कहते हैं कि जब दो भाषाएं आपसी संपर्क में आती हैं तो उससे दोनों समृद्ध होती हैं लेकिन इसका कई बार नकारात्मक असर भी पड़ता है क्योंकि जो भाषा प्रभावी होती है वह हावी हो जाती है और ऐसे में दूसरी भाषा के शब्द मरने लग जाते हैं। अंग्रेजी के प्रभाव और विशेषकर हिन्दी के कुछ समाचार पत्रों में जिस तरह से धड़ल्ले से अंग्रेजी के शब्दों का उपयोग किया जा रहा है उससे हिन्दी के कई प्रचलित शब्द भी नेपथ्य में जा रहे हैं। यही हाल स्थानीय भाषाओं का भी है। पिछले दिनों मैंने अपनी फेसबुक वॉल पर एक पोस्ट लिखी थी कि 'आप' गढ़वाली शब्द नहीं और गढ़वाल में सम्मान के लिये 'तुम' का उपयोग होता है। इस पर सार्थक चर्चा हुई और कुछ उपयोगी जानकारी भी मिली। घसेरी में इस बार हम बात 'आप' और 'तुम' को लेकर ही करते हैं। मुझे ऐसा लगता है कि गढ़वाली में बात करते समय कोई भी आप का उपयोग इसलिए करता है क्योंकि उसे लगता है कि वह सामने वाले को पर्याप्त सम्मान दे रहा है। वैसे इसके लिये 'तुम' पर्याप्त है लेकिन जब जुबान पर हिन्दी चढ़ी होती है तो गढ़वाली बोलते समय भी तुम बोलने में हिचकिचाहट होती है। यही कारण है कि आप अब गढ़वाली में घुसपैठ कर चुका है। गढ़वाली में बात करते समय साफ लग जाता है कि 'आप' इसमें घुसपैठिया है। ठेठ गढ़वाली में 'आप' या 'आपका' के लिये अब भी कोई स्थान नहीं है। अपने से बड़ों के लिये सम्मानजनक शब्द के तौर पर आज भी 'तुम' और 'तुमारा, तुमरा, तुमारू, तुमरू' का ही उपयोग होता है। जैसे 'तुम कख जाणा छयां', 'तुमन क्या खाण', 'तुमरा हथ में क्या च' आदि आदि। आप औपचारिक लगता है तुम नहीं। आप के सामने अपना दुख बयां नहीं किया जा सकता है लेकिन तुम के सामने दिल खोलकर बात की जा सकती है। गढ़वाली की युवा कवयित्री नूतन तन्नू पंत ने सही कहा है कि गढ़वाली में आप बोलने पर अपना भी पराया नजर आता है। तुम में अपनापन है आप में नहीं। उन्होंने गढ़वाली में सुंदर शब्दों में 'आप' और 'तुम' के बीच भावनात्मक भेद करने का अच्छा प्रयास किया है। नूतन लिखती हैं, ''जख तक "अाप" अर "तुम" कु सवाल च त आप थैं बड़ु आदर सूचक शब्द समझिदी बजाए तुम का पर हमरि गढ़वळि मा आप ब्वलदे ही अपणु बि पर्या नजर आन्द,ऑखु लगद पर अगर हम "तुम " से कैथे सम्बोधित करदो त ये शब्द मा इतगा अपण्यास च कि कखि दूरु कु बि अपणू सि लगद। ये मा क्वी शक नीच कि हमरि गढ़वळि अपन्वत्व अर अपण्यास कि प्रति मूर्ति च !!''
