रविवार, 23 जून 2019

पहाड़ों की कोयल हिलांस

             
           ढ़वाल और कुमांऊ के कवियों और गीतकारों की रचनाओं में अहम स्थान पाने वाला पक्षी है हिलांस। खुदेड़ गीतों का पक्षी जिसकी कूक सुनकर ससुराल में काम में व्यस्त कोई  नवविवाहिता  मायके की यादों में खो जाती थी। बसंत में जब चारों तरफ फूल खिले होते हैं तब हिलांस अपनी समधुर आवाज से इनमें चार चांद लगाता है। यही वजह है कि पहाड़ों की कोयल कहे जाने वाला हिलांस गीतकारों की पसंद बन गया। हिलांस को अंग्रेेजी में Great barbet और Great Himalayan Barbet कहते हैं। इसका वैज्ञानिक नाम Megalaima virens है। नीदरलैंड के पक्षी विज्ञानी पीटर बोडार्ट (1730 – 6 May 1795) ने हिलांस का वैज्ञानिक नाम Psilopogon virens बताया था। यह Megalaimidae परिवार से संबंध रखता है।
          भारत में उत्तराखंड के अलावा जम्मू कश्मीर, हिमाचल प्रदेश, पश्चिम बंगाल के पर्वतीय क्षेत्रों, सिक्किम, असम, मेघालय, अरुणाचल प्रदेश, नगालैंड, मणिपुर, मिज़ोरम और त्रिपुरा में भी यह पक्षी पाया जाता है। भारत के अलावा पाकिस्तान, नेपाल, भूटान, बांग्लादेश, म्यांमा, थाईलैंड, चीन, लाओस और वियतनाम में भी हिलांस प्रजाति के पक्षी रहते हैं। Source : Birds of India 
             हिलांस को हिन्दी में त्रिहो, असमी में हेतुलुका, तिब्बती में कुन न्योंग, नेपाली न्यहुल या नयाल कहा जाता है। हिलांस लगातार पीहू पीहू का स्वर निकालते हैं। 
              हिलांस की लंबाई 30 से 35 सेंटीमीटर और वजन 160 से 300 ग्राम होता है। इसमें नर और मादा का भेद करना मुश्किल होता है क्योंकि दोनों एक जैसे दिखते हैं। हिलांस अपनी मधुर आवाजा से लुभाता है लेकिन इसमें कई रंगों का समावेश होता है और इस वजह से भी यह लोगों का ध्यान अपनी तरफ आकर्षित करता है। इसका सिर और गला गहरे नीले रंग का तो चोंच पीले रंग की होती है। चोंच लंबी होती है जिसके आगे के हिस्से का ऊपरी भाग का कुछ हिस्सा काले रंग का होता है।  हिलांस का गला और पूंछ छोटी होती है। हिलांस की पीठ का गर्दन के पास वाला हिस्सा गहरे भूरे रंग का होता है। पीठ का बीच का हिस्सा भूरे रंग का होता है जिसमें हल्का पीलापन भी होता है। पीठ का निचला हिस्सा हरे रंग से सजा रहता है। पूंछ का ऊपरी भाग हरे रंग का होता है जिसमें पीले रंग की हल्की रेखाएं होती है। हिलांस का निचले हिस्से का अगला भाग गहरे भूरे रंग का होता है। इसके बाद का हिस्सा हल्के नीले रंग जबकि पेट पीला और हरा रंग लिये होता है। पूंंछ के पीछे वाले भाग का अगला हिस्सा लाल रंग का होता है।
           हिलांस ऊंचे पेड़ों पर रहना पसंद करता है। इसलिए इसे देवदार के वृक्ष खास प्रिय हैं। पहाड़ी गांवों के आसपास यह पक्षी खड़ीक, तूण आदि के पेड़ों पर रहना पसंद करते हैं। हिलांस उत्तराखंड में मुख्य रूप से 1000 से 3000 मीटर की ऊंचाई पर पाया जाता है। सर्दियों के समय हिलांस निचले हिस्सों में आ जाते है।  यह समूह में नहीं रहता है। जंगली फल जैसे अंजीर, पयां, तथा फूल, बीज आदि इसके प्रमुख भोजन है। कभी कभी यह कीड़े मकोड़े भी खाता है। हिलांस का प्रजनन काल फरवरी से सितंबर तक होता है। कोयल की तरह हिलांस भी घोसला बनाने में मेहनत नहीं करता। यह मुख्य रूप से ​पेड़ की सुराख में या ऐसे सुराख में अंडे देता है जिसे किसी अन्य चिड़िया ने छोड़ रखा हो। हिलांस एक बार में दो से चार अंडे देती है जिनसे 15 दिन में चूजे बाहर निकल आते हैं।
            हिलांस को लेकर यह थी संक्षिप्त सी जानकारी। अब यह गीत गुनगुनाना नहीं भूलना हिलांस उड़ी हिलांस उड़ी जा, मेरो रैबार मांजी में बतै जा ...... आपका धर्मेन्द्र पंत 

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