मंगलवार, 18 सितंबर 2018

मेरी चिली यात्रा (3) : एंडीज में एक दिन


   एंडीज पास में हो, ज्वालामुखी हों और 5000 मीटर से भी अधिक ऊंचाई पर झीलें हो तो किसी का भी दिल मचल जाएगा फिर मैं तो भूगोल का विद्यार्थी भी रहा हूं। चिली के उत्तरी भाग में स्थित शहर कोपियापो से अगर एक दिन मैंने अटाकामा मरूस्थल में बिताया तो दूसरे दिन एंडीज की एक श्रेणी पर। एंडीज को यूं तो सैंटियागो से ही देख लिया था लेकिन उसकी गोदी में एक दिन बिताना सच में अद्भुत अहसास था। मैं हीरो मोटोकार्प के अपने साथी कुणाल जोशी का आभार व्यक्त करना चाहूंगा जिन्होंने हमारी बात सुनी और एंडीज में स्थित नेवादो ट्रेस क्रूस नेशनल पार्क तथा उसके पास स्थित झील लागुना सैंटा रोसा और सालार डि मरिकुंगा तक जाने की योजना थी। सालार डि मरिकुंगा में ही दुनिया का सबसे ऊंचाई पर स्थित सक्रिय ज्वालामुखी और चिली का सबसे ऊंचा शिखर नेवादो ओजोस डेल सलादो है जिसकी ऊंचाई 6893 मीटर है।
     कोपियापो से नेवादो ट्रेस क्रूस की दूरी लगभग 196 किलोमीटर है। हमें होटल में ही अटाकामा रैली कार्यक्रम से जुड़ी एक स्थानीय महिला अधिकारी ने तमाम हिदायतें दे दी थी। एंडीज में हमें क्या करना है और क्या नहीं करना है। फिर रास्ते भर में हमारा गाइड और ड्राइवर राबर्टो वेरगारा भी हमें सतर्क करता रहा। अमूमन 3000 मीटर के बाद सांस लेने में दिक्कत आ सकती थी और हमें 5000 मीटर तक जाना था लेकिन मुझ पहाड़ी को क्या चिंता। सच में मैं काफी उत्साहित था। जिस एंडीज के बारे में पढ़ा लिखा था आज मैं उसी को आलिंगन करने जा रहा हूं। आज वही एंडीज मुझे अपने आगोश में लेगा। पहाड़ी और बर्फीले रास्तों के लिये उपयुक्त दो गाड़ियों में हम पांच लोग सुबह सात बजे एंडीज के लिये रवाना हो गये। एक गाड़ी में हम तीन भारतीय मैं, कुणाल जोशी और हिन्दुस्तान टाइम्स से जुड़े पत्रकार राजेश पनसारे थे तो दूसरी गाड़ी में पेरू के पत्रकार पाब्लो बरमुडेज और कोलंबिया के रूबेन गोंजालेज सवार थे। तेजी से भागती हमारी गाड़ी अब एक घाटी से होकर गुजर रही थी। वहां हम थे, सड़क थी और सुनसान पहाड़ थे जिन्हें अटाकामा मरूस्थल का ही हिस्सा माना जाता है।
     म पहले पड़ाव के लिये जहां पर रूके उसके बारे में राबर्टो ने बताया कि यह भुतहा कस्बा है 1860 के आसपास काफी चहलकदमी रहती थी। चिली के इन क्षेत्रों में काफी मात्रा खनिज पदार्थ पाये जाते हैं। इनमें सोना चांदी भी शामिल है। यहां के लोगों का भी मुख्य व्यवसाय खनन से ही जुड़ा था लेकिन बीसवीं सदी के शुरू में आयी मंदी के कारण उन्हें यह जगह छोड़नी पड़ी। पिछले लगभग 100 साल से यह जगह भुतहा बनी हुई है। यहां मकानों के अवशेष याद दिलाते हैं कि यहां कभी इंसान रहा करते थे। हमारा अगला पड़ाव काफी मनोरम था। यहां पर जिस पहली चीज ने मुझे लुभाया वह थी कांस या कुश जैसी घास। राबर्टों ने हमें घास नहीं छूने की हिदायत दी क्योंकि