खयालों और ख्वाबों
में दुनिया की
सैर करना तो
मैंने तब सीख
लिया था जब
मैं महज पांच
साल का था।
पिताजी को भूगोल
और खगोल विज्ञान
का अच्छा ज्ञान
था। रात को
हमें तारों के
बारे में बताते
और दिन में
तमाम देशों और
उनकी राजधानियों के
बारे में बताकर
दुनिया की सैर
कराते। तब मैं
आठ साल का
था। तीसरी कक्षा
में पढ़ रहा
था जब हमारी
स्कूल में नये
अध्यापक आये। एक
दिन उन्होंने रौब
से पूछा कि
भारत की राजधानी
का नाम बताओ।
फिर वह उत्तर
प्रदेश और अन्य
राज्यों की राजधानियों
के बारे में
पूछने लगे और
अब जवाब अकेले
मैं दे रहा
था। उन्होंने कुछ
देशों की राजधानी
पूछी जो मुझे
याद थी। बाद
में उन्होंने पूछा
'क्या तुम्हें सभी
देशों की राजधानी
पता हैं।' मैंने
कहा 'हां' और
मैं तोते की
तरह रट लगाकर
एशिया से यूरोप
पहुंच गया। बाद
में वह शिक्षक
पिताजी से मिले
और उन्होंने कहा
''मुझे जिन देशों
के बारे में
पता तक नहीं
है धर्मेन्द्र को
उनकी राजधानी भी
पता है।'' कहने
का लब्बोलुआब यह
है कि चिली
और उसकी राजधानी
सेंटियागो से मेरा
परिचय बचपन में
हो गया था।
कुछ इस तरह
''ये चिली है।
अर्जेंटीना और प्रशांत
महासागर के बीच
में मिर्च के
जैसा लंबा देश।
तुम्हें पता है
मिर्च को अंग्रेजी
में चिली कहते
हैं।'' पिताजी का समझाने
का तरीका लाजवाब
था। चिली ख्वाबों
और खयालों में
तो था लेकिन
वह हकीकत में
बदल जाएगा यह
कभी नहीं सोचा
था।
वह चार
अगस्त 2018 की शाम
थी जब मेरे
(भाषा) संपादक श्री निर्मल
पाठक का फोन
आया। उनका पहला
सवाल था 'पासपोर्ट
है क्या आपके
पास'। मेरी
हां पर उन्होंने
बताया कि रेस
कवर करने जाना
है दक्षिण अमेरिका
में। वीजा और
अन्य औपचारिकताएं पूरी
करने के बाद
14 अगस्त को सुबह
चार बजे मैं
एमिरेट्स के विमान
में सवार था।
इससे पहले 12 बजते
ही छोटे बेटे
प्रदुल का 12वां
जन्मदिन मनाया और फिर
मैं एयरपोर्ट रवाना
हो गया था।
दुबई में मुंबई
से आये हिन्दुस्तान
टाइम्स के पत्रकार
राजेश पनसारे से
मुलाकात हुई। दिल्ली
से 14 अगस्त की
सुबह चार बजे
चला था और
चिली 14 अगस्त को ही
रात दस बजकर
30 मिनट पर पहुंचा
लेकिन इस बीच
27 घंटे बीत चुके
थे। भारत में
उस समय 15 अगस्त
की सुबह के
सात बज रहे
थे। स्वतंत्रता दिवस
की तैयारियां शुरू
हो गयी थी।
सेंटियागो एयरपोर्ट पर ही
कुणाल जोशी से
भी मुलाकात हुई
जो हमारे प्रायोजक
हीरो मोटोकॉर्प से
जुड़े थे। सेंटियागो
से लगभग 800 किमी
दूर कोपियापो के
पास स्थित प्रसिद्ध
अटाकामा मरूस्थल में हमें
बाइक रेस कवर
करनी थी। अटाकामा
रैली 2018 में भारत
से हीरो मोटोस्पोर्ट्स
रैली टीम भी
भाग ले रही
थी। बहरहाल अभी
मैं आपको सेंटियागो
ले चलूंगा जहां
मैंने रात के
बाद अगला पूरा
दिन भी बिताया
था।
सेंटियागो में ही
पता चल गया
था कि इस
देश में हमें
भाषा की समस्या
से जूझना होगा।
वहां बमुश्किल ही
किसी को अंग्रेजी
आ रही थी
जिसे अंतरराष्ट्रीय भाषा
समझा जाता है।
चिली जाकर मेरी
यह धारणा टूट
गयी थी। वहां
केवल स्पेनिश बोली
जाती है। इसके
बाद तो हमें
हर कदम पर
भाषा संबंधी दिक्कतों
से रूबरू होना
पड़ा। मेरे लिये
एक और परेशानी
थी। मैं ठहरा
शुद्ध शाकाहारी और
चिली जैसे देश
में शाकाहारी भोजन
मिलना आसान नहीं
था। मैं अपने
साथियों कुशान सरकार और
मोना पार्थसारथी का
आभार व्यक्त करना
चाहूंगा जिन्होंने मुझे पहले
ही आगाह कर
दिया था। मैं
'एमटीआर' के 'रेडी
टू ईट' के
कुछ पैकेट साथ
ले गया था।
बिस्किट और नमकीन
भी पर्याप्त थी।
चिली प्रवास के
पांच दिनों में
मैंने साथ की
इस सामग्री के
अलावा फल, सलाद,
दूध, चौकोस और
ड्राई फ्रूट का
ही भक्षण किया।
सेंटियागो में नाश्ते
के बाद मैं,
राजेश और कुणाल
सुबह की सैर
पर निकले। हम
जिस दिन स्वतंत्रता
दिवस मनाते हैं
