शुक्रवार, 24 जुलाई 2015

सुंदरियाल फाट का सबसे बड़ा गांव है कुई

                                दीनदयाल सुंदरियाल 'शैलज'

 उत्तराखंड के पौड़ी जिले के पोखड़ा ब्लाक स्थित कुई गांव का विहंगम दृश्य
       ह मेरा गाँव कुई है जो पोखड़ा ब्लॉक मे पट्टी किंमगडीगाड (चौंदकोट) क्षेत्र का सात गाँव सुंदरियाल फाट (कुई, मजगाँव, किलवास, भटोडू (भरतपुर), कोलखंडी (सुंदरई), नौल्यू, डबरा) का सबसे बड़ा गाँव है। प्रसिद्ध घुमंतू लेखक राहुल सांकृत्यायन की "मेरी हिमालय यात्रा" के अनुसार सुंदरियाल ब्राह्मण कर्नाटक प्रदेश से उत्तराखंड मे आए हैं। हो सकता है कि बद्रीनाथ धाम कि यात्रा मे आए कोई पूर्वज मंदिर मे ही पूजा अर्चना या अन्य कोई सेवा मे बद्रीनाथ क्षेत्र मे बस गए हो जिन्हें बाद मे मंदिर प्रशासन व गढ़ नरेश ने सुंदरई (चौंदकोट गढ़ी के दक्षिण का इलाका) और आस पास बसने के लिए जगह दी हो। इस धारणा को इसलिए बल मिलता है कि कुई समेत सुंदरियाल जाती के सभी गाँव को “गूँठ” गाँव कहा जाता है अर्थात वे राजा व मंदिर कर से मुक्त गाँव थे। इन गाँवो को "बद्रीनाथ चढ़े" गाँव भी कहते थे।
      एक धारणा ये भी है कि चौंदकोट गढ़ी के थोकदार गोरला रावत, व अन्य राजपूत सिपहासालार गोसाईं लोगों के साथ पुरोहित कार्यों के लिए राज दरबार ने सुंदरियाल ब्राह्मणों को सुंदरई गाँव मे बसाया था। इस बात कि पुष्टि इससे भी होती है कि आसपास के गाँव, दांथा, मालकोट, चमनाऊ, सौंडल आदि गाँव मे राजपूत परिवारों मे सुंदरियाल आज भी पुरोहित का काम सम्पन्न कर रहे हैं। मूल रूप से सुंदरई गाँव (जहां अब खेत हैं) में बसे परिवार किसी दुर्घटना के बाद कुई-मजगांव मे बस गए फिर वहाँ से उपरोक्त अन्य गावों के अलावा ढूंगा, एरोली, पढेरगाँव (तलाई) तथा गुज़ड़ू इलाके मे डूंगरी, पंजेरा, बसोली आदि जगहों पर जाकर बस गए। 