उसके धारदार पत्तों से हाथ कटने का डर था। यहीं पर हमने अपना नाश्ता भी किया और फिर हमने घोड़ों का एक झुंड भी देखा। ये एक तरह से जंगली घोड़े थे और राबर्टो ने बताया कि जब स्थानीय निवासियों को इनकी जरूरत पड़ती है तब वे इन्हें पकड़ ले जाते हैं। विशेषकर मांस के लिये इनका उपयोग किया जाता है। शायद ये घोड़े इंसान की फितरत जानते हैं और इसलिए जब हम उनकी तरफ बढ़े तो बिदककर भाग गये।
     कुछ देर तक हमने दूसरे साथियों का इंतजार किया और फिर निकल पड़े। धीरे धीरे एंडीज हमारे पास आ रहा था। दुनिया की सबसे लंबी पर्वत श्रृंखला जो दक्षिण अमेरिकी महाद्वीप के पूरे पश्चिमी क्षेत्र में उत्तर से लेकर दक्षिण तक लगभग 7000 किलोमीटर तक फैली। अपना हिमालय लगभग 2500 किमी तक फैला है। अब बर्फ हमारा आलिंगन करने लग गयी थी। रास्ते में लगे विभिन्न साइन बोर्ड से हमें पता चल जाता कि अब हम कितनी ऊंचाई पर पहुंच गये हैं। इसके साथ ही हमारे गाइड की हिदायतें भी शुरू हो जाती। मुझे इसकी परवाह नहीं थी। मुझे तो बस ज्वालामुखी देखना था। हमने चिली के सीमा कार्यालय से थोड़ा आगे रास्ता बदला और नेवादो ट्रेस क्रूस की तरफ बढ़ने लगे। लेकिन यह क्या आगे तो रास्ता बर्फ से सटा पड़ा था। लगता था कि रात को ही बर्फवारी हुई थी। हमारे आगे एक ट्रक रास्ता साफ कर रहा था। अमूमन यहां गर्मियों में ही पर्यटक आते हैं और तब बर्फ नहीं पड़ती है। ज्वालामुखी 12 से 15 किमी दूर था लेकिन इस ट्रक के पीछे चलने का मतलब था कि हमें वहां पहुंचने में काफी समय लग जाएगा। अपने गाइड से सलाह ली और उसने बताया कि अर्जेंटीना की सीमा पर कोई जल प्रपात है और उसे देखने जाया जा सकता है। पास में सालार डि मरिकुंगा पर्वत था। चारों तरफ बर्फ बिछी हुई है। इसी के उस पार ज्वालामुखी और झील थी लेकिन मुझे उन्हें देखने का मौका नहीं मिला। उत्तरी चिली में स्थित एंडीज पर्वत श्रृंखला का नाम प्रसिद्ध भूविज्ञानी इग्नेसी डोमियको के नाम पर कार्डिलेरा डोमियको रखा गया है। डोमियको पोलैंड में जन्मे थे लेकिन बाद में उन्होंने चिली को ही अपना घर बना दिया था। उन्होंने इस क्षेत्र में काफी शोध किये थे।  
     मने वापस लौटकर पहले लंच किया। मेरे लिये घास फूस यानि शाकाहारी भोजन की व्यवस्था होटल ने ही कर दी थी। अब हम अर्जेंटीना की तरफ बढ़ रहे थे और मेरा दिल बल्लियों उछल रहा था। अभी चढ़ाई पर कुछ ही किलोमीटर आगे बढ़े थे कि बर्फ का एक टीला ही सड़क पर छाती फैलाये बैठा था। मतलब आगे जाने की योजना भी रद्द। इस बीच मेरे साथियों पर ऊंचाई का असर दिखने लग गया था। सरदर्द उनमें से एक है। गाइड की हिदायत के बावजूद मैं नीचे उतरा। यहां से अर्जेंटीना इसके बिल्कुल पास में है। इस पहाड़ी के पार अर्जेंटीना की सीमा दिख जाएगी। वही अर्जेंटीना जिसकी धरती पर डियगो माराडोना जैसे दिग्गज फुटबालर का जन्म हुआ। जो लियोनेल मेस्सी की जन्मस्थली है। यह गैब्रियला सबातीन का देश भी है। टेनिस खिलाड़ी सबातीनी जिसने एक जमाने में अपनी सुंदरता से दुनिया भर के युवाओं को अपना दीवाना बनाया था और सच कहूं तो उनमें से एक मैं भी था। यहां पर कार्लोस से मैंने खुद का एक वीडियो भी बनवाया। 
