शनिवार, 10 जनवरी 2015

मालवा का राजकुमार बना गढ़वाल का राजा कनकपाल

                                              धर्मेन्द्र मोहन पंत 
           ढ़वाल में सबसे लंबे समय तक पंवार वंश के राजाओं ने राज किया। इस राजघराने के पहले राजा कनकपाल थे लेकिन उन्होंने कब से कब तक राज किया। इसको लेकर इतिहास की तमाम किताबों में अलग अलग राय है। अंग्रेज इतिहासकार बैकेट ने गढ़वाल के राजाओं की जो सूची तैयार की उसके अनुसार कनकपाल सन 1159 में परगना चांदपुर आये थे। यह परगना उन्हें गढ़वाल के तत्कालीन राजा ने दहेज में दिया था। डा. पातिराम पंवार के अनुसार कनकपाल सन 688 यानि संवत 745 में मालवा से गढवाल आये थे। गढ़वाल के इतिहास पर गहन अध्ययन करने वाले भक्त दर्शन ने इसे ईस्वी सन 888 यानि संवत 945 माना है। पंडित हरिकृष्णा रतूड़ी ने अपनी दो किताबों में विरोधाभासी तिथियों का वर्णन किया है। अपनी किताब 'गढ़वाल दर्शन' में उन्होंने लिखा है कि कनकपाल 688 ईस्वी सन में गढ़वाल आये थे जबकि 'गढ़वाल का इ​तिहास में उन्होंने इसे 888 ईस्वी सन बताया है।  भक्त दर्शन का शोध अधिक विश्वसनीय माना जा सकता है क्योंकि उन्होंने अपनी किताब में पंवार वंश के 37वें राजा से लेकर सभी राजाओं के बारे में ​अच्छी जानकारी जुटायी थी।

अधिकतर का मत यही है कि राजा कनकपाल ने ईस्वी सन 888 यानि
संवत 945 से गढ़वाल पर राज किया था। 

               कुछ इतिहासकार पंवार वंश का सीधा संबंध पांडवों से जोड़ते हैं। कहा जाता है कि परीक्षित की चौदहवीं पीढ़ी के क्षेमराज दिल्ली के राजा बने लेकिन उनके मंत्री विसर्प ने राजा को मरवाकर खुद सिंहासन हासिल कर लिया था। राजा क्षेमराज की पत्नी तब गर्भवती थी। वह अपनी विश्वासपात्र दासी के साथ रात को महल से भाग गयी थी और कई कष्ट सहते हुए बद्रीकाश्रम पहुंचकर ऋषियों के शरण में आ गयी। रानी ने वहां एक पुत्र को जन्म दिया जिसका नाम राजपाल रखा गया गया। तब उस क्षेत्र में कोई राजा नहीं था और ऋषियों ने राजपाल को शस्त्र और शास्त्र विद्या में निपुण बनाकर उसे क्षेत्र का राजा बना दिया। कहा जाता है कि राजपाल ने तब बद्रीनाथ की यात्रा पर आये किसी विक्रमसिंह नाम के राजा की मदद से कुमांऊ के राजा सुखवंत को परास्त किया था। राजपाल का पुत्र अनंगपाल था जिसकी केवल एक पुत्री थी। अनंगपाल ने अपनी बेटी के पुत्र पृथ्वीराज को अपना उत्तराधिकारी बनाया। इन्हीं पृथ्वीराज की पीढ़ी में भानुप्रताप हुआ था जो 52 गढों के राजाओं में सबसे शक्तिशाली था। बद्रीनाथ का राजा होने के कारण सभी उन्हें धार्मिक दृष्टि से भी ऊंचा मानते थे। भानुप्रताप की भी दो पुत्रियां थी जिनमें से बड़ी बेटी का विवाह उन्होंने कुमाऊं के राजा से किया जबकि दूसरी पुत्री की शादी राजा कनकपाल से की थी।
       राजा कनकपाल के गढ़वाल आगमन की कहानी भी रोचक है। वह मालवा के राजकुमार थे। उस समय उज्जैन और धार क्षेत्र में पंवार वंश का राज्य था। ब्रिटिश इतिहासकार हार्डविक के अनुसार कनकपाल वर्तमान गुजरात क्षेत्र से गढ़वाल आया था। उसका नाम तब भोगदंत था और वह  चांदपुर के राजा सोन पाल की सेना में भर्ती हुआ और बाद में सेनापति बन गया। राजा ने अपनी कन्या का विवाह उससे किया। भोगदंत बेहद वीर और साहसी था। उसने बाद में राजा को गद्दी से उतारा और स्वयं कनकपाल नाम से राजा बन गया था। एक और अंग्रेज इतिहासकार जीआरसी विलियम के अनुसार कनकपाल गुजरात से नहीं बल्कि मालवा से आया था और वह गढ़वाल पहुंचने से पहले सहारनपुर में बसा था। एक और किस्से के अनुसार कनकपाल धार के राजा वाकपति का छोटा भाई था लेकिन एक ब्रहमचारी साधु से शिक्षा ग्रहण करने के बाद उसके मन में वैराग्य आ गया। जब उसके गुरू का निधन हो गया तो वह अपने कुछ मित्रों के साथ हरिद्वार पहुंचा। वह बद्रीनाथ धाम भी जाना चाहता था लेकिन पहाड़ों के कठिन रास्तों के कारण मित्रों ने उसे रोक दिया।
           एक पौराणिक ग्रंथ के अनुसार राजा भानुप्रताप को तब भगवान बद्रीनाथ ने सपने में कहा कि  वह धार नरेश को अपने यहां बुलायें और उनके साथ अपनी बेटी का विवाह कर दें। राजा भानुप्रताप ने ऐसा ही किया लेकिन कनकपाल तो वैरागी था। कहा जाता है कि जब कनकपाल ने राजकुमारी को देखा तो उन्हें देखते ही रह गया और उनके रूप लावण्य पर इतने मोहित हो गया कि उसने विवाह के लिये हां कर दी। भानुप्रताप जब वृ​द्ध हो गये तो वह अपने दामाद को राजपाट सौंपकर अपनी पत्नी सहित वानप्रस्थ पर चले गये थे। इस तरह से गढ़वाल में पंवार वंश की नींव पड़ी थी।
      किस्से और कहानियां भले ही अलग अलग हों लेकिन सभी एक बात से सहमत दिखते हैं और वह यह कि पंवार वंश का पहला राजा कनकपाल था। इसके अलावा इस पर भी सहमति दिखती है कि वह मालवा क्षेत्र से आया था जो कि वर्तमान समय के राज्यों मध्यप्रदेश के पश्चिम, गुजरात के पूर्व और राजस्थान के दक्षिण के हिस्से को मिलकर बनता है।
       गढ़वाल में पंवार वंश की शुरूआत का यह संक्षिप्त विवरण है। इससे इतर भी किस्से और कहानियां हो सकती है। यदि आपको इससे जुड़ा कोई भी पौराणिक तथ्य, किस्सा या कहानी पता हो तो कृपया जरूर शेयर करें।

