रविवार, 16 सितंबर 2018

मेरी चिली यात्रा (2) : जब धरती के मंगल ग्रह पर पड़े मेरे कदम

अटाकामा की सैर रोमांचक और अविश्मरणीय रही

       सेंटियागो से शाम सवा छह बजे हमें कोपियापो के लिये उड़ान पकड़नी थी। हवाई अड्डे पर पहुंचे तो स्थानीय विमान कंपनी लैटम के कर्मचारियों से बोर्डिंग पास हासिल करने के लिये भी बहस करनी पड़ी। असल में टिकट ज्यादा संख्या में बिक गये थे और सीटें कम थी। ऐसा भारत में भी होता है। हमें एक दिन बाद यात्रा करने की सलाह दी गयी और आखिर में शीर्ष अधिकारियों से बात करने पर ही हमें बोर्डिंग पास मिल पाये। वैसे इसका एक कारण यह भी था कि हम थोड़ी देर से पहुंचे थे लेकिन इतनी भी देर नहीं हुई थी कि हमें बोर्डिंग पास ही नहीं मिल पाये। बहरहाल जब हम कोपियापो हवाई अड्डे पर पहुंचे तो अंधेरा हो चुका था और ठंड काफी थी। कोपियापो शहर से हवाई अड्डा काफी दूर है और हम लगभग डेढ़ घंटे बाद अपने होटल पहुंचे। रात्रि भोज तैयार था लेकिन 'डिनर हॉल' में जाने के बाद मैं समझ गया कि यहां मुझे स्वदेश से लाये भोजन पर ही अधिक आश्रित रहना होगा। अगले दिन सुबह लेकर अटाकामा मरूस्थल में काफी अंदर तक जाने और रैली कवर करने का कार्यक्रम था। 
     अब आपको अटाकामा मरूस्थल लेकर चलता हूं। यह दुनिया का बेजोड़ स्थान है। इसलिए पहले इसके बारे में जान लेते हैं। धरती पर बसी एक और धरती। यह वाक्य अगर पृथ्वी के किसी एक स्थान पर सटीक बैठता है तो वह दक्षिण अमेरिकी देश चिली का अटाकामा मरूस्थल। दुनिया में जीवन के लिये जिन कुछ स्थानों की परिस्थितियां सबसे भीषण हैं उनमें अटाकामा मरूस्थल को सबसे ऊपर रखा जाता है। यह दुनिया का सबसे शुष्क स्थान है जिसके बारे में कहा जाता है कि बेहद कड़ी परिस्थितियों में जीने वाला कोई सूक्ष्म जीव ही यहां जीवित रह सकता है। कहते हैं कि अगर आपको अटाकामा मरूस्थल में जीवन दिख गया तो फिर आपको उससे भी मुश्किल परिस्थितियों में भी जीवन मिल सकता है फिर चाहे वह मंगल ग्रह ही क्यों न हो। जी हां अटाकामा मरूस्थल की तमाम परिस्थितियां मंगल ग्रह से मिलती हैं और इसलिए अमेरिकी अंतरिक्ष एजेंसी नासा यहां प्रयोग कर रही है और मंगल ग्रह पर आधारित हालीवुड की फिल्मों और धारावाहिकों के फिल्मांकन के लिये यह आदर्श स्थल है। 
     अटाकामा मरूस्थल चिली के उत्तरी क्षेत्र में लगभग 105,000 एक लाख पांच हजार वर्ग मीटर क्षेत्र में फैला है। नासा और हालीवुड के बाद अब कार और बाइक रैली के शौकीनों को भी अटाकामा लुभा रहा है। यहां पर हर साल अटाकामा रैली का आयोजन किया जाता है जिसमें इस साल भारत से हीरो मोटोस्पोटर्स टीम रैली की टीम ने हिस्सा लिया था। मैं इसी अटाकामा रैली को कवर करने के लिये ही चिली गया था और सौभाग्य से मुझे मरूस्थल में जाने और इसे समझने का अवसर मिला।
