गुरुवार, 12 जुलाई 2018

ताड़केश्वर धाम : भगवान शिव की विश्रामस्थली



     केदार क्षेत्र में पांच शैव पीठ आते हैं। इनमें से एकेश्वर महादेव के बारे में हम पहले जानकारी दे चुके हैं। अन्य चार शैव पीठ हैं  ताड़केश्वर महादेव, बिन्देश्वर महादेव, क्यूंकालेश्वर महादेव और किल्किलेश्वर महादेव। इनमें से आज हम आपको ले चलते हैं ताड़केश्वर महादेव के दर्शन करवाने के लिये। पौड़ी गढ़वाल जिले के जयहरीखाल विकासखंड में चखुल्याखाळ गांव के पास स्थित है ताड़केश्वर महादेव का मंदिर। यह लैन्सडाउन से 38 किलोमीटर, कोटद्वार से 70 किलोमीटर और रिखणीखाळ से 26 किलोमीटर की दूरी पर 1800 मीटर की ऊंचाई पर स्थित है। महाकवि कालिदास ने रघुवंश महाकाव्य में ताड़केश्वर धाम का वर्णन किया है। रामायण और पुराणों में भी ताड़केश्वर धाम का जिक्र है। यहां भगवान शिव का मंदिर है। देवदार, बांज, बुरांश और काफल के पेड़ों के बीच स्थित ताड़केश्वर महादेव सदियों से लोगों की आस्था का केंद्र रहा है जहां शिवरात्रि पर विशेष पूजा अर्चना होती है। शिवरात्रि के दिन यहां बड़ा मेला लगता है। यहां देखकर लगता है कि प्रकृति भी पूरी तरह भगवान शिव पर मोहित है और इसलिए यह प्रकृति प्रेमियों के लिये भी आदर्श स्थल है। ताड़केश्वर महादेव क्षेत्र को योग और साधना के लिये उत्तम स्थल माना जाता है। ताड़केश्वर महादेव इस क्षेत्र के कई गांवों के कुलदेवता हैं।