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7 टिप्‍पणियां:

  1. हमारे परदादा भवानी दत्त जी थपलियाल (खैड़, मवालस्यूं) लिखित प्रह्लाद नाटक गढ़वाली का सर्व प्रथम नाटक है. इसी में थपलियालों की वंशावली भी लिखी गयी है.

    इस पुस्तक के अनुसार थपलियाल लोग राजा कनकपाल के साथ ही मालवा प्रदेश के धार/उज्जैन से गढ़वाल आये थे, जो बाद में कफोलस्यूं थापली गांव में सबसे पहले बसे फिर यहाँ से अन्यत्र भी गये. मेरा अपना गांव खैड़ भी इसी क्रम में बसने वाला, शायद सबसे पहला, गांव था. हालाँकि आज हाल ये है कि मेरा गांव लगभग बंजर पड़ा है.

    प्रमोद थपलियाल

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    1. बहुत अच्छी जानकारी उपलब्ध करायी है प्रमोद जी। अगर आप अपने गांव के बारे में विस्तार से लिख सकें तो कृपया जरूर लिखें।

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  2. क्या कोई उत्तराखंड में पसबोला का इतिहास बता पाये तो कृपा होगी

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  3. इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.

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  4. बहुत अच्छी जानकारी पंत जी...लेकिन गढ़वाल में पंवार वंश का शासन 888 ईसवी के बाद माना जाता है, राजा कनकपाल के बाद सीधे 16 वीं सदी के पंवार राजाओं का जिक्र होता है...खासतौर से राजा अजयपाल का जिन्बीहोंने 1517 में श्रीनगर को गढ़वाल की राजधानी स्थापित किया। लेकिन बीच के वर्षों में 10वीं से 15वीं सदी के मध्य किन किन राजाओं ने यहां राज किया उसकी कोई जानकारी मिल सकती है क्या?

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  5. कनकपाल की पत्नी भानुप्रताप की पुत्री का नाम क्या था

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  6. Kya koi yeh bata sakta hai ki raj bhanu pratap ki putri ka kya naam tha jisne raja kanak pal se vivah kiya tha......

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