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रविवार, 14 जून 2015

भारत में स्विट्जरलैंड का अहसास है औली

औली प्राकृतिक सुंदरता का गढ़ है। दूर से निहारता नंदादेवी पर्वत इसकी सुंदरता में चार चांद लगाता है। 

        मैंने स्विट्जरलैंड नहीं देखा है लेकिन उसके बारे में पढ़ा और सुना है। मैंने औली देखा है, उसे महसूस किया है, उसे जिया है। औली में सिर्फ दो दिन बिताने के बाद लग गया कि ऊंचे और मनोरम पर्वतों की गोद में बसा यह स्थान स्विट्जरलैंड के कुछ दर्शनीय स्थलों की बराबरी कर सकता है। इसके गोरसौं, ताली और चित्रकांठा बुग्याल को यदि सही तरह से व्यवस्थित और विकसित किया जाए तो स्विट्जरलैंड के रूतली घास के मैदान जिस तरह से पर्यटकों को अपनी तरफ खींचते हैं, उसी तरह से ये ये भी लोगों के लिये आकर्षण का केंद्र होंगे। असल में औली को अब तक स्कीइंग के लिये अधिक प्रचार मिला और जो लोग स्की का शौक नहीं रखते वह इस पर गौर नहीं करते। इस बीच 2011 में पहले सैफ शीतकालीन खेलों का आयोजन यहां होने से इस धारणा को बल मिला कि औली स्की प्रेमियों के लिये बना है। सचाई तो यह है कि औली ऊंची पहाड़ियों पर बसा खूबसूरत स्थल है। यदि आपको पहाड़ों और उसकी मनोहारी छटाओं का आनंद लेना है तो एक बार औली आइए।
       औली उत्तराखंड के चमोली जिले में लगभग 3000 मीटर की ऊंचाई पर स्थित है। मैं शुक्रगुजार हूं अपने मित्र विश्वनाथ बेंजवाल का जिन्होंने मुझे औली जाने के लिये उकसाया और फिर मेरी योजना को मूर्तरूप देने में अहम भूमिका निभायी। मैंने बचपन से लेकर आज तक हर दिन अपनी कुलदेवी मां नंदा की पूजा की, लेकिन औली आकर पहली बार मैंने नंदा देवी पर्वत के दर्शन किये। नंदा देवी पर्वत 7,816 मीटर ऊंचा है और दुनिया के सबसे ऊंचे पर्वतों में 23वें स्थान पर है। नीलकंठ पर्वत, माणा पर्वत आदि का नजारा भी औली से देखा जा सकता है। औली स्कीइंग के लिये मशहूर है तो स्वाभाविक है कि यहां इस खेल के लिये तमाम सुविधाएं उपलब्ध हैं। इसके अलावा औली में 3000 मीटर की ऊंचाई पर कृत्रिम झील भी बनायी गयी है।
कृत्रिम झील
      औली से आगे चढ़ाई करने पर आते हैं बुग्याल। यह गढ़वाली शब्द है जिसका अर्थ है घास के मैदान। यहां आपको ढलान पर बुग्याल मिलेंगे और इसी वजह से औली स्कीइंग के लिये आदर्श जगह बन गयी। साल के अधिकतर समय में ये बुग्याल बर्फ से ढके रहते हैं लेकिन गर्मियों में इनका असली रूप निखर कर सामने आता है। इसलिए यदि आप औली में प्रकृति का आनंद उठाना चाहते हैं तो अप्रैल से जून में यहां जाइए। लगभग 5000 मीटर तक चढ़ाई करने के बाद भी आपका इन बुग्याल से मन नहीं भरेगा। इसके अलावा आप औली में रोपवे यानि गोंडोला का लुत्फ उठा सकते हैं। दुनिया के सबसे लंबे और सबसे ऊंचे रोपवे में से एक है जो लगभग चार किमी लंबा है। हवा में तैरती चेयर कार का ​अलग तरह का रोमांच पैदा करती है।

