बुबाजी और उनकी गोद में मेरा बड़ा बेटा प्रांजल |
सुबह लेकर उठते ही बड़े बेटे प्रांजल ने हमेशा की तरह पांव छुए लेकिन आज उनके मुंह से 'हैप्पी फादर्स डे' सुनने को भी मिला। मैंने मुस्करा कर उसे गले लगा दिया। मेरी निजी राय है कि फादर्स डे और मदर्स डे ये अंग्रेजों के चोंचले हैं और भारतीय संस्कृति में इसके लिये कोई जगह नहीं। मां और पिताजी के लिये एक दिन नियत नहीं किया जा सकता है। हमारे यहां तो हर दिन मां और पिताजी को नमन किया जाता है। अचानक ही मुझे सवाल सूझा। मैंने बेटे से पूछा, 'बेटा गढ़वाली में पापा के लिये क्या कहते हैं?'' प्रांजल ने थोड़ी देर अपना दिमाग दौड़ाया और फिर सही जवाब दिया। 'बोजी'। मैं फिर से मुस्कराया। मेरी दादी ने हम सभी भाई बहनों को सिखा रखा था कि बुबाजी बोलना है और जब हमारे साथी पिताजी बोलने लग गये थे तब हम बुबाजी ही बोलते थे। जल्दी में बोलने में बुबाजी 'बोजी' बन जाते थे। प्रांजल ने अपने पहले चार साल दादाजी के साथ बिताये थे और बचपन में अक्सर मेरे मुंह से बुबाजी के लिये संबोधन में निकला यह शब्द उसे याद रहा।
गढ़वाली में पिताजी के लिये कई संबोधन हैं जैसे बुबा, बुबाजी, बबा, बाबा, बबाजि। मुझे गर्व है कि मैंने अपनी पूरी उम्र बुबाजी या बोजी का ही उपयोग किया। मां के लिये भी कई बार 'ब्वे' बोलता था। कुछ बात करने के लिये 'हे ब्वे' बोलने का सुखद अहसास 'मम्मी' कहने में आ पाएगा, मेरे लिये अच्छी तरह से बयां करना मुश्किल है। मां और मांजि में भी मुझे अपनत्व लगता है। इसका यह भी कारण हो सकता है क्योंकि मैंने हमेशा मां, मांजि या ब्वे का ही उपयोग किया। ठीक उसी तरह जैसे मुझे पिताजी में नहीं बुबाजी या बोजी में अपनापन लगता है।
मुझे गढ़वाली कवि, गीतकार श्री दीनदयाल सुंद्रियाल 'शैलज' के एक गीत की पंक्तियां याद आ रही हैं, ''ब्वे, बाब क्वी नि बुदु अब त मम्मी पापा जी, अंग्रेजी कि आग लगिं च तुम भि आग तापा जी।'' मदर्स डे और फादर्स डे इसी अंग्रेजी और अंग्रेजीयत की देन है। बहरहाल बात उत्तराखंड की करते हैं। भारतीय भाषा सर्वेक्षण के अनुसार उत्तराखंड में कुल 13 लोकभाषाएं बोली जाती हैं। इनमें से कुछ भाषाओं में मां और पिताजी के लिये संबोधन यहां पर दिये गये हैं। उम्मीद है कि आप अपनी बोली के अनुसार भविष्य में इनका उपयोग करेंगे।
उत्तराखंड की विभिन्न लोक भाषाओं में मां और पिताजी के लिये संबोधन के शब्द
मां
गढ़वाली : ब्वे, बई, बोई, मांजि, मां, मयेड़, मातण
कुमांउनी : इज, जिया, अम्मा
जौनसारी : ईजी
जाड़ : आॅ
बंगाणी : इजै
रंवाल्टी : बुई, ईजा
जौनपुरी : बोई
थारू : अय्या
राजी : ईजलुअ, इहा
मार्च्छा : आमा
जोहारी, रंग ल्वू : ईजा, अम्मा
पिता
गढ़वाली : बुबा, बोजी, बब, बबा, बाबा, बाबजि, पिताजि
कुमांउनी : बाज्यू, बाब, बब, बौज्यू, बाबू
जौनसारी : बाबा
जाड़ : अबा, आवा
बंगाणी : बाबा
रंवाल्टी : बा, बूबा, बाबा
जौनपुरी : बबा
थारू : दउवा, बाबा
राजी : दैआ, बैबा
मार्च्छा : अप्पा
इसके अलावा हो सकता है कि मां पिताजी के लिये कुछ स्थानों पर अन्य तरह के भी संबोधन हों। आप आप ब्लॉग में इसे समृद्ध कर सकते हैं। आपका धर्मेन्द्र पंत
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aksar gaon ma bhi aajkal mami, papa ka jyada hi chalan hwe gyai jaima kwi apanpan ni lagdu 'bwe' ya maaji 'babaji itiga sundar aur theth shabd chan jaima apni pahari bhasha ki khushbu aand kul milakar ju hamari pariwarik rishta chin oma apni bhasha ka shabd boli jao ta bahut hi acha ralu aur hamari bhasha bhi bachi rali. dhanyabad
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