     एंडीज के एक खास जीव विकुना ने यहां पर दर्शन देकर हमारा यहां तक पहुंचना सार्थक कर दिया। विकुना लामा प्रजाति का ही जीव है जिसकी ऊन से बना कोट बेहद महंगा होता है। ऊन, खाल और मांस के लिये विकुना का शिकार किया जाने लगा जिसके कारण 1974 में इनकी संख्या केवल छह हजार रह गयी थी। आखिर में इसे संरक्षित जीव की श्रेणी में रखा गया और इसके सकारात्मक परिणाम देखने को मिले। आज विकुना की संख्या बढकर 35 हजार पर पहुंच गयी है। वापस लौटते समय हमें घाटियों में एक और जीव दिखा जिसे स्थानीय भाषा विस्काचा कहा जाता है। यह गिलहरी और खरगोश के मिश्रण वाला जीव है और मांस के लिये इसका शिकार किये जाने के कारण यह भी अब संरक्षित श्रेणी में आता था। शाम को जब हम होटल लौटे तो हमारे पास एंडीज की ढेर सारी यादें थी। ऐसी यादें जो ताउम्र हमारे साथ बनी रहेंगी। इस पर मैंने एक वीडियो भी तैयार किया है। उम्मीद है वह आपको पसंद आएगा। आपका धर्मेन्द्र पंत 





































  समाप्त 

रविवार, 16 सितंबर 2018

मेरी चिली यात्रा (2) : जब धरती के मंगल ग्रह पर पड़े मेरे कदम

अटाकामा की सैर रोमांचक और अविश्मरणीय रही

       सेंटियागो से शाम सवा छह बजे हमें कोपियापो के लिये उड़ान पकड़नी थी। हवाई अड्डे पर पहुंचे तो स्थानीय विमान कंपनी लैटम के कर्मचारियों से बोर्डिंग पास हासिल करने के लिये भी बहस करनी पड़ी। असल में टिकट ज्यादा संख्या में बिक गये थे और सीटें कम थी। ऐसा भारत में भी होता है। हमें एक दिन बाद यात्रा करने की सलाह दी गयी और आखिर में शीर्ष अधिकारियों से बात करने पर ही हमें बोर्डिंग पास मिल पाये। वैसे इसका एक कारण यह भी था कि हम थोड़ी देर से पहुंचे थे लेकिन इतनी भी देर नहीं हुई थी कि हमें बोर्डिंग पास ही नहीं मिल पाये। बहरहाल जब हम कोपियापो हवाई अड्डे पर पहुंचे तो अंधेरा हो चुका था और ठंड काफी थी। कोपियापो शहर से हवाई अड्डा काफी दूर है और हम लगभग डेढ़ घंटे बाद अपने होटल पहुंचे। रात्रि भोज तैयार था लेकिन 'डिनर हॉल' में जाने के बाद मैं समझ गया कि यहां मुझे स्वदेश से लाये भोजन पर ही अधिक आश्रित रहना होगा। अगले दिन सुबह लेकर अटाकामा मरूस्थल में काफी अंदर तक जाने और रैली कवर करने का कार्यक्रम था। 