     म कोपियापो में अपने होटल से सुबह नौ बजे अटाकामा की सैर के लिये निकले। सुबह के समय अटाकामा के कुछ हिस्सों में धुंध छायी रहती है जिसे स्थानीय भाषा में कैमनचका कहते हैं। असल में अटाकामा के एक तरफ प्रशांत महासागर और दूसरी तरफ एंडीज पर्वतमाला है। अटाकामा की भौगोलिक परिस्थितियां इस तरह से हैं कि यहां आर्दता लगभग न के बराबर है और यही वजह है कि यहां साल में एक या दो मिलीमीटर बारिश ही होती है। प्रशांत महासागर की हम्बोल्ट धारा इस क्षेत्र में बादल बनने से रोकती है। कहा जाता है कि 1571 से लेकर 1970 यानि 400 वर्षों तक अटाकामा मरूस्थल के कई क्षेत्रों में बारिश की एक बूंद भी नहीं गिरी थी। कुछ शोधकर्ताओं के अनुसार यहां लगभग एक लाख 20 हजार वर्षों से यहां की कई नदियां सूखी पड़ी हैं। ऐसे में यह धुंध आश्चर्यजनक है लेकिन कुछ क्षेत्रों के लिये यह धुंध वरदान है क्योंकि यह उन क्षेत्रों को नमी प्रदान करती है और ऐसा ही एक क्षेत्र कोपियापो भी है।
   दमदार गाड़ी और अटाकामा मरूस्थल से अच्छी तरह से परिचित स्थानीय चालक के साथ हम सैर पर निकले। कोई सड़क नहीं और आपको पहाड़, घाटी और रेत के टीलों यानि ड्यून से होकर गुजरना है। रोमांच की यह पराकाष्ठा होती है और मैंने भी उस कुशल ड्राइवर के हाथों खुद को सौंपकर इस सफर का पूरा लुत्फ उठाया। आसमान अब साफ हो चुका था स्वच्छ नीला आकाश दिख रहा था। कहते हैं कि जितना स्वच्छ और नीला आकाश अटाकामा और उसके आसपास के क्षेत्रों में दिखता है वैसा दुनिया में शायद ही कहीं दूसरी जगह देखने को मिले। यही वजह है कि अटाकामा दुनिया भर के खगोलशास्त्रियों को भी अपनी तरफ आकर्षित करता है। अटाकामा मरूस्थल विश्व के उन कुछेक स्थानों में से एक है जहां वर्ष में 300 से भी अधिक दिन स्वच्छ आकाश दिखता है। यहां प्रकाश संबंधी प्रदूषण भी नहीं होता और ऊंचाई वाले स्थल होने के कारण इस रेगिस्तान में दुनिया का सबसे बड़ा जमीनी टेलीस्कोप अलमा स्थापित किया गया है जहां रेडियो टेलीस्कोप से ली गयी तस्वीरों की मदद से तारों के निर्माण का अध्ययन किया जाता है। इसके अलावा यहां कई अन्य बेधशालाएं यानि अब्ज़र्वटोरी भी हैं।
     रास्ते में हमें सौर ऊर्जा का एक बहुत बड़ा प्लांट भी दिखा जिसमें हजारों पैनल लगे हुए थे। बाद में पता चला कि चिली की 30 प्रतिशत बिजली का उत्पादन अटाकामा मरूस्थल में लगे इन सोलर पावर प्लांट से होता है। आखिर में पहाड़ी पर चढ़ती हमारी गाड़ी एक स्थान पर रूक गयी। पीछे से कुछ अन्य गाड़ियां आ रही थी जो इसी स्थान पर रूकी। आगे ड्यून यानि रेत के टीले थे जो वास्तव मनोरम दृश्य पैदा कर रहे थे। 
   इन्हीं में से एक टीले से रैली को गुजरना था। सभी को पहली बाइक का इंतजार था। इसके बाद लगभग 40 मिनट तक हमने बाइकर्स को इस भीषण मरूस्थल में अपनी कला का अद्भुत प्रदर्शन करते हुए देखा। 
