहीं खाया तो बनोगे घोंघा
.... सम्मान के साथ दीजिए न्यौता (न्यूतु)
.... गांव की मेरी होली और होली गीत
.... रोमन देवी फ्लोरा उत्तराखंड में बन गयी फूलदेई
--- पहाड की पलटा प्रथा यानि पड्याली
.... गाय, भैंस के व्याहने पर होती है बधाण देवता की पूजा
.... पिठाई शिष्टाचार है, दक्षिणा नहीं
.... गुणों की खान है कोदा यानि मंडुआ
.... आओ मनायें बग्वाल और खेलें भैला
.... देवभूमि में बलि प्रथा : बोलो ना बाबा ना
.... दोण और कंडी से होती है (थी) बेटी की विदाई
.... क्या है हन्त्या? रहस्य, अंधविश्वास, वास्तविकता या जागरियों का कमाल?
.... गांवों में अब भी किलोवाट पर भारी पड़ते हैं सेर, पाथा
---- पहाड़ियों के प्रकृति प्रेम को दर्शाता है हरेला
.... झंगोरा : बनाओ खीर या सपोड़ो छांछ्या
.... चलो भैजी कौथिग जौंला
.... कभी पहाड़ी शादियों की पहचान था सरौं या छोलिया नृत्य
.... तिमला : पत्तों से लेकर फल तक सब उपयोगी
.... कभी पहाड़ी रसोईघरों की शान होता था 'भड्डू'
मार्छा के पत्तों से बनाये पैतूड पत्तों को वेसन व आटे के नमकीन घोल मे डुबोयें ओर कढाई में भाँप से पकायें फिर ले आनंद इस पकवान का
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