     अब आपको अटाकामा मरूस्थल लेकर चलता हूं। यह दुनिया का बेजोड़ स्थान है। इसलिए पहले इसके बारे में जान लेते हैं। धरती पर बसी एक और धरती। यह वाक्य अगर पृथ्वी के किसी एक स्थान पर सटीक बैठता है तो वह दक्षिण अमेरिकी देश चिली का अटाकामा मरूस्थल। दुनिया में जीवन के लिये जिन कुछ स्थानों की परिस्थितियां सबसे भीषण हैं उनमें अटाकामा मरूस्थल को सबसे ऊपर रखा जाता है। यह दुनिया का सबसे शुष्क स्थान है जिसके बारे में कहा जाता है कि बेहद कड़ी परिस्थितियों में जीने वाला कोई सूक्ष्म जीव ही यहां जीवित रह सकता है। कहते हैं कि अगर आपको अटाकामा मरूस्थल में जीवन दिख गया तो फिर आपको उससे भी मुश्किल परिस्थितियों में भी जीवन मिल सकता है फिर चाहे वह मंगल ग्रह ही क्यों न हो। जी हां अटाकामा मरूस्थल की तमाम परिस्थितियां मंगल ग्रह से मिलती हैं और इसलिए अमेरिकी अंतरिक्ष एजेंसी नासा यहां प्रयोग कर रही है और मंगल ग्रह पर आधारित हालीवुड की फिल्मों और धारावाहिकों के फिल्मांकन के लिये यह आदर्श स्थल है। 
     अटाकामा मरूस्थल चिली के उत्तरी क्षेत्र में लगभग 105,000 एक लाख पांच हजार वर्ग मीटर क्षेत्र में फैला है। नासा और हालीवुड के बाद अब कार और बाइक रैली के शौकीनों को भी अटाकामा लुभा रहा है। यहां पर हर साल अटाकामा रैली का आयोजन किया जाता है जिसमें इस साल भारत से हीरो मोटोस्पोटर्स टीम रैली की टीम ने हिस्सा लिया था। मैं इसी अटाकामा रैली को कवर करने के लिये ही चिली गया था और सौभाग्य से मुझे मरूस्थल में जाने और इसे समझने का अवसर मिला।
     म कोपियापो में अपने होटल से सुबह नौ बजे अटाकामा की सैर के लिये निकले। सुबह के समय अटाकामा के कुछ हिस्सों में धुंध छायी रहती है जिसे स्थानीय भाषा में कैमनचका कहते हैं। असल में अटाकामा के एक तरफ प्रशांत महासागर और दूसरी तरफ एंडीज पर्वतमाला है। अटाकामा की भौगोलिक परिस्थितियां इस तरह से हैं कि यहां आर्दता लगभग न के बराबर है और यही वजह है कि यहां साल में एक या दो मिलीमीटर बारिश ही होती है। प्रशांत महासागर की हम्बोल्ट धारा इस क्षेत्र में बादल बनने से रोकती है। कहा जाता है कि 1571 से लेकर 1970 यानि 400 वर्षों तक अटाकामा मरूस्थल के कई क्षेत्रों में बारिश की एक बूंद भी नहीं गिरी थी। कुछ शोधकर्ताओं के अनुसार यहां लगभग एक लाख 20 हजार वर्षों से यहां की कई नदियां सूखी पड़ी हैं। ऐसे में यह धुंध आश्चर्यजनक है लेकिन कुछ क्षेत्रों के लिये यह धुंध वरदान है क्योंकि यह उन क्षेत्रों को नमी प्रदान करती है और ऐसा ही एक क्षेत्र कोपियापो भी है।
   दमदार गाड़ी और अटाकामा मरूस्थल से अच्छी तरह से परिचित स्थानीय चालक के साथ हम सैर पर निकले। कोई सड़क नहीं और आपको पहाड़, घाटी और रेत के टीलों यानि ड्यून से होकर गुजरना है। रोमांच की यह पराकाष्ठा होती है और मैंने भी उस कुशल ड्राइवर के हाथों खुद को सौंपकर इस सफर का पूरा लुत्फ उठाया। आसमान अब साफ हो चुका था स्वच्छ नीला आकाश दिख रहा था। कहते हैं कि जितना स्वच्छ और नीला आकाश अटाकामा और उसके आसपास के क्षेत्रों में दिखता है वैसा दुनिया में शायद ही कहीं दूसरी जगह देखने को मिले। यही वजह है कि अटाकामा दुनिया भर के खगोलशास्त्रियों को भी अपनी तरफ आकर्षित करता है। अटाकामा मरूस्थल विश्व के उन कुछेक स्थानों में