पिठाई का म हत्व है, दक्षिणा का नही। मुख्य फोटो सौजन्य : बिजेन्द्र पंत |
यदि हमारे यहां पिठाई के महत्व को समझा जाता और उसकी पवित्रता के साथ दक्षिणा को नहीं जोड़ा जाता तो शायद मुझे इन दोनों व्यक्तियों को समझाने की जरूरत नहीं पड़ती। इसलिए पहले हम पिठाई के महत्व और फिर दक्षिणा के बारे में जानेंगे। बाकी यह फैसला करना आपका काम है कि आपने पिठाई लेनी या फिर पिठाई लगवानी है। (पहाड़ों में दक्षिणा लेने को पिठाई लेना भी कहा जाता है)।
पिठाई या तिलक लगाने का महत्व
पिठाई का चलन पहाड़ों से दशकों से चला आ रहा है। भारतीय अपने आतिथ्य के लिये जाने जाते हैं। 'अतिथि देवो भव' हम सभी ने सुना होगा। 'पिठाई' शिष्टाचार का हिस्सा है। इससे हम मेहमान के प्रति अपना सम्मान व्यक्त करते हैं। मेहमान के घर में प्रवेश करते समय और फिर विदाई पर पिठाई या तिलक लगाया जाता था। समय के साथ पिठाई के मायने बदल गये और ये बदलाव इसमें 'दक्षिणा' जोड़ देने से हुए। आलम यह है कि अब पहाड़ों में पिठाई का मतलब केवल तिलक लगाने तक सीमित नहीं रह गया है। इसका मतलब यह भी लगाया जाता है कि आपकी जेब में कुछ पैसे आएंगे। 'पिठाई कितनी लगी?' यह सवाल अक्सर घर के लोग भी कर देते हैं। शायद इस सवाल ने बच्चों में पिठाई के प्रति दिलचस्पी जगायी। मुझे लगता है कि यह पिठाई की पवित्रता से खिलवाड़ है।
पिठाई लगाने का महत्व अलग है। पिठाई को मस्तक पर दोनों भौहों के बीचों बीच लगाया जाता है। इस जगह पर आज्ञाचक्र होता है। यह चक्र हमारे शरीर का सबसे महत्वपूर्ण स्थान है, जहां शरीर की प्रमुख तीन नाडि़यां इड़ा, पिंगला व सुषुम्ना आकर मिलती हैं। इसलिए इस स्थान को त्रिवेणी या संगम के नाम से भी जाना जाता है। यह हमारे चिंतन मनन का स्थान होता है जो चेतन या अवचेतन अवस्था में भी जागृत रहता है। यहां से पूरे शरीर का संचालन होता है। ज्योतिषविदों का कहना है कि पिठाई या तिलक लगाने से ग्रहों की शांति होती है। अगर विज्ञान की बात करें तो जिस स्थान पर तिलक लगाया जाता है वहां पर पीनियल ग्रंथि होती है। तिलक लगाने पर पहले पीनियल ग्रंथि और फिर आज्ञाचक्र जागृत होता है। पिठाई सात्विकता का प्रतीक मानी जाती है। अक्सर आपने देखा होगा कि तिलक लगाते समय सिर पर हाथ रखा जाता है। इसका भी महत्व है। इससे आज्ञाचक्र से निकलने वाली सकारात्मक ऊर्जा पूरे शरीर में प्रवाहित होती। व्यक्ति के मन में सकारात्मक विचार आते हैं। यही वजह थी कि अतिथि के घर पर आने और विदाई के समय पिठाई लगायी जाती है ताकि वह सकारात्मक ऊर्जा के साथ घर में प्रवेश करें और उसी ऊर्जा के साथ विदाई भी लें। शादी और विवाह आदि में बाराती पहले दो दिन तक रहते थे और उन पर हर दिन पिठाई इसलिए लगायी जाती थी कि ताकि उनके मस्तिष्क में शांति और शीतलता बनी रहे। ज्योतिषविदों के अनुसार हल्दी, चंदन, केशर, कुमकुम आदि का तिलक लगाने से व्यक्ति सात्विक, सकारात्मक, आत्मविश्वास से पूर्ण, शांत और संयमित बना रहता है।
पिठाई नहीं दक्षिणा पर नजर