 औली का इतिहास

        त्तराखंड बनने से पहले तक औली एक सामान्य जगह थी ​लेकिन पिछले कुछ वर्षों में इसे विकसित किया गया है। औली को रामायण काल से भी जोड़ा जाता है। पौराणिक कथाओं के अनुसार लंका में युद्ध के दौरान जब लक्ष्मण मूर्छित हो गये तो हनुमान को संजीवनी लेने के लिये कैलाश पर्वत आना पड़ा। इस बीच उन्होंने थोड़े समय के लिये औली में विश्राम किया। इसलिए यहां हनुमान का मंदिर भी बना हुआ है। इसके साथ ही कहा जाता है कि आठवीं सदी में शंकराचार्य भी आकर औली में रूके थे। बहरहाल अब औली को तीर्थ स्थल नहीं बल्कि पर्यटक स्थल के रूप में विकसित किया जा रहा है और इसका काफी श्रेय गढ़वाल मंडल विकास निगम को जाता है जिसने यहां खूबसूरत रिसार्ट बनाने के अलावा रोपवे, चेयरकार और स्कीइंग की सुविधा भी मुहैया करायी है।

                                                                                           कैसे और कब जाएं औली 

चार किमी लंबी रोपवे और लगभग 800 मीटर की चेयरकार रोमांचित करते हैं
       औली के लिये सबसे करीबी रेलवे स्टेशन रिषिकेश और एयरपोर्ट देहरादून में है। मैं हरिद्वार से औली के लिये चला था और इसलिए जब मुझे पता लगा कि वहां पहुंचने में लगभग दस घंटे का समय लग जाएगा तो एकबारगी मैं सकपका गया था। वजह छोटा बेटा प्रदुल था जो आठ साल का है। इसके अलावा मैंने कुछ वेबसाइट में पढ़ा था कि हरिद्वार से औली पहुंचने में लगभग पांच घंटे का समय लगता है। वास्तविकता एकदम से अलग थी। अगर आप अपनी गाड़ी से जा रहे हों तब भी रिषिकेश से औली तक पहुंचने में आठ से नौ घंटे का समय लग जाएगा क्योंकि पहाड़ी रास्ते पर आप एक निश्चित गति से ही गाड़ी चला सकते हो। बस से 10 से 11 घंटे का समय लगेगा। रिषिकेश से औली की दूरी लगभग 268 किमी है। रिषिकेश से देवप्रयाग, श्रीनगर (गढ़वाल), रूद्रप्रयाग, गौचर, कर्णप्रयाग, नंदप्रयाग, चमोली, पीपलकोटी और जोशीमठ होते हुए औली पहुंचा जा सकता है। कोटद्वार से सतपुली, पौड़ी और श्रीनगर होकर भी औली जाया जा सकता है।  
       औली में कभी ऐसे हालात होते हैं कि तीन महीने तक बर्फ ही जमी रहती है। तब इसका तापमान शून्य भी नीचे चला जाता है। जून में स्थिति आदर्श होती है। तापमान दस से 15 डिग्री तक रहता है। गढ़वाल मंडल विकास निगम के औली स्थित रिसार्ट के मैनेजर मदन सिंह पंवार के शब्दों में, ''औली को असल में अब तक वैसा प्रचार नहीं मिला, जैसा मिलना चाहिए था। औली के बारे में लोगों को अपनी धारणा बदलने की जरूरत है। यहां नवंबर से मार्च तक चारों तरफ ​बर्फ ही बर्फ बिखरी होती है। यह स्कीइंग के लिये आदर्श स्थिति होती है लेकिन अगर आपने बुग्याल और इसकी अन्य जगहों का लुत्फ उठाना है तो अप्रैल से जून तक का समय आदर्श होता है। ''