से एक है जहां वर्ष में 300 से भी अधिक दिन स्वच्छ आकाश दिखता है। यहां प्रकाश संबंधी प्रदूषण भी नहीं होता और ऊंचाई वाले स्थल होने के कारण इस रेगिस्तान में दुनिया का सबसे बड़ा जमीनी टेलीस्कोप अलमा स्थापित किया गया है जहां रेडियो टेलीस्कोप से ली गयी तस्वीरों की मदद से तारों के निर्माण का अध्ययन किया जाता है। इसके अलावा यहां कई अन्य बेधशालाएं यानि अब्ज़र्वटोरी भी हैं।
     रास्ते में हमें सौर ऊर्जा का एक बहुत बड़ा प्लांट भी दिखा जिसमें हजारों पैनल लगे हुए थे। बाद में पता चला कि चिली की 30 प्रतिशत बिजली का उत्पादन अटाकामा मरूस्थल में लगे इन सोलर पावर प्लांट से होता है। आखिर में पहाड़ी पर चढ़ती हमारी गाड़ी एक स्थान पर रूक गयी। पीछे से कुछ अन्य गाड़ियां आ रही थी जो इसी स्थान पर रूकी। आगे ड्यून यानि रेत के टीले थे जो वास्तव मनोरम दृश्य पैदा कर रहे थे। 
   इन्हीं में से एक टीले से रैली को गुजरना था। सभी को पहली बाइक का इंतजार था। इसके बाद लगभग 40 मिनट तक हमने बाइकर्स को इस भीषण मरूस्थल में अपनी कला का अद्भुत प्रदर्शन करते हुए देखा। 
     ब बात करते हैं अटाकामा मरूस्थल और मंगल ग्रह में समानता की। अटाकामा मरूस्थल के एंटोफगास्ता क्षेत्र की मिट्टी और मंगल ग्रह की मिट्टी बहुत समानता है। इस मरूस्थल के युंगे क्षेत्र को पृथ्वी में अपनी तरह की विशिष्ट जगह माना जाता है जिसमें नासा भविष्य में मंगल ग्रह के मिशन को लेकर पिछले डेढ़ दशक से भी अधिक समय से परीक्षण कर रहा है। अटाकामा में एक और स्थल मारिया इलेना है जिसे युंगे से अधिक शुष्क है और वह वहां की परिस्थितियां मंगल ग्रह के सबसे ज्यादा अनुकूल हैं। नासा का एक दल पिछले साल भी अटाकामा मरूस्थल में गया था। उन्होंने वहां परीक्षण किये जिनका उपयोग एक दिन किसी अन्य दुनिया में जीवन के लक्षणों की खोज में किया जा सकता है। मंगल ग्रह पर भेजे गये यान फीनिक्स मार्श लैंडर ने लाल ग्रह के उस स्थान पर पर्कोरेट्स पदार्थ पाया था जहां सबसे पहले पानी मिला था। पर्कोरेट्स अटाकामा मरूस्थल में भी पाया जाता है। हालीवुड फिल्मों में मंगल ग्रह से जुड़े दृश्यों के फिल्मांकन के लिये भी अटाकामा मरूस्थल का उपयोग किया जाता रहा है। इनमें टेलीविजन सीरीज ‘स्पेस ओडेसी : वॉयेज टू द प्लेनेट्स’ भी शामिल है।
     अटाकामा मरूस्थल के बारे में कहा जाता है कि यहां कोई जिद्दी पौधा या जीव ही जीवित रह सकता है। इस मरूस्थल के कई क्षेत्रों में तो वनस्पति और जीव मिलते ही नहीं हैं। मैं जिस क्षेत्र में गया था वहां कुछ जिद्दी घास देखने को मिली थी। एंडीज पर्वत की निचली घाटियों के हिस्से को भी अटाकामा मरूस्थल का हिस्सा माना जाता है जहां हमने गिलहरी और खरगोश के मिश्रण वाला जीव देखा था जिसे स्थानीय भाषा में विस्काचा कहते हैं लेकिन मरूस्थल के मुख्य भाग में मुझे कोई जीव नहीं दिखा। समुद्र के पास वाले हिस्से में छिपकली प्रजाति के कुछ जीव जरूर मिलते हैं लेकिन मैं उन क्षेत्रों की सैर नहीं कर पाया। वैसे यह मरूस्थल तांबे और अन्य खनिजों से समृद्ध है और यहां सोडियम नाइट्रेट बहुतायत में मिलता है।