     ब बात करते हैं अटाकामा मरूस्थल और मंगल ग्रह में समानता की। अटाकामा मरूस्थल के एंटोफगास्ता क्षेत्र की मिट्टी और मंगल ग्रह की मिट्टी बहुत समानता है। इस मरूस्थल के युंगे क्षेत्र को पृथ्वी में अपनी तरह की विशिष्ट जगह माना जाता है जिसमें नासा भविष्य में मंगल ग्रह के मिशन को लेकर पिछले डेढ़ दशक से भी अधिक समय से परीक्षण कर रहा है। अटाकामा में एक और स्थल मारिया इलेना है जिसे युंगे से अधिक शुष्क है और वह वहां की परिस्थितियां मंगल ग्रह के सबसे ज्यादा अनुकूल हैं। नासा का एक दल पिछले साल भी अटाकामा मरूस्थल में गया था। उन्होंने वहां परीक्षण किये जिनका उपयोग एक दिन किसी अन्य दुनिया में जीवन के लक्षणों की खोज में किया जा सकता है। मंगल ग्रह पर भेजे गये यान फीनिक्स मार्श लैंडर ने लाल ग्रह के उस स्थान पर पर्कोरेट्स पदार्थ पाया था जहां सबसे पहले पानी मिला था। पर्कोरेट्स अटाकामा मरूस्थल में भी पाया जाता है। हालीवुड फिल्मों में मंगल ग्रह से जुड़े दृश्यों के फिल्मांकन के लिये भी अटाकामा मरूस्थल का उपयोग किया जाता रहा है। इनमें टेलीविजन सीरीज ‘स्पेस ओडेसी : वॉयेज टू द प्लेनेट्स’ भी शामिल है।
     अटाकामा मरूस्थल के बारे में कहा जाता है कि यहां कोई जिद्दी पौधा या जीव ही जीवित रह सकता है। इस मरूस्थल के कई क्षेत्रों में तो वनस्पति और जीव मिलते ही नहीं हैं। मैं जिस क्षेत्र में गया था वहां कुछ जिद्दी घास देखने को मिली थी। एंडीज पर्वत की निचली घाटियों के हिस्से को भी अटाकामा मरूस्थल का हिस्सा माना जाता है जहां हमने गिलहरी और खरगोश के मिश्रण वाला जीव देखा था जिसे स्थानीय भाषा में विस्काचा कहते हैं लेकिन मरूस्थल के मुख्य भाग में मुझे कोई जीव नहीं दिखा। समुद्र के पास वाले हिस्से में छिपकली प्रजाति के कुछ जीव जरूर मिलते हैं लेकिन मैं उन क्षेत्रों की सैर नहीं कर पाया। वैसे यह मरूस्थल तांबे और अन्य खनिजों से समृद्ध है और यहां सोडियम नाइट्रेट बहुतायत में मिलता है।
     मरूस्थल के टेढ़े मेढ़े रास्तों से होकर पहाड़ियों पर चढ़ने से अधिक रोमांच उतरने में आया लेकिन ड्राइवर इतना कुशल था कि हमें खास झटके नहीं लगे। कभी अटाकामा जाओ तो अपने साथ पर्याप्त मात्रा में पानी लेकर जाना चाहिए। हमारे पास पानी की बोतलें थी। मैं कुछ सेब खरीदकर भी ले गया जिनका स्वाद अटाकामा ने चार गुना बढ़ा दिया था। उस दिन मरूस्थल में इन सेब के सहारे मेरा पूरा दिन अच्छी तरह से निकल गया था। सुबह भी फल तथा कार्न फ्लैक्स का नाश्ता कयिा था और दिन सेब के साथ कट गया था। शाम के लिये तो मेरे पास स्वदेशी भोजन था ही।
     यह थी दुनिया के अनोखे मरूस्थल अटाकामा की छोटी सी कहानी। आपको कैसी लगी जरूर बतायें। आपका धर्मेन्द्र पंत 
















                                                             क्रमश: 

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