शुक्रवार, 14 अप्रैल 2017

शैव पीठ एकेश्वर में 'खड़रात्रि' से पड़ी थी कौथीग की नींव

जय एकेश्वर महादेव : स्थानीय लोगों की प्रयासों से मंदिर को नया स्वरूप मिला है। फोटो सौजन्य ... रविकांत 

     बैसाख, यानि भारतीय काल गणना के अनुसार वर्ष का दूसरा महीना। भारतीय काल गणना के सभी 12 महीनों में बैसाख को सबसे पवित्र माना जाता है। एक पौराणिक कथा के अनुसार नारद ने राजा अम्बरीष से कहा कि ब्रह्माजी ने बैसाख मास को सभी महीनों में उत्तम बताया है। कहते हैं कि यह भगवान विष्णु का भी प्रिय मास है। इसका संबंध देव अवतारों और धार्मिक परंपराओं से है। बैसाख में ही विभिन्न देव मंदिरों के पट खुलते हैं और विभिन्न स्थलों पर विशेष महोत्सवों का आयोजन किया जाता है। उत्तराखंड में बैसाख के महीने ऐसे कई महोत्सवों या मेलों का आयोजन किया जाता है जिन्हें स्थानीय भाषा में थौळ या कौथीग कहा जाता है। गढ़वाल मंडल में बैसाख के महीने में कई स्थानों पर अलग अलग तिथियों को इस तरह के कौथीग का आयोजन होता है। ऐसा ही एक मेला है 'इगासर कौथीग' या एकेश्वर का मेला। आज 'घसेरी' आपका परिचय एकेश्वर से कराएगी। आज इगासर का कौथीग है तो इस पावन दिन पर मेरे साथ कौथीग का आनंद लीजिए। 
      इगासर कौथीग हर साल दो गते बैसाख को होता है। इसका अपना धार्मिक महत्व है। एकेश्वर में शैव पीठ है और यहां पर भगवान शिव का मंदिर है। माना जाता है कि शैवपीठ के कारण ही इस जगह का नाम एकेश्वर पड़ा। केदार क्षेत्र के अंतर्गत पांच शैव पीठ आते हैं और इनमें एकेश्वर भी शामिल है। अन्य शैव पीठ ताड़केश्वर महादेव, बिन्देश्वर महादेव, क्यूंकालेश्वर महादेव और किल्किलेश्वर महादेव हैं। एकेश्वर के शिव मंदिर में वर्षों पहले से पति पत्नी संतान की प्राप्ति के लिये 'खड़रात्रि' करते रहे हैं। उत्तराखंड के कई मंदिरों में खड़रात्रि की जाती है। खड़रात्रि में संतान प्राप्ति के लिये महिलाएं अपने पति के साथ रात भर हाथ में दीपक जलाकर खड़ी रहती हैं और इस बीच भगवान शिव की स्तुति करती हैं। एकेश्वर महादेव में हर साल बैसाख दो गते को खड़रात्रि होती है। इस दिन यहां श्रद्धालु पूजा अर्चना के लिये आते हैं। धीरे धीरे इसने मेले का रूप ले लिया है और फिर बैशाख दो गते को एकेश्वर में मेला लगने लगा। एकेश्वर को गढ़वाली भाषा में इगासर कहते हैं और इसलिए इस मेले को 'इगासर कु कौथीग' कहा जाता है। चौंदकोट ही नहीं पौड़ी गढ़वाल में इस मेले से कौथीग की शुरूआत होती है। कौथीग के दिन लोग खेतों में उगाये गये पहले अनाज को भी भगवान शिव का अर्पण करते हैं। शिवरात्रि के दिन भी यहां शिवलिंग में दूध, गंगाजल और बेलपत्री चढ़ाने के लिये भक्तों की भीड़ लगी रहती है।भक्तजन समय समय पर एकेश्वर महादेव में भंडारे का आयोजन भी करते हैं। 

एकेश्वर महादेव मंदिर के पास स्थि​त वैष्णवी दरबार में लेखक परिवार के साथ। 
     एकेश्वर का आज से नहीं बल्कि हजारों वर्षों से धार्मिक महत्व रहा है। कुछ पौराणिक संदर्भों में कहा गया है कि यहां पर पांडवों ने भगवान शिव की तपस्या की थी। जहां तक मंदिर का सवाल है तो कहा जाता है कि उसकी स्थापना संवत 810 के आसपास आदि गुरू शंकराचार्य ने की थी। यहां कई प्राचीन मूर्तियां हैं जिससे लगता है कि इस मंदिर की स्थापना सैकड़ों वर्ष पहले की गयी थी। मंदिर का कई बार पुननिर्माण हुआ। पिछले कुछ वर्षों में स्थानीय लोगों की मदद से इसे नया और भव्य रूप दिया गया इसलिए अब यह वर्तमान समय के मंदिरों जैसा ही लगता है। एकेश्वर के मुख्य मंदिर के अलावा यहां पर मां वैष्णवी दरबार, वैष्णवी देवी गुफा और भैरव मंदिर भी है। कहा जाता है कि भैरव मंदिर के अंदर से लेकर बद्रीनाथ मंदिर तक सुरंग थी जो कि वर्षों पहले बंद कर दी गयी।

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     एकेश्वर महादेव कई वर्ष पहले मोटर मार्ग से जुड़ गया था। कोटद्वार या पौड़ी के रास्ते यहां पहुंचा जा सकता है। सतपुली से एकेश्वर के लिये बस या टैक्सी नियमित रूप से जाती रहती हैं। पौड़ी के रास्ते सतपुली होते हुए या फिर ज्वाल्पा से जणदादेवी होते हुए पहुंचा जा सकता है। इसके अलावा बौंसाल और ज्वाल्पा के बीच से भी दो नये मोटरमार्ग बन गये हैं जो एकेश्वर तक जाते हैं। एकेश्वर में पहुंचने पर सड़क से ही मंदिर का सीढ़ीनुमा रास्ता है। मंदिर के पास ही बांज और चीड़ का जंगल तथा शीतल जल का झरना है। 
     कौथीग मंदिर के ऊपर स्थित बाजार में लगता है। एक जमाने में यहां मंदिर तक पूरी सड़क पर दुकानें सजी होती थी। मेरा गांव स्योली है जो एकेश्वर से लगभग आठ दस किमी की दूरी पर स्थित है, लेकिन मैं केवल एक बार इगासर कौथीग गया था। उस समय वहां बहुत भीड़ होती थी और लोग बाजार के ऊपर स्थित जंगल में भी बैठे रहते थे। तरह तरह की दुकानें सजी रहती थी। सच कहूं तो उस समय कुछ उपद्रवी तत्वों से डर भी लगता था। घर वाले इगासर कौथीग जाने के लिये इसलिए मना करते थे क्योंकि वहां लगभग हर साल किन्हीं भी दो गुटों या गांवों के बीच झगड़ा हो जाता था। अब मुझे बताया गया है कि ऐसा नहीं है। कौथीग में ज्यादा भीड़ नहीं होती और दुकानें भी कम सजती हैं। एकेश्वर महादेव के दर्शन करने के लिये आसपास के गांवों के लोग जरूर जाते हैं। तो फिर देर किस बात की। आप भी जाइए न इगासर कौथीग। मुझे पूरा विश्वास है कि एकेश्वर महादेव के दर्शन करके आपको अच्छा लगेगा। तो बटोर लाइये एकेश्वर से कुछ यादें और मेरे साथ इस ब्लॉग पर शेयर करिये। मुझे इंतजार रहेगा। बोलिये जय एकेश्वर महादेव। आपका अपना धर्मेन्द्र पंत


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