उस दिन कई
कैथोलिक देशों में 'एजम्पशन
डे' (मैरी के
स्वर्ग में प्रवेश
का दिन) मनाया
जाता है और
चिली भी इन
देशों में शामिल
है। हम बाहर
निकले तो बाजार
बंद थे। सड़क
पर सलीके से
दौड़ती गाड़ियों, ऊंची इमारतों
को देखते और
समझते हुए हम
पैदल ही 'प्लाजा
डि आर्म्स' पहुंचे
जो सेंटियागो का
मुख्य केंद्र है।
वहां पर हमें
कुछ देशी और
विदेशी पर्यटक मिले। पैदल
चलने का एक
फायदा हुआ कि
इस बीच सेंटियागो
को करीब से
देखने का मौका
मिला। खूबसूरत इमारतें,
चमचमाती सड़कें और तिस
पर स्वच्छ नीला
आकाश। सर्दियों में
दिल्ली में ऐसी
कल्पना करना भी
मुश्किल है। सनद
रहे कि सेंटियागो
में यह सर्दियों
का मौसम है।
शहर से ही
सामने बर्फ से
पटा एंडीज भी
दिख जाता। प्लाजा
डि आर्म्स के
आसपास चंद दुकानें
खुली थी। एक
तरफ रेहड़ी वाले
थे तो पास
में ही फल
और सब्जियों की
दुकानों पर भी
हलचल हो रही
थी।
सेंटियागो अपनी चित्रकारी
और कला के
लिये भी मशहूर
है। यहां स्थित
कला संग्रहालय इसका
सबूत हैं। वैसे
मुझे सड़क पर
खूबसूरत चित्र उकेरता कलाकार
और उसके काम
को निहारते कई
लोगों से अहसास
हो गया था
कि यह देश
कला प्रेमी है।
प्लाजा डि आर्म्स
के पास में
स्थित एक गली
में मुझे जिस
एक चीज ने
सबसे प्रभावित किया
वह फोटो खींचने
वाली मशीन थी।
आपको फोटो खींचनी
है या एनिमेशन
फिल्म बनानी है,
मशीन सेट कीजिए
और फिर एक्शन
के साथ कुछ
दूरी पर खड़े
हो जाइये। जब
फोटो खिंच जाए
तो मशीन में
अपना ईमेल दीजिये
और तुरंत ही
तस्वीर आपके मेल
बॉक्स में पहुंच
जाएगी। इस बीच
हमने 'मनी एक्सचेंज'
की और 80 डालर के
बदले में लगभग
52,000 चिलियन पेसो अपने
जेब के हवाले
कर दिये थे।
सेंटियागो में बिताये
इस एक दिन
में शायद कुछ
खट्टी यादें भी
जुड़नी बाकी थी।
हमें शाम को
कोपियापो निकलना था, लेकिन
अभी हमारे पास
सेंटियागो की खाक
छानने के लिये
पर्याप्त मौका था।
गूगल बाबा की
मदद से पता
चला कि पास
में ही एक
भारतीय रेस्टोरेंट है। पैदल
ही वहां निकल
पड़े लेकिन वहां
जाकर देखा तो
वह बंद था।
अब हम गफलत
में थे कि
होटल जाएं कि
सेंटियागो घूमें। हमने घूमने
का फैसला किया
और इसके लिये
टैक्सी का सहारा
लिया। अब वही
समस्या ड्राइवर को अंग्रेजी
समझ में नहीं
आ रही थी
और हमें स्पेनिश।
दुर्भाग्य से धूर्त
ड्राइवर से हमारा
पाला पड़ा। उसका
मीटर उसैन बोल्ट
से भी तेज
भाग रहा था।
उसके साथ हमारी
धड़कनें भी भाग
रही थी। हमने
उससे पूछा भी
लेकिन वह भाषा
के कारण अनजान
बना रहा। बमुश्किल
पांच किमी बाद
हमने उसे रोक
दिया और सिर्फ
इतनी दूरी का
बिल उसने 12000 चिलियन
पेसो यानि लगभग
1200 रुपये का बना
दिया। यही नहीं
हमने उसे 20,000 चिलियन
पेसो का नोट
थमाया तो पहले
उसने कहा कि
चेंज नहीं है
और बाद में
वह मुकर गया
कि हमने उसे
पैसे दिये ही
नहीं। उससे बहस
भी नहीं की
जा सकती थी।
इस बीच उसने
देखा कि कुणाल
अपना मोबाइल सीट
पर भूल गया
है। हम जब
तक मोबाइल लेने
के लिये दरवाजा
खोलते उसने सरपट
गाड़ी दौड़ा दी।
हड़बड़ी कहो या
बेवकूफी हम उसका
नंबर भी नोट
नहीं कर पाये।
पास के
पुलिस थाने में
गये तो वहां
भी भाषा संबंधी
दिक्कत। थाना प्रभारी
से गूगल बाबा
की अनुवाद सुविधा
के जरिये बात
होती रही, लेकिन
पुलिसकर्मियों का टालू
रवैया साफ दिख
रहा था। दो
घंटे तक उसने
रिपोर्ट नहीं लिखी।
हम लगातार उससे
कहते रहे कि
हमें आगे की
उड़ान पकड़नी है।
आखिर में हमने
उसका नंबर लिया।
उससे ही टैक्सी
बुक करवायी और
होटल निकल पड़े।
इस बार केवल
2700 चिलियन पेसो में
होटल पहुंच गये
थे और इस
तरह से हमारी
आधी से अधिक
चिलियन करेंसी सेंटियागो में
ही सुट हो
गयी थी। आपका धर्मेन्द्र पंत
क्रमश:
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