चंद वंश का संस्थापक कौन था इसको लेकर इतिहासकारों की राय अलग अलग है। कुमांऊ का इतिहास नामक पुस्तक के लेखक बद्रीदत्त पांडे ने अपनी किताब में कन्नौज के चंद वंश के राजकुमार सोमचंद को कुमांऊ में चंद वंश का संस्थापक माना है लेकिन कुछ अन्य इतिहासकार थोहरचंद को चंद वंश का संस्थापक मानते हैं। चंद वंश की स्थापना कब हुई इसको लेकर भी इतिहासकार एकमत नहीं हैं। श्री बद्रीदत्त पांडे ने सोमचंद का राज्यकाल 700 ईस्वी सन से 721 ईस्वी सन तक माना है मतलब उनके अनुसार चंदवंश की स्थापना 700 ईस्वी सन में हुई थी। कुमांऊ और गढ़वाल के इतिहास के जानकार एडविन थामस एटकिन्सन का मानना था कि चंद वंश की स्थापना सन 953 में हुई जबकि एक अन्य इतिहासकार डा. एम पी जोशी इसे सन 1250 मानते हैं। हम यहां पर श्री बद्रीदत्त पांडे की सूची के अनुसार आपको कुमांऊ के चंद वंश के राजाओं की जानकारी देंगे।
1. सोमचंद 700—721
कहा जाता है राजकुमार सोमचंद अपने 27 साथियों के साथ भगवान बद्रीनाथ के दर्शन के लिये आये थे। तब उनका कुमांऊ के कत्यूरी शासक ब्रह्मदेव से संपर्क हुआ और उन्होंने राजकुमार के चाल चलन और रहन सहन से प्रभावित होकर अपनी एकमात्र पुत्री का विवाह सोमचंद से कर दिया। उन्होंने सोमचंद को 15 बीघा जमीन दहेज में दी थी। राजा सोमचंद ने चंपावत में अपना किला बनवाया जिसका नाम 'राजबुंगा' रखा। सोमचंद ने वहां अपना राज्य स्थापित किया तथा चंपावत को अपनी राजधानी बनाया। इनके चार फौजदार या किलेदार थे जिन्हें चार आलों के नाम से जाना जाता था। ये फौजदार थे —कार्की, बोरा, तड़ागी और चौधरी। आपस में लड़ने वाले विभिन्न क्षेत्रीय सरदारों पर जीत दर्ज की। महर और फरत्याल वर्गों की शुरुआत राजा सोमचंद के काल में ही हुई थी।
2. आत्मचंद 721—740
3. पूरणचंद 740-758
4. इंद्र चंद 758-778 इस राजा ने कुमांऊ में पहली बार रेशम का कारखाना खोला था।
5. संसार चंद 778-813
6. सुधा चंद 813-833
7. हमीर चंद उर्फ हरिचंद 833-856
8. बीणाचंद 856-869
राजा बीणाचंद भोग विलास में लीन रहे। इसका फायदा उठाकर खस राजाओं ने कुमांऊ पर अपना आधिपत्य जमा दिया। खस राजाओं ने अपना राष्ट्रीय झंडा फहराया। कन्नौज और झूंसी से आये 'विदेशी राजा और उसके कर्मचारियों' को बाहर भगाने के लिये कहा। खस राजाओं ने लगभग 200 वर्षों तक कुमांऊ पर राज किया। खस राजाओं के बारे में कहा जाता है कि लोकप्रिय नहीं थे लेकिन कुछ शिलालेखों से पता चलता है कि इस दौरान कई मंदिरों का जीर्णोद्धार किया गया। बद्रीदत्त पांडे के अनुसार खस राजाओं के अजीब नाम थे जैसे बिजड़, जीजड़, जड़, कालू, कलसू, जाहल, मूल, गुणा, पीड़ा, नागू, भागू, जयपाल, सौपाल या सोनपाल, इंद्र या इमि।
9. वीर चंद 1065-1080 कहते हैं कि खसों के शासन के दौरान चंद वंश के राजपूत तराई भाबर चले गये थे। बाद में खसों से परेशान होकर जनता ने तराई से चंद वंश के एक राजकुमार वीरचंद को गद्दी पर बिठाया था। उसने चंपावत पर आक्रमण करके राजा सोनपाल को मारकर फरि से चंदवंश की स्थापना की थी।
10. रूप चंद 1080-1093
11. लक्ष्मी चंद 1093-1113
12. धरम चंद 1113-1121
13. करम चंद या कूर्म चंद 1121-1140
14. कल्याण चंद या बल्लाल चंद 1140-1149
