गुरुवार, 14 जून 2018

क्या शिलाजीत का जनक है सुरै?

            ह सुनकर थोड़ा अजीब लग सकता है कि हमारे गांवों में घर के आसपास, खेतों के किनारों और चट्टानों के करीब उगने वाला सुरै से शिलाजीत की उत्पत्ति हो सकती है जिसे कई रोगों की उत्तम दवा माना जाता है। लेकिन कुछ वनस्पति विज्ञानियों ने शिलाजीत की उत्पत्ति पर अध्ययन किया और वे इस निष्कर्ष पर पहुंचे कि सुरै इस महत्वपूर्ण औषधि का जनक हो सकता है। आईये आज घसेरी में जानते हैं इस सुरै के बारे में। 
           सुरै पहाड़ों में उगने वाला एक शंक्वाकार पौधा है जिस पर बहुतायत में कांटे होते हैं। यह नागफनी प्रजाति का पौधा है जिसे सुरैं, सुरई, सरू, सुरू, श्योण, सेहुंड नाम से भी जाना जाता है। नेपाली में इसे काने सिउंडी कहते हैं। इसकी शाखाएं पतली होती है। इसकी लकड़ी पर घुन नहीं लगती है। सुरै का वानस्पतिक नाम यूफोर्बिया रॉयलियाना है। असल में उत्तराखंड में इसकी दो प्रजातियां 'यूफोर्बिया रायलियाना' और 'नेरिफोलिया' पायी जाती हैं। सुरै के पौधे की लंबाई पांच से छह फीट तक होती है। इसके तने कांटेदार और शाखाएं पंचकोणीय होती हैं। शीत ऋतु में इसकी पत्तियां झड़ जाती है तथा बसंत के मौसम में इसमें हरे व पीले फूल लगते हैं। मुख्य रूप से इसका उपयोग जलावन, बाड़ बनाने, भवन सामग्री, डिब्बे बनाने तथा ललित कला आदि में किया जाता है, लेकिन आयुर्वेद और यूनानी चिकित्सा पद्वति में सुरै का काफी महत्व है। 
             कुछ वनस्पति विज्ञानियों का मानना है कि शिलाजीत के निर्माण में सुरै और इसकी प्रजाति के पौधों की भूमिका अहम होती है। कई अन्य तरह की औषधियों के निर्माण में सुरै का उपयोग किया जाता है जो पाचन, पेट और सांस संबंधी रोगों में प्रयोग की जाती है। त्वचा संबंधी रोगों के लिये इससे विशेष औषधि बनायी जाती है। इसकी जड़ों से सुगंधित तेल भी तैयार किया जाता है जो घावों और फोड़े फुंसियों पर लगाया जाता है। कान दर्द और दांत दर्द में इससे निकलने वाले सफेद दूध का उपयोग किया जाता है। बवासीर और भगंदर के लिये भी इसे उपयोगी माना जाता है। मस्से और तिल से निजात पाने के लिये भी इसका उपयोग किया जाता रहा है। सोराइसिस के रोग में भी इसका प्रयोग किया जाता है। लेकिन इन सब औषधियों का उपयोग किसी चिकित्सक की देखरेख में ही किया जाना चाहिए।


सुरै के बारे में यह वीडियो देखें और चैनल भी सब्सक्राइब करें। 




             ब बात करते हैं सुरै के शिलाजीत से संबंध के बारे में। वनस्पति विज्ञानी एच सी पांडे ने 1973 में अपने एक आलेख में जिक्र किया था कि सुरै में काफी दूध या लेटेक्स होता है और इसलिए इसकी शिलाजीत की उत्पत्ति में अहम भूमिका हो सकती है क्योंकि यह पौधा हिमालय की उन चट्टानों पर काफी पाया जाता है जहां शिलाजीत मिलती है। उनसे पहले दो अन्य वनस्पति विज्ञानियों राजनाथ और प्रसाद ने 1942 में इंडियन साइंस कांग्रेस में शिलाजीत के निर्माण के संबंध में सुरै या थुअर का जिक्र किया था। जिन चट्टानों पर शिलाजीत पायी जाती है उनका अध्ययन करने पर भी पता चला कि यह चट्टानों से पैदा नहीं होती बल्कि किसी बाहरी स्रोत से यह इन चट्टानों पर जमती है। यह माना गया कि लेटेक्स या गोंद वाले पौधों से इसकी उत्पत्ति होती है। एस घोषाल, जेपी रेड्डी और वीके लाल नाम के तीन वनस्पति विज्ञानियों ने 1976 में प्रकाशित अपने एक आलेख में बताया था कि शिलाजीत में बड़ी मात्रा में जो आर्गेनिक तत्व पाये जाते हैं वह सुरै के लेटेक्स में भी मिलते हैं। हिमालय में जिन चट्टानों पर शिलाजीत पायी जाती है उसके आसपास की सुरै के लेटेक्स यानि दूध को गर्मियों में एकत्रित करके वह इस नतीजे पर पहुंचे थे। इसके बाद कई विज्ञानियों के निर्माण में सुरै की भूमिका को अहम बताया था। उनका मानना था कि लंबे समय तक चट्टान पर एक जगह पर एकत्रित होने से यही दूध बाद में शिलाजीत में बदल जाता है।
          तो देखा आपने जिस सुरै को आप बड़ी हेय दृष्टि से देखते हैं वह असल में बेहद उपयोगी है लेकिन सावधान। इससे निकलने वाले दूध को भूल से भी पीने की गलती नहीं करें। यह दूध आंखों के लिये बेहद खतरनाक होता है। इससे आंख में काफी जलन होती है और यहां तक कि इससे आंख की रोशनी भी जा सकती है।
          प्राचीन आयुर्वेदिक ग्रंथों के अनुसार निम्न रोगों में सुरै और शिलाजीत का उपयोग किया जाता है। इनको देखकर आप समझ सकते हैं कि दोनों में काफी समानता है। 

सुरै का प्रयोग


तीव्रवीरेचका, मूत्रजनक, संदिग्धवात, श्वास, कुष्ठ, पांडु, अमावात, वातरिक्त, कास, अग्निमन्ध्या, उदर रोग, गुल्म, यकृत वृद्धि, उपदंश, चर्मरोग 

शिलाजीत का प्रयोग 


पांडु रोग, कुष्ठ, अमावात, संधिवात, वातरक्त, कास, प्रमेद, सरकारा, अशमारी, मूत्रकृच्छा, क्षय, अर्सा, अप्समारा, उन्माद, सोठा, उदर कृमि, सुला, गुल्मा, संधि सोठा, सलिपादा, गंदमाला, कमला, फिरंगा, श्वेतप्रदर, शुक्रदौर्बल्य, विषमज्वर, शोशा, मेदोरोजा, गड़दोष, दौर्बल्य, वेदन हारा।

        तो कैसी लगी आपको सुरै के बारे में यह जानकारी। जरूर बतायें। आप इस पर वीडियो भी देख सकते हैं जो पोस्ट के साथ दिया गया है। आप सभी से घसेरी चैनल और ब्लॉग सब्सक्राइब करने का भी अनुरोध है। आपका धर्मेन्द्र पंत 

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