चार्ट एक ... पौड़ी गढ़वाल से पलायन की कहानी बयां कर रहे हैं आंकड़े |
पिछले दिनों में मन में यह सवाल उठा था कि आखिर उत्तराखंड से सबसे अधिक पलायन किस जिले से हो रहा है। इसका जवाब ढूंढने के लिये 2001 और 2011 की जनगणना के आंकड़ों का सहारा लिया तो कुछ चौंकाने वाले तथ्य सामने आये। पता चला कि जहां भारत जनसंख्या विस्फोट की तरफ बढ़ रहा है वहीं उत्तराखंड के दो जिलों पौड़ी गढ़वाल और अल्मोड़ा की जनसंख्या इन दस वर्षों में घटी है। इन आंकड़ों पर खुश होने की जरूरत नहीं है। असल में यह पलायन के दुष्परिणाम हैं। इससे यह भी साबित होता है कि उत्तराखंड राज्य बनने के बाद पलायन तेजी से हुआ है और इसमें पौड़ी गढ़वाल सबसे आगे हैं।
जनगणना के आंकड़ों पर गौर करें तो पौड़ी जिले की जनसंख्या 2001 में 697,078 थी जो 2011 में घटकर 687,271 रह गयी। यानि 1.41 प्रतिशत कम हो गयी। (देखिये चार्ट एक) आंकड़े भले ही कुछ साल पुराने हैं लेकिन यह एक कड़वा सच बयां करते है। कमोबेश आज की स्थिति और खराब होगी। पलायन नहीं रूकेगा तो आगे स्थिति और भयावह हो सकती है। गढवाल में पलायन की शुरूआत नब्बे के दशक में हो गयी थी। यही वजह थी कि 1991 से 2001 के बीच भी पौड़ी जिले में केवल 3.87 प्रतिशत वृद्धि ही दर्ज की गयी जबकि बाकी जिलों में यह इससे अधिक थी। वर्ष 2001 से 2011 के बीच गढ़वाल मंडल के बाकी जिलों जैसे चमोली, उत्तरकाशी, रूद्रप्रयाण, टेहरी गढ़वाल आदि में जनसंख्या में बढ़ोतरी दर्ज की गयी। टेहरी गढ़वाल में हालांकि 2.35 प्रतिशत, चमोली में 5.74 प्रतिशत, रूद्रप्रयाग में 6.53 प्रतिशत और उत्तरकाशी में 11.89 प्रतिशत वृद्धि हुई लेकिन इन दस वर्षों में देहरादून की जनसंख्या 32.33 और हरिद्वार की जनसंख्या में 30.63 प्रतिशत बढ़ी है। इन आंकड़ों की कहानी कुछ अलग तरह से श्री नरेंद्र सिंह नेगी जी ने अपने एक गीत 'सब्बि धाणि देहरादूण हुणी खाणी देहरादूण' में भी बयां की है।
चार्ट दो ... उत्तराखंड की जनसंख्या तो बढ़ी है लेकिन पौड़ी गढ़वाल की घटी है। |
अगर कुमांऊ मंडल की बात करें तो अल्मोड़ा जिले की स्थिति दयनीय है। अल्मोड़ा की जनसंख्या 2001 में 630,567 थी जो 2011 में घटकर 622,506 रह गयी। मतलब इसमें 1.28 प्रतिशत की कमी आयी है। बागेश्वर और पिथौरागढ़ की जनसंख्या में भी खास बढ़ोतरी दर्ज नहीं की गयी। यह क्रमश: 4.18 और 4.58 प्रतिशत थी। चंपावत की जनसंख्या 15.63 प्रतिशत बढ़ी है लेकिन उधमसिंह नगर और नैनीताल ने कुमांऊ के दूसरे जिले को लोगों को भी आकर्षित किया। यही वजह है कि 2001 से लेकर 2011 तक नैनीताल की जनसंख्या में 25.13 प्रतिशत और उधमसिंह नगर की जनसंख्या में 33.45 प्रतिशत वृद्धि दर्ज की गयी।
जब उत्तराखंड को अलग राज्य बनाने की मांग की जा रही थी तब 'पहाड़ की जवानी और पहाड़ का पानी' रोकने के नारा खूब जोर शोर से चला था। राज्य गठन के बाद स्थिति सुधरने की बजाय बिगड़ती चली गयी। इसका परिणाम है कि आज गांव के गांव खाली होते जा रहे हैं। राज्य सरकार पलायन को रोकने में पूरी तरह से नाकाम रही है। अब भी अगर सार्थक कदम उठाये जाते हैं तो सकारात्मक परिणाम मिल सकते हैं। आपका धर्मेन्द्र पंत
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