गांव के खेतों में 'पयां' के फूलों की बहार और गांव की गलियां


प्रकृति का वरदान है मेरा गांव 

      मेरे गाँव के उत्तर मे अमेली पर्वत श्रेणी है जिसके मूल मे चौंदकोट गढ़ी के किले के भग्नावशेष आज भी मौजूद हैं। चौंदकोट गढ़ी गढ़वाल की 52 गढ़ों मे से एक है जो इस क्षेत्र के गढ़ाधिपतियों व थोकदारों का किला रहा होगा। बचपन मे बड़े बूढ़ों से सुना था की 7000 फीट ऊंचे इस किले से नयार नदी की निचली मैदानी भाग (राइसेरा व जूनिसेरा) तक एक भूमिगत सुरंग भी थी जिसे युद्ध काल मे सुरक्षित रास्ते के रूप मे प्रयोग किया जाता रहा होगा। चौंदकोट क्षेत्र मे 16वीं शताब्दी मे गोरला थोकदारों व उनकी वंशज वीरांगना तीलू रौतेली ने भी इस गढ़ी से युद्ध संचालन किया होगा जिसके पवाड़े हमने बचपन मे सुने हैं।
    कुई के पूर्व मे गाँव दांथा-मालकोट की धार है व सामने सूदूर दीवा पर्वत श्रृंखला का विहंगम दृश्य नजर आता है जो सीमांत कुमाऊं तक फैला है। दक्षिण दिशा मे कोलगाड़-पिंगलपाखा (छेतर पर्वत माला) तथा पश्चिम में रिंगवाड़स्यु-मवाल्स्यू पट्टी का इलाका है जो गाँव के ठीक ऊपर चौतरा (चबूतरा की तरह) की धार से दिख जाता है। यहा से पौड़ी-बूबाखाल की पहाड़ियों के अलावा हिमालय की बर्फीली चोटियों के दर्शन भी हो जाते है। रिंगवाड़स्यु में बिछखोली व मवालस्यू मे चुरेड़गाँव भी सुंदरियाल गाँव हैं जो मूल रूप से कुई से गए हैं। 
     पहाड़ों में अभी कई गांव पानी की समस्या से जूझ रहे हैं लेकिन हमारे गांववासी सौभाग्यशाली हैं कि उन्हें कभी ऐसी परेशानी से नहीं जूझना पड़ा। साठ के दशक तक हमारे गाँव के चारों ओर पानी के लगभग एक दर्जन स्रोत थे जो अब घटकर छह रह गए है फिर भी भीषण गर्मियों मे भी हमारे गाँव मे पानी की कमी नहीं होती। दूरस्थ स्रोतों से लाया गया पानी कुई को रास नहीं आता इसीलिए यहां सारी सरकारी पेयजल योजनाएं कुछ समय बाद ही दम तोड़ गई। हमारा गाँव मोटर मार्ग से भी अच्छी तरह जुड़ा हुआ है। गाँव के ऊपर चौबट्टाखाल – दमदेवल तथा नीचे से चौबट्टाखाल-पोखड़ा मोटर मार्ग है। इसके अतिरिक्त गाँव से होकर चौबट्टाखाल–दांथा जीप रोड बनी है। गाँव का मुख्य बाज़ार चौबट्टाखाल लगभग एक किलोमीटर दूर है। चौबट्टाखाल में इंटर कालेज और डिग्री कालेज होेने से आसपास के अन्य गांवों सहित हमारे गांव को भी फायदा हुआ है।

गांव में रामलीला का मंचन। गांव के ऊपर स्थित काली मां का मंदिर सभी फोटो : दीनदयाल सुंदरियाल 'शैलज'

पलायन और सरकारी उपेक्षा का दर्द भी झेल रहा है कुई

   प्राकृतिक सुंदरता व तमाम सुविधावों के बावजूद असिंचित कृषि भूमि, रोजगार की कमी, जीविका के पुराने जमाने के संसाधनों के लुप्तप्राय होने, बच्चों की शिक्षा, स्वास्थ्य सुविधाओं का अभाव तथा आधुनिकता की प्रतिस्पर्धी दौड़ से पलायन की मार हमारे गाँव को भी झेलनी पड़ी है। सन 1960–70  के दौरान लगभग 85-90 परिवार वाले गाँव में अब मात्र 40-42 परिवार रह गए है। इनमे से भी 10-12 परिवार गाँव से हरिद्वार, देहारादून, ऋषिकेश जाने को तैयार बैठे हैं। गाँव के प्राइमरी स्कूल मे घटते बच्चों की संख्या से स्कूल बंद होने के कगार पर है। गाँव के  अधिकतर परिवार देहारादून, दिल्ली, मुंबई, जैसे शहरों मे स्थायी रूप से रहने लगे हैं। गॉंव के बीच खंडहर होते मकान चिंता का विषय तो है ही, गाँव की सुंदरता को भी दाग लगा रहे हैं।
    उत्तराखंड के अन्य पहाड़ी गावों की तरह मेरा गाँव भी सरकारी उपेक्षा ओर ग्रामवासियों की उदासीनता के कारण उजड़ रहा है। गर्मियों की छुट्टियों मे बेशक कुछ दिन रौनक होती है पर पर अधिकतर लोग गाँव मे किसी शादी ब्याह अथवा देवी देवता के पूजन के लिए ही आते है। कुई मे जेठ 17 गते हर साल श्री बदरीनाथ जी का भंडारा होता है जिसमें भाग लेने कभी कभी कुछ परिवार परदेश से आ जाते है। यह परम्परा अगली पीढ़ी भी निभाएगी या नहीं इसमे संदेह है। वर्ष 2014 मे गाँव मे 11 साल बाद रामलीला का आयोजन हुआ जिसमे नई पीढ़ी के बच्चों ने बड़े उल्लास से भाग लिया। मै इसे भविष्य के लिए शुभ संकेत मानता हूँ।