ताड़केश्वर महादेव के दर्शन करने के लिये यह वीडियो देखें 





     ताड़केश्वर महादेव को लेकर दो पौराणिक कथायें प्रचलित हैं। एक कथा के अनुसार ताड़कासुर का वध करने के बाद भगवान शिव यहां विश्राम करने के लिये पहुंचे थे। सूर्य की ताप से बचाने के लिये तब मां पार्वती ने यहां देवदार के सात वृक्ष लगाये थे। एक कथा के अनुसार मां पार्वती ने स्वयं देवदार के वृक्षों का रूप धारण कर लिया था। प्रांगण में अब भी देवदार के गगनचुंबी वृक्ष हैं। दूसरी पौराणिक कथा में कुछ अलग तरह का वर्णन है। इस कथा के अनुसार ताड़केश्वर की भक्ति से प्रसन्न होकर भगवान शिव ने उन्हें अमरत्व का वरदान दे दिया। इसमें एक शर्त थी कि केवल भगवान शिव का पुत्र ही उनका वध कर पाएगा। ताड़केश्वर ने शर्त पर आधारित यह वरदान स्वीकार कर लिया। इसके बाद हालांकि ताड़केश्वर के तेवर बदल गये। ताड़केश्वर ने निर्दोष लोगों और साधुओं को मारना शुरू कर दिया और पूरे क्षेत्र में अशांति फैला दी। ऐसे में सभी संत भगवान शिव की शरण में पहुंचे। भगवान शिव ने पार्वती से विवाह किया और फिर कार्तिकेय का जन्म हुआ। कार्तिकेय ने ताड़केश्वर को मार दिया लेकिन जब वह अंतिम सांसे ले रहा था तब उसे अपनी गलती का अहसास हुआ। ताड़केश्वर ने भगवान शिव का ध्यान किया और उनसे माफी मांगी। भोले शंकर फिर से पसीज गये। ताड़केश्वर ने जहां कभी तपस्या की थी वहां पर स्थित मंदिर का नामकरण ताड़केश्वर के नाम पर कर दिया और उन्हें वरदान दिया कि कलयुग में लोग उनकी ताड़केश्वर महादेव के नाम से पूजा करेंगे। इस स्थान को अब ताड़केश्वर महादेव के नाम से जाना जाता है। कहते हैं कि ताड़केश्वर महादेव ने अपने भक्तों के सपनों में आकर कहा था कि यह मंदिर उनका आवास है और देवदार का यह सुंदर वन उनका बगीचा है। 
      ह भी कहा जाता है कि एक विशेष जाति के लोगों का यहां आना वर्जित है। एक अन्य पौराणिक कथा के अनुसार एक समय इस क्षेत्र में इस जाति का दबदबा था जो लोगों पर अत्याचार करते थे। भगवान ताड़केश्वर ने जब इसका विरोध किया इस जाति के लोगों ने उन्हें युद्ध के लिये ललकारा। इस युद्ध में उस जाति ने धूर्तता से जीत हासिल कर ली। इसके बाद ताड़केश्वर ने इस स्थान पर भगवान शिव की पूजा की थी। जब उन्हें वरदान मिला तो उन्होंने इस जाति के लोगों से बदला लिया। कहते हैं कि यही वजह है कि उक्त जाति के लोग यहां पूजा के लिये नहीं आते हैं। इस मंदिर में सरसों का तेल भी नहीं चढ़ाया जाता है।
      ताड़केश्वर महादेव मंदिर में पहले शिवलिंग था लेकिन अब वहां पर भगवान शिव की मूर्ति है जिसमें वह तांडव करते हुए दिखाये गये हैं। कहा जाता है कि जहां शिवलिंग था वहां कुछ साल पहले भगवान शिव की यह मूर्ति मिली थी। शिवलिंग अब भी मंदिर प्रांगण में है। यहां पर लोटे रखे हुए हैं जिनसे भक्तगण शिवलिंग में पानी चढ़ाते हैं। यह पानी मंदिर परिसर में स्थित कुंड का है जिसके बारे में कहा जाता है कि इसे मां लक्ष्मी ने बनाया था। मंदिर में जटाधारी नारियल और तिल का तेल चढ़ाया जाता है। नारियल की जटा मंदिर के प्रांगण में ही निकालनी होती है। इसके लिये वहां पर पूरी व्यवस्था की गयी है। वहां पर नारियल पानी चढ़ाने के बाद आधा नारियल मंदिर में अर्पित किया जाता है और बाकी हिस्सा भक्तगण प्रसाद के रूप में अपने साथ ले जाते हैं। मुख्य मंदिर के करीब एक अन्य मंदिर है जो मां पार्वती का है। मंदिर परिसर में ही हवन कुंड है जहां हर समय अग्नि प्रज्ज्वलित रहती है। यहां भक्तगण धूप अर्पित करते हैं। लोग यहां अपनी मुरादें लेकर आते हैं और मान्यता है कि जिसकी मनोकामना पूर्ण हो जाती है वह मंदिर में घंटी चढ़ाता हैं। यहां अब तक हजारों घंटियां चढ़ायी गयी हैं। प्रवेश द्वार से लेकर मंदिर और फिर निकास मार्ग पर दोनों तरफ इन घंटियों को देखा जा सकता है। शादी और बच्चे के जन्म के बाद भी यहां घंटी चढ़ायी जाती है। मंदिर के पास में ही आश्रम और धर्मशाला है जहां खानपान की भी व्यवस्था है।
       केदार क्षेत्र के अन्य शैव पीठ की तरह ताड़केश्वर महादेव में भी स्थानीय निवासी पहले अनाज को भगवान शिव को अर्पित करते हैं। यहां पर हर साल भंडारे का भी आयोजन किया जाता है। ताड़केश्वर मंदिर समिति यहां सारी व्यवस्था करती है।
       ताड़केश्वर महादेव मंदिर से लगभग एक किमी दूर सड़क मार्ग है। यहां पर गाड़ियों के पार्किंग की अच्छी व्यवस्था है जहां से मंदिर के लिये प्रसाद खरीदा जा सकता है। यहां से आसानी से उतराई के रास्ते मंदिर तक पहुंचा जा सकता है। दिल्ली से ताड़केश्वर की दूरी 281 किमी और देहरादून से 187 किमी है। दिल्ली और देहरादून दोनों स्थानों से कोटद्वार होते हुए ताड़केश्वर पहुंचा जा सकता है। कोटद्वार मोटर और रेल मार्ग से जुड़ा है। यहां सबसे करीबी हवाई अड्डा जौली ग्रांट है जो ताड़केश्वर से लगभग 180 किमी दूर है। पौड़ी और सतपुली होते हुए लैन्सडाउन के रास्ते ताड़केश्वर जाया जा सकता है। लैन्सडाउन से डेरियाखाल होते हुए सड़क ताड़केश्वर तक जाती है। सड़क के दोनों तरफ चीड़, बांज और काफल के वृक्ष यात्रा को सुखद बनाते हैं। ताड़केश्वर धाम की यात्रा का सबसे उपयुक्त समय मार्च से अगस्त तक है। गर्मियों के समय मंदिर सुबह पांच बजे से शाम सात बजे तक जबकि सर्दियों में सुबह छह बजकर 30 मिनट से शाम पांच बजे तक खुला रहता है। बोलो ताड़केश्वर महादेव की जय।
धर्मेन्द्र पंत 

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