लेकिन समय के साथ पिठाई या तिलक के मायने मतलब बदल गये। माथे पर इसके महत्व को समझने के बजाय लिफाफे के अंदर की राशि को अधिक महत्व दिया जाने लगा। शुरूआत एक पैसा, दो पैसे या एक रूपये से हुई होगी जो आज 100, 200, 500 और 1000 रूपये तक पहुंच गयी है। आपका जितना सामर्थ्य है आप उतनी दक्षिणा पिठाई में दे सकते हैं। यह पिठाई नहीं दक्षिणा है। हिन्दी शब्दकोष में दक्षिणा के जो अर्थ मुझे मिले। उनसे आप भी अवगत हो जाइये। इसके अर्थ हैं.... 1. उपहार; दान; बख़्शीश, 2. वह धन जो किसी व्यक्ति को कर्मकांड या पूजा-हवन आदि करने के बदले दिया जाता है, 3. चढ़ावा और 4. किसी को दिया जाने वाला अनुचित धन; घूस; रिश्वत। आप इनमें से किसी भी अर्थ को लेकर क्या दक्षिणा लेना चाहेंगे? शायद नहीं। अगर पिठाई लगाने की अच्छी परपंरा के साथ दक्षिणा जोड़कर उसका स्वरूप बिगाड़ दिया गया तो मुझे लगता है कि अब समय आ गया है कि हम फिर से पिठाई के महत्व को समझें और उसके मूलरूप को अपनाने के लिये अपने प्रयास तेज कर दें। फैसला आपका है लेकिन इसका सकारात्मक प्रभाव पूरे समाज पर पड़ेगा। दहेज को पहली सीढ़ी पर ही नकार देने से उसके लिये आगे का रास्ता भी बंद होगा। आपका धर्मेन्द्र पंत
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दोनों प्रसंगों में आपने कैसे पिठाई के समय लिफाफा नहीं लेने के बारे में समझाया उसे भी कभी विस्तार से लिखे तो लोग बेहतर तरीके से समझ सकेंगे .....
जवाब देंहटाएंबहुत अच्छी जागरूक प्रस्तुति है ..हमारे पहाड़ में भी यह प्रथा खूब चलती हैं.. इसके लिए मेरा मानना है लोगों को समझाने के बदले पंडित/पुरोहित को समझना होगा, क्योंकि उनकी बात लोगों कि समझ में जल्दी आता है ...
आपने सही कहा। पहली घटना में तो यही कहा कि हम कुछ लोग मिलकर यह प्रथा बदल रहे हैं और आप चाहें तो हमारे प्रयास में योगदान दे सकते हैं। वह मान गये लेकिन उन्होंने आगे सवाल किया कि आप बेटे को हां कर दें। मैंने कहा कि यह संभव नहीं है। इससे बच्चे में गलत शिक्षा जाएगी। दूसरी घटना में भी उन्हें जब बात समझ नहीं आयी तो हल्का फुल्का मजाक माहौल को भी हल्का फुल्का कर गया और वह समझ गयी कि मामा का मुंह नहीं फूला है। यह परिस्थिति पर निर्भर करता है और आपको उसी तरह से अपनी बात रखनी होगी। जहां तक पंडितों की बात है तो उन्हें समझाना टेढी खीर है लेकिन प्रयास किये जा सकते हैं। आपका आभार।
हटाएंबहुत अच्छी लगी आपकी पिठाई शिष्टाचार है, दक्षिणा नही। अभी नीरज जाट के शादी मे दहेज ना लेने के बारे मे पढ रहा था मुझे अच्छा लगा ओर आपका लेख भी। आज से में भी कोशिश करूगा किसी से उपहार मे रूपये न लू
जवाब देंहटाएंसोलंकी जी आपका आभार। ये छोटी छोटी कुप्रथाएं हैं जिन्हें नजरअंदाज कर दिया जाता है लेकिन व्यापक दृष्टिकोण में देखा जाए तो यही छोटी प्रथाएं दहेज जैसा दानव का विकराल रूप लेकर हमारे सामने खड़ी हो गयी। मुझे पूरी उम्मीद है कि आपकी कोशिश संकल्प में बदलेगी।
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