एंडीज पास में हो, ज्वालामुखी हों और 5000 मीटर से भी अधिक ऊंचाई पर झीलें हो तो किसी का भी दिल मचल जाएगा फिर मैं तो भूगोल का विद्यार्थी भी रहा हूं। चिली के उत्तरी भाग में स्थित शहर कोपियापो से अगर एक दिन मैंने अटाकामा मरूस्थल में बिताया तो दूसरे दिन एंडीज की एक श्रेणी पर। एंडीज को यूं तो सैंटियागो से ही देख लिया था लेकिन उसकी गोदी में एक दिन बिताना सच में अद्भुत अहसास था। मैं हीरो मोटोकार्प के अपने साथी कुणाल जोशी का आभार व्यक्त करना चाहूंगा जिन्होंने हमारी बात सुनी और एंडीज में स्थित नेवादो ट्रेस क्रूस नेशनल पार्क तथा उसके पास स्थित झील लागुना सैंटा रोसा और सालार डि मरिकुंगा तक जाने की योजना थी। सालार डि मरिकुंगा में ही दुनिया का सबसे ऊंचाई पर स्थित सक्रिय ज्वालामुखी और चिली का सबसे ऊंचा शिखर नेवादो ओजोस डेल सलादो है जिसकी ऊंचाई 6893 मीटर है।
कोपियापो से नेवादो ट्रेस क्रूस की दूरी लगभग 196 किलोमीटर है। हमें होटल में ही अटाकामा रैली कार्यक्रम से जुड़ी एक स्थानीय महिला अधिकारी ने तमाम हिदायतें दे दी थी। एंडीज में हमें क्या करना है और क्या नहीं करना है। फिर रास्ते भर में हमारा गाइड और ड्राइवर राबर्टो वेरगारा भी हमें सतर्क करता रहा। अमूमन 3000 मीटर के बाद सांस लेने में दिक्कत आ सकती थी और हमें 5000 मीटर तक जाना था लेकिन मुझ पहाड़ी को क्या चिंता। सच में मैं काफी उत्साहित था। जिस एंडीज के बारे में पढ़ा लिखा था आज मैं उसी को आलिंगन करने जा रहा हूं। आज वही एंडीज मुझे अपने आगोश में लेगा। पहाड़ी और बर्फीले रास्तों के लिये उपयुक्त दो गाड़ियों में हम पांच लोग सुबह सात बजे एंडीज के लिये रवाना हो गये। एक गाड़ी में हम तीन भारतीय मैं, कुणाल जोशी और हिन्दुस्तान टाइम्स से जुड़े पत्रकार राजेश पनसारे थे तो दूसरी गाड़ी में पेरू के पत्रकार पाब्लो बरमुडेज और कोलंबिया के रूबेन गोंजालेज सवार थे। तेजी से भागती हमारी गाड़ी अब एक घाटी से होकर गुजर रही थी। वहां हम थे, सड़क थी और सुनसान पहाड़ थे जिन्हें अटाकामा मरूस्थल का ही हिस्सा माना जाता है।
हम पहले पड़ाव के लिये जहां पर रूके उसके बारे में राबर्टो ने बताया कि यह भुतहा कस्बा है 1860 के आसपास काफी चहलकदमी रहती थी। चिली के इन क्षेत्रों में काफी मात्रा खनिज पदार्थ पाये जाते हैं। इनमें सोना चांदी भी शामिल है। यहां के लोगों का भी मुख्य व्यवसाय खनन से ही जुड़ा था लेकिन बीसवीं सदी के शुरू में आयी मंदी के कारण उन्हें यह जगह छोड़नी पड़ी। पिछले लगभग 100 साल से यह जगह भुतहा बनी हुई है। यहां मकानों के अवशेष याद दिलाते हैं कि यहां कभी इंसान रहा करते थे। हमारा अगला पड़ाव काफी मनोरम था। यहां पर जिस पहली चीज ने मुझे लुभाया वह थी कांस या कुश जैसी घास। राबर्टों ने हमें घास नहीं छूने की हिदायत दी क्योंकि उसके धारदार पत्तों से हाथ कटने का डर था। यहीं पर हमने अपना नाश्ता भी किया और फिर हमने घोड़ों का एक झुंड भी देखा। ये एक तरह से जंगली घोड़े थे और राबर्टो ने बताया कि जब स्थानीय निवासियों को इनकी जरूरत पड़ती है तब वे इन्हें पकड़ ले जाते हैं। विशेषकर मांस के लिये इनका उपयोग किया जाता है। शायद ये घोड़े इंसान की फितरत जानते हैं और इसलिए जब हम उनकी तरफ बढ़े तो बिदककर भाग गये।