     मरूस्थल के टेढ़े मेढ़े रास्तों से होकर पहाड़ियों पर चढ़ने से अधिक रोमांच उतरने में आया लेकिन ड्राइवर इतना कुशल था कि हमें खास झटके नहीं लगे। कभी अटाकामा जाओ तो अपने साथ पर्याप्त मात्रा में पानी लेकर जाना चाहिए। हमारे पास पानी की बोतलें थी। मैं कुछ सेब खरीदकर भी ले गया जिनका स्वाद अटाकामा ने चार गुना बढ़ा दिया था। उस दिन मरूस्थल में इन सेब के सहारे मेरा पूरा दिन अच्छी तरह से निकल गया था। सुबह भी फल तथा कार्न फ्लैक्स का नाश्ता कयिा था और दिन सेब के साथ कट गया था। शाम के लिये तो मेरे पास स्वदेशी भोजन था ही।
     यह थी दुनिया के अनोखे मरूस्थल अटाकामा की छोटी सी कहानी। आपको कैसी लगी जरूर बतायें। आपका धर्मेन्द्र पंत 
















                                                             क्रमश: 

शनिवार, 8 सितंबर 2018

मेरी चिली यात्रा (1) — स्योली से सेंटियागो


                         
     यालों और ख्वाबों में दुनिया की सैर करना तो मैंने तब सीख लिया था जब मैं महज पांच साल का था। पिताजी को भूगोल और खगोल विज्ञान का अच्छा ज्ञान था। रात को हमें तारों के बारे में बताते और दिन में तमाम देशों और उनकी राजधानियों के बारे में बताकर दुनिया की सैर कराते। तब मैं आठ साल का था। तीसरी कक्षा में पढ़ रहा था जब हमारी स्कूल में नये अध्यापक आये। एक दिन उन्होंने रौब से पूछा कि भारत की राजधानी का नाम बताओ। फिर वह उत्तर प्रदेश और अन्य राज्यों की राजधानियों के बारे में पूछने लगे और अब जवाब अकेले मैं दे रहा था। उन्होंने कुछ देशों की राजधानी पूछी जो मुझे याद थी। बाद में उन्होंने पूछा 'क्या तुम्हें सभी देशों की राजधानी पता हैं।' मैंने कहा 'हां' और मैं तोते की तरह रट लगाकर एशिया से यूरोप पहुंच गया। बाद में वह शिक्षक पिताजी से मिले और उन्होंने कहा ''मुझे जिन देशों के बारे में पता तक नहीं है धर्मेन्द्र को उनकी राजधानी भी पता है।'' कहने का लब्बोलुआब यह है कि चिली और उसकी राजधानी सेंटियागो से मेरा परिचय बचपन में हो गया था। कुछ इस तरह ''ये चिली है। अर्जेंटीना और प्रशांत महासागर के बीच में मिर्च के जैसा लंबा देश। तुम्हें पता है मिर्च को अंग्रेजी में चिली कहते हैं।'' पिताजी का समझाने का तरीका लाजवाब था। चिली ख्वाबों और खयालों में तो था लेकिन वह हकीकत में बदल जाएगा यह कभी नहीं सोचा था।
