क्या आपने कभी सोचा है कि उत्तराखंड की शादियों में 'बान' क्यों दिये जाते हैं? यह हमारी परंपरा, हमारी संस्कृति का हिस्सा है जो वर्षों से उत्तराखंड की शादियों का अहम अंग बना हुआ। इसके बिना शादी की रस्म पूरी होने की कल्पना भी नहीं की जा सकती है। बान या बाना यानि हल्दी हाथ की रस्म लड़की के साथ लड़के को भी निभानी पड़ती है। उत्तराखंड में परंपरागत ढोल दमौ और मसकबीन की धुन के बीच बान दिये जाते हैं और स्नान कराया जाता है।
बान क्यों दिये जाते हैं? इसका सामाजिक, सांस्कृतिक, पारंपरिक पहलू हो सकता है लेकिन इसके पीछे वैज्ञानिक सत्य भी छिपा हुआ है। इस पर हम आगे बात करेंगे। पहले आपका परिचय बान से करवा देता हूं। 'बान' बारात जाने से पहले की रस्म है जो दूल्हा और दुल्हन दोनों के घरों में लगभग एक समय में निभायी जाती है। इसमें हल्दी, सुमैया, कच्चुर, चंदन आदि को कूटकर मिश्रण बनाया जाता है। इसे फिर सात पुड़ियों में रखा जाता है जिनमें दूब को डुबाकर उसे दूल्हा या दुल्हन के पांव से लेकर सिर तक यानि पांव, घुटना, हाथ, कंधा और सिर को स्पर्श करके अपने सिर पर रखना होता है। ऐसा पांच या सात बार करना होता है। घर के सदस्य, रिश्तेदार आदि 'बान' देते हैं।
आचार्य चंद्रप्रकाश थपलियाल ने बान के बारे में बताया, “ बाना (बान) में मुख्य रूप से कच्ची हल्दी, दही, सरसों का तेल, जिराळु, सुमैया, चंदन, दूब का उपयोग किया जाता है। जिस तरह से सात फेरे और सात बचन होते हैं उसी तरह से बाना भी सात ही दिये जाते हैं। यह अलग बात है कि आजकल केवल फोटो खिंचवाने के लिये बाना दिये जा रहे हैं और इसलिए एक, तीन या पांच बार ही बाना देने का रिवाज शुरू हो गया है।’’
'बान' अमूमन ओखली के पास दिये जाते हैं। दूल्हा या दुल्हन को चौकी (चौक या चौकली) पर बिठाया जाता है। पांच कन्यायें ओखली में सभी चीजों को कूटती हैं। इसके बाद दूल्हा या दुल्हन उसे तांबे की थाली या परात में रखी पुड़ियों में रखते हैं। सबसे पहले पंडित जी बान देते हैं। उसके बाद पांचों कन्यायें तथा बाद में मां—पिताजी, घर के अन्य सदस्य, रिश्तेदार और गांव वाले। बान देते समय गांव की कुछ महिलाएं मंगल गान भी करती हैं। गढ़वाल और कुमांऊ में अलग अलग मंगल गान का प्रचलन है। जैसे 'दे द्यावा ब्रह्मा जी हल्दी को बान' या 'उमटण दइए मइए मैल छूटाइय'। जब दुल्हन को बान दिये जाते हैं तो माहौल थोड़ा गमगीन होता है। स्वाभाविक है बेटी की बिदाई का गम सभी को सालता है। इस बीच हालांकि जीजा—साली, देवर—भाभी आदि के बीच खूब हंसी ठिठोली भी चलती है। एक दूसरे पर हल्दी लगाकर मजाक किया जाता है।
अब वही सवाल कि आखिर बान क्यों दिये जाते हैं? माना जाता है कि बान नकारात्मक ऊर्जा को दूर करने, ग्रह और नजर दोष के निवारण के लिये दिये जाते हैं। हल्दी शुभ होती है और हल्दी से शुभकार्य की शुरुआत करना अच्छा माना जाता है।
हल्दी हाथ यानि बान का वैज्ञानिक पहलू भी है। आयुर्वेद में हल्दी को औषधि का दर्जा दिया गया है। इस कारण हल्दी हमारी त्वचा के लिए एक तरह से प्राकृतिक का वरदान के समान है। हल्दी के लगाने से त्वचा संबंधी अनेक बीमारियां से छुटकारा पाया जाता है।
हल्दी का लेप शरीर की कोशिकीय संरचना को इस तरह से फैलाता है, कि इसके हर दरार और छिद्र में ऊर्जा भर सके। हल्दी इस काम में भौतिक रूप से मदद करती है। हल्दी प्राकृतिक एंटी-बायटिक होती है। हल्दी का स्नान दूल्हा और दुल्हन को तमाम रोगों से बचाने में सहायक होता है। इससे त्वचा में भी निखार आता है।
शादी के समय घर में कई तरह के मेहमान आते हैं जिससे नकारात्मक ऊर्जा फैलने की आशंका रहती है। इसका दूल्हा या दुल्हन पर नकारात्मक प्रभाव पड़ सकता है। हल्दी के बारे में कहा जाता है कि वह घर में और दूल्हे या दुल्हन के अंदर नकारात्मक ऊर्जा प्रवेश करने से रोकती है। हल्दी नकारात्मक ऊर्जा नष्ट करके सकारात्मक ऊर्जा का सृजन करने में सहायक होती है।
यह थी बान की कहानी। आपको कैसी लगी जरूर बताईये और 'घसेरी' के वीडियो चैनल को भी जरूर सब्सक्राइब करिये। आपका धर्मेन्द्र पंत
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