कुछ देर तक हमने दूसरे साथियों का इंतजार किया और फिर निकल पड़े। धीरे धीरे एंडीज हमारे पास आ रहा था। दुनिया की सबसे लंबी पर्वत श्रृंखला जो दक्षिण अमेरिकी महाद्वीप के पूरे पश्चिमी क्षेत्र में उत्तर से लेकर दक्षिण तक लगभग 7000 किलोमीटर तक फैली। अपना हिमालय लगभग 2500 किमी तक फैला है। अब बर्फ हमारा आलिंगन करने लग गयी थी। रास्ते में लगे विभिन्न साइन बोर्ड से हमें पता चल जाता कि अब हम कितनी ऊंचाई पर पहुंच गये हैं। इसके साथ ही हमारे गाइड की हिदायतें भी शुरू हो जाती। मुझे इसकी परवाह नहीं थी। मुझे तो बस ज्वालामुखी देखना था। हमने चिली के सीमा कार्यालय से थोड़ा आगे रास्ता बदला और नेवादो ट्रेस क्रूस की तरफ बढ़ने लगे। लेकिन यह क्या आगे तो रास्ता बर्फ से सटा पड़ा था। लगता था कि रात को ही बर्फवारी हुई थी। हमारे आगे एक ट्रक रास्ता साफ कर रहा था। अमूमन यहां गर्मियों में ही पर्यटक आते हैं और तब बर्फ नहीं पड़ती है। ज्वालामुखी 12 से 15 किमी दूर था लेकिन इस ट्रक के पीछे चलने का मतलब था कि हमें वहां पहुंचने में काफी समय लग जाएगा। अपने गाइड से सलाह ली और उसने बताया कि अर्जेंटीना की सीमा पर कोई जल प्रपात है और उसे देखने जाया जा सकता है। पास में सालार डि मरिकुंगा पर्वत था। चारों तरफ बर्फ बिछी हुई है। इसी के उस पार ज्वालामुखी और झील थी लेकिन मुझे उन्हें देखने का मौका नहीं मिला। उत्तरी चिली में स्थित एंडीज पर्वत श्रृंखला का नाम प्रसिद्ध भूविज्ञानी इग्नेसी डोमियको के नाम पर कार्डिलेरा डोमियको रखा गया है। डोमियको पोलैंड में जन्मे थे लेकिन बाद में उन्होंने चिली को ही अपना घर बना दिया था। उन्होंने इस क्षेत्र में काफी शोध किये थे।
हमने वापस लौटकर पहले लंच किया। मेरे लिये घास फूस यानि शाकाहारी भोजन की व्यवस्था होटल ने ही कर दी थी। अब हम अर्जेंटीना की तरफ बढ़ रहे थे और मेरा दिल बल्लियों उछल रहा था। अभी चढ़ाई पर कुछ ही किलोमीटर आगे बढ़े थे कि बर्फ का एक टीला ही सड़क पर छाती फैलाये बैठा था। मतलब आगे जाने की योजना भी रद्द। इस बीच मेरे साथियों पर ऊंचाई का असर दिखने लग गया था। सरदर्द उनमें से एक है। गाइड की हिदायत के बावजूद मैं नीचे उतरा। यहां से अर्जेंटीना इसके बिल्कुल पास में है। इस पहाड़ी के पार अर्जेंटीना की सीमा दिख जाएगी। वही अर्जेंटीना जिसकी धरती पर डियगो माराडोना जैसे दिग्गज फुटबालर का जन्म हुआ। जो लियोनेल मेस्सी की जन्मस्थली है। यह गैब्रियला सबातीन का देश भी है। टेनिस खिलाड़ी सबातीनी जिसने एक जमाने में अपनी सुंदरता से दुनिया भर के युवाओं को अपना दीवाना बनाया था और सच कहूं तो उनमें से एक मैं भी था। यहां पर कार्लोस से मैंने खुद का एक वीडियो भी बनवाया।
एंडीज के एक खास जीव विकुना ने यहां पर दर्शन देकर हमारा यहां तक पहुंचना सार्थक कर दिया। विकुना लामा प्रजाति का ही जीव है जिसकी ऊन से बना कोट बेहद महंगा होता है। ऊन, खाल और मांस के लिये विकुना का शिकार किया जाने लगा जिसके कारण 1974 में इनकी संख्या केवल छह हजार रह गयी थी। आखिर में इसे संरक्षित जीव की श्रेणी में रखा गया और इसके सकारात्मक परिणाम देखने को मिले। आज विकुना की संख्या बढकर 35 हजार पर पहुंच गयी है। वापस लौटते समय हमें घाटियों में एक और जीव दिखा जिसे स्थानीय भाषा विस्काचा कहा जाता है। यह गिलहरी और खरगोश के मिश्रण वाला जीव है और मांस के लिये इसका शिकार किये जाने के कारण यह भी अब संरक्षित श्रेणी में आता था। शाम को जब हम होटल लौटे तो हमारे पास एंडीज की ढेर सारी यादें थी। ऐसी यादें जो ताउम्र हमारे साथ बनी रहेंगी। इस पर मैंने एक वीडियो भी तैयार किया है। उम्मीद है वह आपको पसंद आएगा। आपका धर्मेन्द्र पंत
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