कहां से पैदा हुए 'आप' और 'तुम'
सबसे पहले हिन्दी में अपनी अहम जगह बनाने के बाद अब स्थानीय लोकभाषाओं में घुसपैठ करने वाले 'आप' और भारतीयों के अपनत्व से जुड़े रहे 'तुम' शब्दों के मूल के बारे में जानने की कोशिश करते हैं। आपको जानकर आश्चर्य होगा कि 'आप' असल में हिन्दी का शब्द नहीं है। वेदों में आप शब्द है लेकिन किसी के सम्मान के लिये नहीं बल्कि पानी या जल के लिये उसका उपयोग किया गया है। वेदों में जल के लिये 'आपः' या 'आपो देवता' कहा गया है। ‘ऋग्वेद’ के पूरे चार सूक्त ‘आपो देवात’ के लिए समर्पित हैं। तो सवाल उठता है कि हिन्दी में 'आप' शब्द कहां से आया? नेशनल बुक ट्रस्ट के हिन्दी विभाग के संपादक श्री पंकज चतुर्वेदी के अनुसार ''आप पर्शियन से आया है उर्दू के रास्ते।'' मतलब उन मूल बोलियों में आप नहीं था जिनसे हिन्दी विकसित हुई।
हिन्दी, अंग्रेजी और गढ़वाली साहित्य पर समान रूप से अधिकार रखने वाले मशहूर लेखक श्री भीष्म कुकरेती का भी कहना है कि आप का गढ़वाली में उपयोग नहीं होता है। श्री कुकरेती के शब्दों में, ''आप माने ओप लगण याने बरगद के नीचे न पनपना। संस्कृत में तुम ही है। आप अरबी है या उर्दू, अधिकतर प्रोफेट को आप से पुकारते हैं की आपने ....। आप मुगलों के कारण नही बल्कि स्वतंत्रता के बाद सभ्यता का प्रतीक बन गया। गुजरात में या महराष्ट्र में तुम ही प्रयोग होता है वे भी अब आप पर आ गये हैं।'' स्वतंत्र पत्रकार और लेखक श्री विनायक कुलाश्री शिवार्पणं ने सही कहा कि भाषा-बोली सतत विकसित होती रहने वाली महानद है। उन्होंने कहा, ''हिन्दी स्वयं उर्दू के आप शब्द से नफासत और सभ्यता को पोषित कर रही है। खड़ी बोली क्षेत्रों में तू और तुम का जो पोस्टमार्टम किया जाता है वह भाषाविदों की परिकल्पनाओं से भी पृथक है। तथापि मनुज समुदाय में संवेदनाओं और मंतव्यों को शाब्दिक रुप में विनिमय करने के लिये किसी भी भाषा का समय-समय पर परिष्कृत और सुसंस्कृत होना आवश्यक हैं।''
अब 'तुम' की बात करते हैं। भारतीय लोकभाषाओं का अध्ययन करने पर पता चलता है कि यहां हिन्दी की जितनी भी उपबोलियां या भाषाएं हैं उनमें एक समय में आप शब्द का अस्तित्व था ही नहीं। गढ़वाली और कुमाउंनी ही नहीं मराठी, बृज, राजस्थानी, हरियाणवी, गुजराती, मगही, पंजाबी आदि किसी भी भाषा को सुन लीजिए वहां आपको 'आप' नहीं मिलेगा। वहां तू, तुम, तेने से काम चलता है। यहां तक कि संस्कृत भाषा, जो विज्ञान सम्मत है, उसमें भी आप नहीं है। संस्कृत में अधिकतर 'त्वम' का उपयोग होता है जिससे कि हमारी लोकभाषाओं का 'तुम' बना है। संस्कृत के विद्वान श्री सच्चिदानंद सेमवाल के शब्दों में, ''तुम शब्द संस्कृत के त्वम् शब्द का तद्भव है। मध्यम पुरुष के लिए शास्त्रों में प्रायः इसी शब्द का प्रयोग है देवी देवता या भगवान् के लिए भी। लेकिन विशेष सम्मान के लिए भवान् शब्द का प्रयोग भी होता है और उसके साथ प्रथम पुरुष की क्रिया लगती है। जैसे भवान् पठति आदि। आप शब्द संस्कृत में है ही नहीं तुम के लिए।'' शिक्षा के क्षेत्र से जुड़े श्री महेश कुड़ियाल का मानना है कि गढ़वाली संस्कृत के करीब है। उनके शब्दों में, ''गढ़वाली संस्कृत के निकट है, जहां परमात्मा के लिये भी, त्वमेव, माता च पिता त्वमेव .. त्वमादि देव पुरुष: पुराण, त्वम् ही प्रयुक्त होता है, त्वं ब्रम्हा वरुणेन्द्र रुद्र मरुत: सर्वत्र त्वं ही प्रयुक्त है। आप का आत्मपरत्व या आप्प दीपो भव आदि पाली से हिन्दी में स्वयं के लिये प्रयुक्त होते होते, दूसरों पर भी प्रयुक्त हो गया .. जो सम्मान सूचक बन गया है .. तुम के साथ क्रिया में निवेदन जैसे तुम चलणां या तुम करणां, तुम करला यह गढ़वाली की विशेषता है।''