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7 टिप्‍पणियां:

  1. श्री दीनदयाल सुंदरियाल ने कम शब्दों में अपने गांव के इतिहास से लेकर वर्तमान तक का सुंदर वर्णन पेश किया है। सुंदरियाल जी का आभार। पहाड़ों के हर गांव का अपना इतिहास रहा है और लगभग हर गांव पलायन की मार झेल रहा है। उसकी अपनी समस्याएं हैं। उम्मीद है घसेरी के अन्य पाठक सुंदरियाल जी से प्रेरणा लेकर अपने गांवों की कहानी 'घसेरी' के साथ साझा करेंगे।

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  2. कुई में बसने वाले सुन्द्रियाल पहले जहाँ बसते थे उस जगह का नाम सुन्द्रियाल नाम से ही सुन्द्रे है बाद में सब वहां से किसी कारण वस् दूसरी वहीँ पास की जगह आकर बसे जिसे कुई नाम से जाना जाता है। (क्या मैं सही हूँ ?)

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  3. हम लोग भी सुन्दरियाल परिवार से हैं हमारे पूर्वज कुई मजगांव से आकर गांव नयालगढ़ पट्टी कटूलस्यं पोस्ट चमराड़ा जिला पौडी गढवाल में बस गये जो मूल रूप में नयालों का गांव है जो बावन गढ में से एक है वर्तमान में हमारा परिवार देहरादून में निवास कर रहा है कृपया नवीन जानकारी से अवश्य अवगत करायें धन्यवाद

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  4. Village- Dungari comprises of of the population who are now a very educated and cultured lot in the Block and now Tehsil also namely Syalde. It has a good population of ex-servicemen and also the serving defence and pra military personnel. Commander(Retd) Suresh Chandra Joshi is one of the senior ex-serviceman of this village. The village is located about half KM uphill from the main Motor Road at Turachaura coming from Ramnagar/Almora-Ranikhet side or from Masi-Choukhutiya/Dwarahat side via jainal. A connecting road to the village is considered very essential especially for the senior citiens of the village who find it difficult to climb up. The village has beautiful ancient temples of Goddess Bhawati Maa and Bhumia devta which are well look aftered by the village administration. Though most of the inmates of this village are not very rich but are well aware of their constitutional rights and duties and live in harmony and co-operation except very minor/trival personal rivalries among some of them. Late Shri Devi Dutt Shastriji who was the village pradhan for a long period of 10 years is a very popularly remembered personality by the people of this village and also the adjoining villages for his various developmental works done during his period. The Anand Madhyamik Vidyalaya at Dungari is is creation and also the water and forest preservation schemes for the village.Village Dungari has the honour to have produced Doctors, Engineers, Commisioned Defence Officers, JCOs/NCOs, Chartered Accountants, Lecturers, Principals,Political Leaders, Freedom Fighters, Social Activists, though most of them are settled in Big Metros like Delhi due to the lack of resources and facilities in the area as yet. However these people make it a point to visit the village once in a year and taken pain in renovating their ancestral houses and constructing WCs and Bath Rooms and contribute whatever is possible through their societies for the provision of common facilities for the villagers and beautification of the temples and surrounding areas. I feel our village will one day be adjudged one of the best villages of our Block Syalde and even District of Almora and State of Uttarakhand. However nothing as yet seen to have come from the Govt side as our only requirement of a jeepable road upto the village is long pending.
    Edit below overview about Dungari

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    1. सुरेश चंद्र जोशी जी आपका धन्यवाद की आपने अपने गांव के बारे में जानकारी भेजी है। उम्मीद है कि आप गांव की कुछ फोटो भी मेरे लिये dmpant@gmail.com पर मेल करेंगें। आभार।

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  5. आपने इस विषय पर गहराई से सोचा है और अच्छे समर्थन के साथ प्रस्तुत किया है। धन्यवाद! मेरा यह लेख भी पढ़ें बद्रीनाथ मंदिर का इतिहास

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  6. और एक मेरा मित्र जिसका नाम है। सुंभम कुमार सुंदरियाल जो सुंदराई गांव का हे वो आज भारत के 13 अखाड़ों में से एक आनंद अखाड़े का महंत हे गुजरात 4 बड़ी धार्मिक जगह का महंत हे

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