15. नामी चंद निर्भय चंद 1149-1170
16. नर चंद 1170-1177
17. नानकी चंद 1177-1195
18. राम चंद 1195-1205
19. भीषम चंद 1205-1226
20. मेघ चंद 1226-1233
21. ध्यान चंद 1233-1251
22. पर्वत चंद 1251-1261
23. थोहर चंद 1261-1275
24. कल्याण चंद द्वितीय 1275-1296
25. त्रिलोक चंद 1296-1303 छखाता राज्य पर कब्ज़ा किया। भीमताल में किले का निर्माण किया।
26. डमरू चंद 1303-1321
27. धर्म चंद 1321-1344
28. अभय चंद 1344-1374
29. गरुड़ ज्ञान चंद 1374-1419 भाभर तथा तराई पर अधिकार स्थापित किया। कहते हैं कि बादशाह तुगलक ने इन्हें 'गरुड़' की उपाधि दी थी। इनका सेनापति नीलू कठायत काफी वीर और साहसी था। कहते हैं कि राजा ने धोखे से अपने सेनापति को मरवाया था।
30. हरि चंद 1419 -1420
31. उद्यान चंद 1420-1421 राजधानी चम्पावत में बालेश्वर मन्दिर की नींव रखी। एक साल की मालगुजारी माफ करवायी। चौगर्खा पर कब्जा किया। इनका राज्य उत्तर में सरयू से लेकर दक्षिण में तराई तक तथा पूर्व में काली से लेकर पश्चिम में सुंवाल तक फैला था।
32. आत्म चंद द्वितीय 1421-1422
33. हरी चंद द्वितीय 1422-1423
34. विक्रम चंद 1423-1437 बालेश्वर मन्दिर का निर्माण पूर्ण किया। लेकिन बाद में भोग विलास में लीन हो गये।
35. भारती चंद 1437-1450 डोटी राजा विक्रमचंद को अपनी भोग विलासिता के कारण राजकाज छोड़कर भागना पड़ा था। उनकी जगह उनके भतीजे भारतीचंद राजा बने जो लोकप्रिय, साहसी और चरित्रवान राजा थे। अपने पुत्र कुंवर रत्नचंद की मदद से डोटी राजाओं को परास्त किया। भारती चंद ने अपने जीवित रहते ही 1450 में अपने बेटे रत्नचंद को राजकाज सौंप दिया था। राजा भारती चंद का 1461 में निधन हुआ।
36. रत्न चंद 1450-1488 बेहद प्रतापी राजा जिनके शासनकाल में कुमांऊ के राजाओं का प्रभाव बढ़ा। जागीश्वर मंदिर में बड़ा भंडारा करवाया था। अपने पिता राजा भारती चंद के निधन के बाद डोटी से दोबारा युद्ध करके उन्हें पराजित किया। बम राजाओं को हराकर सोर को अपने राज्य में मिलाया।
37. कीर्ति चंद 1488-1503 अपने पिता की तरह वीर और निडर थे। बारामंडल पर विजय प्राप्त की। कैड़ारो—बौरारो को चंद राज्य में मिलाया। पाली और फल्दकोट पर भी विजय पताका फहरायी। पौराणिक बृद्धकेदार का निर्माण सम्पन्न किया तथा सोमनाथेश्वर महादेव का पुनर्निर्माण किया।
38. प्रताप चंद 1503-1517
39. तारा चंद 1517-1533
40. माणिक चंद 1533-1542
41. कल्याण चंद तृतीय 1542-1551
42. पूर्ण चंद 1551-1555
43. भीष्म चंद 1555-1560 चम्पावत से राजधानी खगमराकोट में बसायी। आलमनगर की नींव रखी। इस राजा को खस जाति के सरदार श्रीगजुवाठिंगा ने सोते समय मार डाला था।
44. बालो कल्याण चंद 1560-1568 श्रीगजुवाठिंगा को हराकर बारामण्डल पर फिर से कब्ज़ा किया। राजधानी खगमराकोट से आलमनगर में बसायी जिसका नाम अल्मोड़ा रखा। गंगोली के मणकोटि राजा और दानपुर के छोटे छोटे खस राजाओं को हराकर उन्हें अपने राज्य में मिलाया।