औपचारिक संबंधों को थामे रखने के लिए 'आप'
गढ़वाली साहित्य में अब भी 'तुम' का ही उपयोग होता है। वैसे गढ़वाली की कुछ पत्रिकाओं में आपसी बातचीत में कभी कभार आप का उपयोग कर दिया जाता है जो खटकता भी है। साहित्य में हालांकि 'तुम' का बोलबाला है। गढ़वाली के प्रसिद्ध साहित्यकार श्री दीनदयाल सुंद्रियाल 'शैलज' भी मानते हैं कि आप औपचारिक है। श्री सुंद्रियाल के शब्दों में, ''मुझे तो बचपन मे, अपने हमउम्र दोस्तों, प्रियजनों और माँ, दीदी आदि को भी तू कहना ही अच्छा लगता था।'' भाषा कोई भी हो मां के लिये अधिकतर एकवचन यानि तू या तुम का उपयोग किया जाता है। वरिष्ठ पत्रकार और लेखक श्री माधव चतुर्वेदी ने इसे अच्छी तरह से समझाया है। उनके शब्दों में, ‘‘चूंकि उत्तर भारत के परिवारों में पति अपनी पत्नी से बातचीत में एकवचन का प्रयोग करता है और पत्नी अपने पति के लिये बहुवचन बरतती है। इस कारण बच्चे भी अपने पिता के लिये बहुवचन का प्रयोग करते हैं और मां के लिये एकवचन का प्रयोग। यह विशुद्ध तौर पर घर के बड़ों से मिला भाषा का संस्कार है। ’’
इसी तरह से योगी आशीष ड़ोभाल ने लिखा, ''तू वह महान शब्द है जिसको पचाना हर किसी के बस की बात नही। तू शब्द का प्रयोग मुख्यता बिना संकोच और धारा प्रवाहिता के साथ एक जन्मदाता माँ और दूसरा जगतमाँ या भगवान के लिए किया जाता है और इन्होंने कभी तू को बुरा नही माना बाकि अन्य की तो नाक लग जाती है।'' लेखक, पत्रकार और शिक्षाविद श्री संजय अथर्व ने सही कहा है कि औपचारिक संबंधों को बनाये रखने के लिये आप है, आपसी मित्रता और गहरे संबंधों के लिये। बकौल श्री अथर्व, ''गढ़वाल, राजस्थान, अवध या कि हमारी मगध की मगही सभी में आप का कोई अस्तित्व नही है। तू ही तू छाया है। इसलिये आप 'आप' के लिए चिंतित नहीं हों। औपचारिक संबंधों को थामे रखने के लिए आप है।''
इसी तरह से योगी आशीष ड़ोभाल ने लिखा, ''तू वह महान शब्द है जिसको पचाना हर किसी के बस की बात नही। तू शब्द का प्रयोग मुख्यता बिना संकोच और धारा प्रवाहिता के साथ एक जन्मदाता माँ और दूसरा जगतमाँ या भगवान के लिए किया जाता है और इन्होंने कभी तू को बुरा नही माना बाकि अन्य की तो नाक लग जाती है।'' लेखक, पत्रकार और शिक्षाविद श्री संजय अथर्व ने सही कहा है कि औपचारिक संबंधों को बनाये रखने के लिये आप है, आपसी मित्रता और गहरे संबंधों के लिये। बकौल श्री अथर्व, ''गढ़वाल, राजस्थान, अवध या कि हमारी मगध की मगही सभी में आप का कोई अस्तित्व नही है। तू ही तू छाया है। इसलिये आप 'आप' के लिए चिंतित नहीं हों। औपचारिक संबंधों को थामे रखने के लिए आप है।''
अब गढ़वाली, कुमांउनी या अपनी लोकभाषा बोलते समय 'आप' का उपयोग करना है या 'तुम' का, यह फैसला आपको खुद करना है। जहां तक मेरा सवाल है तो अपनी गढ़वाली में मुझे 'तुम' ही पसंद है लेकिन हिन्दी में भारी भरकम शब्द 'आप' के साथ ही जीना पड़ेगा। हिन्दी में लिख रहा हूं इसलिए आप का उपयोग कर रहा हूं .......आपका धर्मेन्द्र पंत।
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