         वह चार अगस्त 2018 की शाम थी जब मेरे (भाषा) संपादक श्री निर्मल पाठक का फोन आया। उनका पहला सवाल था 'पासपोर्ट है क्या आपके पास' मेरी हां पर उन्होंने बताया कि रेस कवर करने जाना है दक्षिण अमेरिका में। वीजा और अन्य औपचारिकताएं पूरी करने के बाद 14 अगस्त को सुबह चार बजे मैं एमिरेट्स के विमान में सवार था। इससे पहले 12 बजते ही छोटे बेटे प्रदुल का 12वां जन्मदिन मनाया और फिर मैं एयरपोर्ट रवाना हो गया था। दुबई में मुंबई से आये हिन्दुस्तान टाइम्स के पत्रकार राजेश पनसारे से मुलाकात हुई। दिल्ली से 14 अगस्त की सुबह चार बजे चला था और चिली 14 अगस्त को ही रात दस बजकर 30 मिनट पर पहुंचा लेकिन इस बीच 27 घंटे बीत चुके थे। भारत में उस समय 15 अगस्त की सुबह के सात बज रहे थे। स्वतंत्रता दिवस की तैयारियां शुरू हो गयी थी। सेंटियागो एयरपोर्ट पर ही कुणाल जोशी से भी मुलाकात हुई जो हमारे प्रायोजक हीरो मोटोकॉर्प से जुड़े थे। सेंटियागो से लगभग 800 किमी दूर कोपियापो के पास स्थित प्रसिद्ध अटाकामा मरूस्थल में हमें बाइक रेस कवर करनी थी। अटाकामा रैली 2018 में भारत से हीरो मोटोस्पोर्ट्स रैली टीम भी भाग ले रही थी। बहरहाल अभी मैं आपको सेंटियागो ले चलूंगा जहां मैंने रात के बाद अगला पूरा दिन भी बिताया था।
          सेंटियागो में ही पता चल गया था कि इस देश में हमें भाषा की समस्या से जूझना होगा। वहां बमुश्किल ही किसी को अंग्रेजी रही थी जिसे अंतरराष्ट्रीय भाषा समझा जाता है। चिली जाकर मेरी यह धारणा टूट गयी थी। वहां केवल स्पेनिश बोली जाती है। इसके बाद तो हमें हर कदम पर भाषा संबंधी दिक्कतों से रूबरू होना पड़ा। मेरे लिये एक और परेशानी थी। मैं ठहरा शुद्ध शाकाहारी और चिली जैसे देश में शाकाहारी भोजन मिलना आसान नहीं था। मैं अपने साथियों कुशान सरकार और मोना पार्थसारथी का आभार व्यक्त करना चाहूंगा जिन्होंने मुझे पहले ही आगाह कर दिया था। मैं 'एमटीआर' के 'रेडी टू ईट' के कुछ पैकेट साथ ले गया था। बिस्किट और नमकीन भी पर्याप्त थी। चिली प्रवास के पांच दिनों में मैंने साथ की इस सामग्री के अलावा फल, सलाद, दूध, चौकोस और ड्राई फ्रूट का ही भक्षण किया।
         सेंटियागो में नाश्ते के बाद मैं, राजेश और कुणाल सुबह की सैर पर निकले। हम जिस दिन स्वतंत्रता दिवस मनाते हैं उस दिन कई कैथोलिक देशों में 'एजम्पशन डे' (मैरी के स्वर्ग में प्रवेश का दिन) मनाया जाता है और चिली भी इन देशों में शामिल है। हम बाहर निकले तो बाजार बंद थे। सड़क पर सलीके से दौड़ती गाड़ियों, ऊंची इमारतों को देखते और समझते हुए हम पैदल ही 'प्लाजा डि आर्म्स' पहुंचे जो सेंटियागो का मुख्य केंद्र है। वहां पर हमें कुछ देशी और विदेशी पर्यटक मिले। पैदल चलने का एक फायदा हुआ कि इस बीच सेंटियागो को करीब से देखने का मौका मिला। खूबसूरत इमारतें, चमचमाती सड़कें और तिस पर स्वच्छ नीला आकाश। सर्दियों में दिल्ली में ऐसी कल्पना करना भी मुश्किल है। सनद रहे कि सेंटियागो में यह सर्दियों का मौसम है। शहर से ही सामने बर्फ से पटा एंडीज भी दिख जाता। प्लाजा डि आर्म्स के आसपास चंद दुकानें खुली थी। एक तरफ रेहड़ी वाले थे तो पास में ही फल और सब्जियों की दुकानों पर भी हलचल हो रही थी।
