घसेरी प्रतियोगिता की विजेता रैजा देवी। साथ में महान गायक नरेंद्र सिंह नेगी और प्रतियोगिता के आयोजक। सभी फोटो : अभिनव कलूड़ा |
राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर महिलाओं की सौंदर्य प्रतियोगिताएं होती रहती हैं लेकिन घास काटने की अनोखी 'श्रम सौंदर्य' प्रतियोगिता सुनकर थोड़ा अजीब लगता है। उत्तराखंड में हालांकि पिछले दिनों इसी तरह की अनोखी ‘श्रम सौंदर्य’ प्रतियोगिता आयोजित की गयी जिसमें घास काटने के अपने कौशल का अद्भुत नमूना पेश करके पहले स्थान पर रहने वाली महिला को न सिर्फ एक लाख रूपये की नकद पुरस्कार राशि बल्कि चांदी का मुकट पहनाकर भी सम्मानित किया गया। 'घसेरी' के लिये इस अनोखी लेकिन सराहनीय घसेरी प्रतियोगिता की रिपोर्ट वरिष्ठ पत्रकार ---- अभिनव कलूड़ा ---- ने भेजी है।
उत्तराखंड के टिहरी जिले के दुर्गम भिलंगना ब्लॉक के कोठियाड़ा गांव में पांच और छह जनवरी 2016 को किया गया। शुरू में घास काटने की इस प्रतियोगिता का आयोजन किया गया जिसमें 112 गांवों की 637 महिलाओं ने हिस्सा लिया। इस ब्लॉक में कुल 185 गांव हैं। ग्रामीण क्षेत्रों के उन्नयन के लिए काम कर रहे चेतना आंदोलन ने पर्यावरण और पशु स्वास्थ्य के प्रति जागरूकता फैलाने के लिए इस अनोखी प्रतियोगिता का आयोजन किया।
प्रतियोगिता के लिए कड़े नियम बनाए गए थे। इसका पहला चरण सभी प्रतिभागी गांवों में आयोजित किया गया और हर गांव से तीन सर्वश्रेष्ठ महिलाओं का चयन किया गया। उसके बाद क्षेत्र पंचायत स्तर पर प्रतियोगिता हुई और अंत में चुनकर आयी तीन महिलाओं के बीच अंतिम दौर की प्रतियोगिता आयोजित की गयी। अंतिम दौर में नियम कड़े किए गए थे। प्रतिभागी महिला को निर्धारित स्थान पर खुद घास काटने वाले क्षेत्र का चयन करना था। उसे दो मिनट में काटे गए घास को निर्णायक मंडल को सौंपना था। निर्णायक मंडल ने घास की गुणवत्ता तथा पारिस्थितिकी के अनुकूल उसकी विशेषता के आधार पर घास की पहचान की और फिर उसका तोल किया। अंत में घास की गुणवत्ता के बारे में तीनों महिलाओं की जानकारी की परीक्षा ली गयी। निर्णायक मंडल में उत्तराखंड के मशहूर लोकगायक नरेंद्रसिंह नेगी, राज्य सरकार में महिला सामाख्या निदेशक गीता गैरोला तथा सामाजिक कार्यकर्ता रमा मंमगाई शामिल थीं।
पहले तीन स्थानों पर रहने वाली रैजा देवी (बीच में), जसोदा देवी और अबली देवी। |
घास काटने की इतनी कड़ी परीक्षा से गुजरने के बाद पहला स्थान 36 वर्षीय रैजा देवी ने हासिल किया। उन्होंने विभिन्न मानदंडों के आधार पर 100 अंकों में से 81.11 प्रतिशत अंक प्राप्त किए। इसके लिये उन्हें एक लाख रुपए नकद तथा 16 तोला चांदी का मुकुट पहनाकर सम्मानित किया गया। रैजा देवी अमरसर बासर की रहने वाली है। उनके दो बच्चे हैं और दोनों गांव की स्कूल में पढते हैं। मल्ड नैलचामी की 42 वर्षीय जसोदा देवी (79.50 प्रतिशत अंक) ने दूसरे स्थान पर रही। उन्हें 51 हजार रुपए और 13 तोला चांदी का मुकुट पहनाया गया। तीसरा स्थान हासिल करने वाली 32 वर्षीय अबली देवी (70.10 प्रतिशत अंक) को 21 हजार रुपए और 10 तोला चांदी का मुकुट पहनाया गया।
प्रतियोगिता के आयोजक त्रेपन सिंह चौहान ने बताया ''इस प्रतियोगिता में औषधीय गुण, पर्यावरण के अनुकूल तथा पौष्टिक घास की पहचान रखने और सबसे तेज गति से घास काटने वाली महिला को सम्मानित किया गया। ..... उत्तराखण्ड में तो घसियारी ही किसान भी है। एक किसान को पानी, पशु और मेहनत ही जिन्दा रख सकता है, तभी वह अपने खेतों को उपजाऊ बनाकर अच्छी पैदावार ले पाता है। घसियारियों की जिन्दगी सामूहिकता के बिना चलना संम्भव नहीं, क्योंकि खेती, जंगल से पंजार आदि जीवन को चलाने वाले तमाम काम समाज के सामूहिक सहयोग के बिना सम्पादित नहीं किये जा सकते। इस सामूहिकता के दम पर ही पहाड़ी समाज की समृद्ध सांस्कृतिक परम्परा जीवित है। यह पहाड़ घासियारियों के बूते ही साँस ले रहा है।''
आयोजक चेतना आंदोलन के अनुसार इस प्रतियोगिता पर कुल दो लाख 30 हजार रुपए का खर्च आया है। संगठन की योजना अब हर साल घसेरी प्रतियोगिता का आयोजन करना है ताकि घास काटने वाली महिलाओं को सामाजिक स्तर पर सम्मान मिले और उनके श्रम को पहचान मिल सके।
चेतना आंदोलन का यह प्रयास सराहनीय है। अभिनव कलूड़ा जी का इस शानदार रिपोर्ट के लिये घसेरी की तरफ से आभार।
जवाब देंहटाएंबहुत ही सानिया कार्य की शुरुआत की गई है। पूरे उत्तराखंड की ओर से बहुत बहुत धन्यवाद
जवाब देंहटाएंइस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.
जवाब देंहटाएंBehtareen karya....Is tarah ke karya hi Uttarakhand ke bhavishya ko bachaye rakh skte hai...keep posting good things..(y)
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