45. रुद्र चंद 1568-1597 चंद राजाओं में सबसे अधिक विद्धान, शिक्षाप्रेमी, प्रतापी, शूरवीर और दानी राजा। काठ एवं गोला यानि शाहजहांपुर के नवाब हुसैनखां टुकड़िया ने तराई पर कब्जा कर दिया था। राजा रुद्रचंद ने हुसैन खां के निधन के बाद तराई पर फिर से कब्जा किया। रुद्रपुर नगर की स्थापना की तथा वहां महल और किला बनवाया। अस्कोट, दारमा, जोहार और सीरा पर कब्जा किया। कुमांऊ में संस्कृत भाषा के प्रचार प्रसार में महत्वपूर्ण भूमिका निभायी।
46. लक्ष्मी चंद 1597-1621 राजा रुद्रचंद के बड़े पुत्र शक्तिसिंह अंधे थे इसलिए उनके छोटे बेटे लक्ष्मीचंद ने अपने पिता के निधन के बाद राजकाज संभाला। अल्मोड़ा में लक्ष्मेश्वर और बागेश्वर में बागनाथ मंदिर की स्थापना की। सात बार गढ़वाल पर चढ़ाई की लेकिन हर बार उन्हें हार मिली। एक बार बादशाह जहांगीर के दरबार में भी गये थे।
47. दिलीप चंद 1621-1624
48. विजय चंद 1624-1625
49. त्रिमल चंद 1625-1638 राजा लक्ष्मीचंद के चार बेटे थे —दिलीपचंद, त्रिमलचंद, नारायण चंद और नीला गुंसाई। दिलीपचंद ने केवल तीन साल राज किया। उनके पुत्र विजयचंद केवल एक साल राज कर पाये। उनके चाचा त्रिमलचंद उन्हें शासन से हटाकर खुद राजा बन गये थे। राजा विजयचंद ने रसोई दरोगा और राजचेलियों ने मिलकर मारा था इसलिए राजा त्रिमलचंद ने रसोई और राजचेलियों के लिये खास नियम बनवाये थे।
50. बाज़ बहादुर चंद 1638-1678 एटकिन्सन के अनुसार दिल्ली के बादशाह यानि औरंगजेब को खुश करने के लिये राजा बाजबहापुरचंद ने कुमांऊ से जजिया भी वसूल किया था और उसे दिल्ली भेजा था। इसके हालांकि कोई प्रमाण नहीं हैं। गढ़वाल के बधानगढ़ और लोहबागढ़ पर चढ़ाई की। तिब्बत पर भी आक्रमण किया। बाजपुर नगर की स्थापना की।
51. उद्योत चंद 1678-1698 बधानगढ़ पर चढ़ाई की। चार मंदिरों उद्योतचंदेश्वर, पार्वतीश्वर,त्रिपुरादेवी और विष्णुमंदिर का निर्माण करवाया। अल्मोड़ा में रंगमहल बनवाया।
52. ज्ञान चंद 1698-1708
53. जगत चंद 1708-1720 धार्मिक प्रवृति के राजा थे। कहा जाता है कि राजा जगतचंद ने 1000 गायें दान की थी।
54. देवी चंद 1720-1726 इस राजा के बारे में कहा जाता है कि वह अपने सलाहकारों की हाथों की कठपुतली थे और उन्होंने पिता द्वारा जमा किये गये धन को दान किया लेकिन इसमें से अधिकतर धन उनके दरबारी हड़प गये थे।
55. अजीत चंद 1726-1729 राजा ज्ञानचंद की बेटी का लड़का जिसके पिता का नाम नरपतसिंह कठेड़िया था। गैड़ा बिष्टों ने राजा देवीचंद को मारकर अजीतचंद को गद्दी पर बिठाया था लेकिन वह कठपुतली राजा ही रहे। इस दौरान पूरनमल और वृद्ध पिता मानिकचंद गैड़ा बिष्ट ने राजकाज संभाला। उनके अन्यायपूर्ण राज्यकाल को कुमांऊ में 'गैड़ागर्दी' नाम से जाना जाता है।
56. कल्याण चंद पंचम 1729-1747 गैंडागर्दी के दिनों में ही राजा अजीत सिंह की हत्या कर दी गयी थी। उनके स्थान पर राजा उद्योतचंद के छोटे बेटे कल्याणचंद को राजा बनाया गया जो पूर्व में अपने भाई के डर से डोटी में गरीबी में दिन बिता रहे थे। इस राजा ने पूरनमल और मानिकचंद गैड़ा के अत्याचारों से लोगों को मुक्ति दिलायी। इस राजा के बारे में कहा जाता है कि उन्होंने चंदवंश के कुंवर और रौतेलों को मारने का आदेश दिया था। इनके समय में रोहिला सरदार अली मोहम्मद खान ने कुमांऊ पर चढ़ाई करके विजय प्राप्त की थी लेकिन वे राजा से धन लेकर वापस लौट गये। रोहिलों ने दूसरी बार आक्रमण किया लेकिन वे पराजित हो गये।