       सेंटियागो अपनी चित्रकारी और कला के लिये भी मशहूर है। यहां स्थित कला संग्रहालय इसका सबूत हैं। वैसे मुझे सड़क पर खूबसूरत चित्र उकेरता कलाकार और उसके काम को निहारते कई लोगों से अहसास हो गया था कि यह देश कला प्रेमी है। प्लाजा डि आर्म्स के पास में स्थित एक गली में मुझे जिस एक चीज ने सबसे प्रभावित किया वह फोटो खींचने वाली मशीन थी। आपको फोटो खींचनी है या एनिमेशन फिल्म बनानी है, मशीन सेट कीजिए और फिर एक्शन के साथ कुछ दूरी पर खड़े हो जाइये। जब फोटो खिंच जाए तो मशीन में अपना ईमेल दीजिये और तुरंत ही तस्वीर आपके मेल बॉक्स में पहुंच जाएगी। इस बीच हमने 'मनी एक्सचेंज' की और  80 डालर के बदले में लगभग 52,000 चिलियन पेसो अपने जेब के हवाले कर दिये थे।
     सेंटियागो में बिताये इस एक दिन में शायद कुछ खट्टी यादें भी जुड़नी बाकी थी। हमें शाम को कोपियापो निकलना था, लेकिन अभी हमारे पास सेंटियागो की खाक छानने के लिये पर्याप्त मौका था। गूगल बाबा की मदद से पता चला कि पास में ही एक भारतीय रेस्टोरेंट है। पैदल ही वहां निकल पड़े लेकिन वहां जाकर देखा तो वह बंद था। अब हम गफलत में थे कि होटल जाएं कि सेंटियागो घूमें। हमने घूमने का फैसला किया और इसके लिये टैक्सी का सहारा लिया। अब वही समस्या ड्राइवर को अंग्रेजी समझ में नहीं रही थी और हमें स्पेनिश। दुर्भाग्य से धूर्त ड्राइवर से हमारा पाला पड़ा। उसका मीटर उसैन बोल्ट से भी तेज भाग रहा था। उसके साथ हमारी धड़कनें भी भाग रही थी। हमने उससे पूछा भीलेकिन वह भाषा के कारण अनजान बना रहा। बमुश्किल पांच किमी बाद हमने उसे रोक दिया और सिर्फ इतनी दूरी का बिल उसने 12000 ​चिलियन पेसो यानि लगभग 1200 रुपये का बना दिया। यही नहीं हमने उसे 20,000 चिलियन पेसो का नोट थमाया तो पहले उसने कहा कि चेंज नहीं है और बाद में वह मुकर गया कि हमने उसे पैसे दिये ही नहीं। उससे बहस भी नहीं की जा सकती थी। इस बीच उसने देखा कि कुणाल अपना मोबाइल सीट पर भूल गया है। हम जब तक मोबाइल लेने के लिये दरवाजा खोलते उसने सरपट गाड़ी दौड़ा दी। हड़बड़ी कहो या बेवकूफी हम उसका नंबर भी नोट नहीं कर पाये।
       पास के पुलिस थाने में गये तो वहां भी भाषा संबंधी दिक्कत। थाना प्रभारी से गूगल बाबा की अनुवाद सुविधा के जरिये बात होती रही, लेकिन पुलिसकर्मियों का टालू रवैया साफ दिख रहा था। दो घंटे तक उसने रिपोर्ट नहीं लिखी। हम लगातार उससे कहते रहे कि हमें आगे की उड़ान पकड़नी है। आखिर में हमने उसका नंबर लिया। उससे ही टैक्सी बुक करवायी और होटल निकल पड़े। इस बार केवल 2700 चिलियन पेसो में होटल पहुंच गये थे और इस तरह से हमारी आधी से अधिक चिलियन करेंसी सेंटियागो में ही सुट हो गयी थी। आपका धर्मेन्द्र पंत



















                                                                   क्रमश:

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