जलेबी। सुनकर आ गया न मुंह में पानी। जलेबी यूं तो आम भारतीय पकवान है जो उत्तर से लेकर दक्षिण और पूरब से लेकर पश्चिम तक देश के हर राज्य में फैला हुआ है। यह अलग बात है कि उत्तर भारतीय इसके ज्यादा मुरीद हैं और तिस पर भी अगर उत्तराखंड की बात करें तो यहां लगने वाले कौथीग यानि मेलों की कल्पना तो जलेबी के बिना की ही नहीं जा सकती है। अगर आप पहाड़ी हैं तो आप जरूर कौथीग गये होंगे और आपने जलेबी का भी भरपूर आनंद लिया होगा। वही गोल गोल रसीली जलेबी, जो पहाड़ के कौथिगों की पहचान हैं। जलेबी बनते हुए तो आप देख ही रहे हैं लेकिन आज हम घसेरी में बात करेंगे जलेबी के इतिहास की।
आपको यह जानकर हैरानी होगी कि जलेबी भारतीय पकवान नहीं है। भारतीयों का जलेबी से परिचय लगभग 550 साल पहले हुआ था। सच कहूं तो जलेबी का इतिहास और इसके भारत में आने की कहानी भी जलेबी की तरह गोलमोल है। एंग्लो इंडियन शब्दों के ऐतिहासिक शब्दकोष 'होबसन जोबसन' के अनुसार जलेबी शब्द अरबी के जुलाबिया या फारसी के जलिबिया से बना है। ईरान में इसे जुलाबिया कहते हैं। वहां दसवीं शताब्दी की पाक कला से जुड़ी कई किताबों में जुलाबिया का जिक्र है। कहा जाता है कि मध्यपूर्व से ही जलेबी भारत में पहुंची। मध्यपूर्व के देशों में जलेबी को जलाबिया कहा जाता है। इनमें भूमध्य सागर से लगा उत्तर अफ्रीकी देश ट्यूनीशिया भी शामिल है। लेबनान में जेलाबिया नाम की एक पेस्ट्री भी मिलती है। मध्यकाल की एक पुस्तक 'किताब—अल—तबीक' में जलाबिया नाम की मिठाई का जिक्र किया गया है। इसमें बताया गया है यह पश्चिम एशिया का मिष्ठान है।
भारत में जलेबी का सबसे पहला जिक्र 1450 में जैन धर्म के संबंध में लिखी गयी एक पुस्तक में मिलता है। कई भारतीयों का मानना है कि जलेबी भारतीय मिष्ठान है। शरदचंद्र पेंढारकर ने बनजारे बहुरूपिये शब्द में जलेबी का प्राचीन भारतीय नाम कुंडलिका बताया है। संस्कृत में इसे सुधा कुंडलिका कहते हैं। रघुनाथकृत ‘भोज कुतूहल’ नामक ग्रंथ में जलेबी बनाने की विधि बतायी गयी है। कहा जाता है कि भारत में पहले जलेबी का नाम ‘जल-वल्लिका’ था। संस्कृत भाषा में सन 1600 में एक किताब लिखी गयी थी जिसका नाम था 'गुण्यगुणाबोधिनी', इस किताब में भी जलेबी के बारे में बताया गया है। कहने का मतलब यह है कि जलेबी सिर्फ आपके मुंह में ही पानी नहीं आ रहा है असल में यह सदियों से लोगों के मुंह की लार टपका रही है। भारत में भी जगह के हिसाब से जलेबी के नाम में थोड़ा परिवर्तन आ जाता है। जैसे मराठी में जलेबी को जिलबी और बंगाली में जिलपी कहते हैं। जलेबी की तरह की ही एक मिठाई है इमरती। माना जाता है कि इसका पुराना नाम अमृती यानि अमृत के समान मीठा था लेकिन फारसी प्रभाव के कारण इसे इमरती कहा जाने लगा।
पिताजी ने बचपन में दूध के साथ जलेबी खाना सिखाया था। वह आदत अब भी नहीं छूटी है। मैं तो जा रहा हूं दूध और जलेबी का आनंद लेने। आप भी आर्डर करिये एक किलो जलेबी और फिर बताईये कि आपको जुलाबिया पसंद है या जल वल्लिका या जलेबी। आपका धर्मेन्द्र पंत
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