रविवार, 13 दिसंबर 2015

याद आता है वो बचपन

           ---- जितेंद्र मोहन पंत ----


      
        पाटी बस्ता उर्ध्व सिर पर लटकाना, 
        पहाड़ी लघु सरिता फांदकर स्कूल जाना,
         मध्यांतर में अल्पाहार मिल बांटकर खाना, 
         वृताकार में पहाड़ों की रट लगाना,
          फिर से तख्ती लिखने को करता है मन,
           याद आता है वो बचपन।। 


हिम वर्षा, स्वर्ग खेतों से कपास का झड़ता,
संगियों को लिये इससे कंदुक—क्रीड़ा खेलता,
नग्न पांवों चलके स्वर्गाभास होता, 
'हिम मिष्ठान' का स्वादानुभव करता, 
फिर से हिम में लिपटने को कहता है तन,
याद आता है वो बचपन।।







गाय बैलों को लिये जाना चारागाह,
       बारिश में एकजुट होना, रखकर पशुओं पर निगाह,
       कभी खेल में मस्त होना, त्याग सब परवाह,
       क्या मदमस्त जीवन, न थी कोई चाह,
       क्या लौटेगा कभी वह अल्हड़पन,
       याद आता है वो बचपन।। 

संग तात के कभी खेतों में जाता,
हल की मुट्ठी पकड़कर बड़ा कृषक समझता,
कभी जोते खेत को क्रीड़ांगन बनाता,
कभी मृदा का तन से आलेपन करता,
क्या पल थे वे मनभावन,
याद आता है वो बचपन।। 





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 लेखक / कवि का परिचय :    

जितेंद्र मोहन पंत। जन्म 31 दिसंबर 1961 को गढ़वाल के स्योली गांव में। राजकीय महाविद्यालय चौबट्टाखाल से स्नातक। 'याद आता है वो बचपन' नामक उपरोक्त कविता उन्होंने 19 फरवरी 1995 लिखी थी। सेना के शिक्षा विभाग कार्यरत रहे। 11 मई 1999 को 37 साल की उम्र में निधन।

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