रोपवे, चेयरकार और बुग्याल का आनंद 
बुग्याल के रास्ते में पड़ता है जंगल और मंदिर 

       जोशीमठ से औली तक रोपवे से जाया जा सकता है लेकिन मुझे यह महंगा सौदा लगा। अगर आपने गढ़वाल मंडल विकास निगम के औली स्थित स्की रिसार्ट में ठहरना है तो फिर रोपवे से जाना आपको और अधिक महंगा पड़ेगा। जोशीमठ से औली तक रोपवे में जाने से आप कई नजारों का लुत्फ उठा सकते हैं। इसके लिये प्रति व्यक्ति 750 रूपये का खर्च आता है। इसके बाद चेयर कार से स्की रिसार्ट में आना पड़ेगा जिसके लिये अलग से 300 रूपये चुकाने पड़ेंगे। गढ़वाली होने के कारण मुझे जोशीमठ में ही किसी ने सलाह दे दी कि मैं टैक्सी से औली तक जाऊं और फिर चेयरकार से ऊपर प्वाइंट नंबर आठ पर पहुंचकर ट्रेकिंग पर निकलूं। मुझे चंदन नेगी के रूप में भरोसेमंद ड्राइवर भी मिल गया जिसने मुझे 500 रूपये लेकर औली तक पहुंचाया। स्की रिसार्ट में ठहरने की बेहतरीन व्यवस्था है। उसके रेस्टोरेंट में आपको बढ़िया खाना भी मिल जाएगा। मेरे, अंजू, प्रांजल और प्रदुल चारों के लिये चेयरकार का सफर वास्तव में रोमांचक था। चेयरकार प्वाइंट आठ तक जाती है जबकि जोशीमठ से आप रोपवे से सीधे प्वाइंट दस तक जा सकते हो। इन दोनों प्वाइंट के बीच में कृत्रिम झील है। प्वाइंट दस की ऊंचाई 10,200 फीट यानि लगभग 3100 मीटर है। 
     
गोरसौं, ताली और चित्रकांठा बुग्याल मन मोह लेते हैं
           अपर टर्मिनल यानि प्वाइंट दस से ही गोरसौं बुग्याल के लिये सफर की शुरूआत हुई। इस बीच हमारी दोस्ती फरीदाबाद के रहने वाले राजदीप और उनके परिवार से हो गयी। वे क्लिप टोप क्लब रिसार्ट में ठहरे हुए थे जिसका एक रात का किराया 8000 से 12000 रूपये तक है। यह रिसार्ट अपर टर्मिनल प्वाइंट आठ के ठीक नीचे है। राजदीप वहां के भोजन से संतुष्ट नहीं लगे लेकिन उनके साथ से हमारा गौरसों और ताली बुग्याल तक का सफर और आनंददायक हो गया। प्रांजल की हरलीन और प्रदुल की मनन के साथ अच्छी दोस्ती हो गयी। प्वाइंट दस से कुछ दूर आगे बढ़ते ही जंगल लग जाता है लेकिन फिर भी हम बिना गाइड के आगे बढ़े। मुझे यह बता दिया गया था कि जंगल में पडियार देवता का मंदिर है तथा वापस लौटते समय उसकी स्थिति को ध्यान में रखना है। अगर आप औली आकर बुग्याल का आनंद उठाने के लिये जाओ तो आप भी पडियार देवता का मंदिर याद रखना। इसके बाद जंगल समाप्त होते ही बुग्याल शुरू हो जाते हैं। पहले गोरसौं, फिर ताली और बाद में चित्रकांठा। उत्तराखंड में कई तरह के बुग्याल हैं और प्रत्येक अपनी विशेषता है। औली के बुग्याल के साथ भी यही दिक्कत है कि उनका रखरखाव बहुत अच्छी तरह से नहीं किया जा रहा है। स्थानीय लोग अब भी उनका इस्तेमाल चरागाह के रूप में करते हैं। असल में अब तक पर्यटन के तौर पर इन बुग्याल का इस्तेमाल करने के बारे में सोचा ही नहीं गया है। औली के पर्यटन में बुग्याल अपनी अहम भूमिका निभा सकते हैं। प्रकृति का ध्यान रखते हुए इन्हें पर्यटन के रूप में विकसित किया जा सकता है। ऐसे में अप्रैल से जून तक भी पर्यटक औली आ सकते हैं।

                                                                                                                         धर्मेन्द्र पंत 


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