57. दीप चंद 1747-1777 कल्याचंद के निधन के बाद उनके बेटे दीपचंद ने छोटी अवस्था में राजकाज संभाला। पानीपत की तीसरे युद्ध में मराठों के खिलाफ रोहिल्लों का साथ दिया था। मिलनसार और दयालु प्रवृति के थे। इनके समय में कुमांऊ में सुख शांति रही। इनके राज्यकाल में शिवदेव जोशी का काफी प्रभाव था। राजा दीपचंद को षडयंत्र के तहत कैद किया गया जहां उनकी मौत हुई।
58. मोहन चंद 1777-1779 गढ़वाल के राजा ललितशाह ने राजा मोहनचंद को पराजित करके अपने पुत्र प्रद्युम्नशाह को कुमांऊ की गद्दी सौंप दी थी जो प्रद्युम्नचंद के नाम से राजा बने।
59. प्रद्युम्न शाह प्रद्युम्न चंद 1779 -1786 राजा ललितशाह की दूसरी रानी डोटियाली रानी से जन्में पुत्र। राजा ललितशाह का गढ़वाल लौटते समय बीमार होने से निधन हो गया था। गढ़वाल के राजा उनके बड़े पुत्र जयकृतशाह बने लेकिन उनकी अपने सौतेले भाई प्रद्युम्नशाह से नहीं बनी। जयकृतशाह के आकस्मिक निधन के बाद गढ़वाल लौटे जिसका फायदा उठाकर मोहन चंद ने फिर से कुमांऊ की सत्ता हासिल कर ली।
60. मोहन चंद 1786-1788 दूसरी बार भी अधिक समय तक राजकाज नहीं चला सके। राजा मोहनचंद को मारकर चतुर राजनीतिज्ञ हर्षदेव जोशी ने राजा प्रद्युम्नशाह को फिर से गद्दी संभालने को कहा था। आखिर में उन्होंने राजा उद्योतचंद के रिश्तेदार शिवसिंह को शिवचंद नाम से राजा नियुक्त किया था।
61. शिव चंद 1788 कुछ महीनों तक ही राज कर पाये। नाममात्र के राजा। सारा राजकाज हर्षदेव जोशी देखते थे। कुंवर लालसिंह से पराजित होकर हर्षदेव जोशी के साथ गढ़वाल भाग गये थे।
62. महेन्द्र चंद 1788-1790 मोहनचंद के पुत्र। इनके राज्यकाल में जोशियों को काफी परेशान किया गया।
चंदवंश का अंत
राजा दीपचंद के समय से ही क्षेत्र में अराजकता फैल गयी थी। इसके वंशजों के आपस में ही लड़ते रहने का फायदा गोरखाओं ने उठाया और अल्मोड़ा पर आधिपत्य किया जिसके साथ ही चंद वंश का भी अंत हो गया।
1. सोमचंद 700—721
कहा जाता है राजकुमार सोमचंद अपने 27 साथियों के साथ भगवान बद्रीनाथ के दर्शन के लिये आये थे। तब उनका कुमांऊ के कत्यूरी शासक ब्रह्मदेव से संपर्क हुआ और उन्होंने राजकुमार के चाल चलन और रहन सहन से प्रभावित होकर अपनी एकमात्र पुत्री का विवाह सोमचंद से कर दिया। उन्होंने सोमचंद को 15 बीघा जमीन दहेज में दी थी। राजा सोमचंद ने चंपावत में अपना किला बनवाया जिसका नाम 'राजबुंगा' रखा। सोमचंद ने वहां अपना राज्य स्थापित किया तथा चंपावत को अपनी राजधानी बनाया। इनके चार फौजदार या किलेदार थे जिन्हें चार आलों के नाम से जाना जाता था। ये फौजदार थे —कार्की, बोरा, तड़ागी और चौधरी। आपस में लड़ने वाले विभिन्न क्षेत्रीय सरदारों पर जीत दर्ज की। महर और फरत्याल वर्गों की शुरुआत राजा सोमचंद के काल में ही हुई थी।
2. आत्मचंद 721—740
3. पूरणचंद 740-758
4. इंद्र चंद 758-778 इस राजा ने कुमांऊ में पहली बार रेशम का कारखाना खोला था।
5. संसार चंद 778-813
6. सुधा चंद 813-833
7. हमीर चंद उर्फ हरिचंद 833-856
8. बीणाचंद 856-869
राजा बीणाचंद भोग विलास में लीन रहे। इसका फायदा उठाकर खस राजाओं ने कुमांऊ पर अपना आधिपत्य जमा दिया। खस राजाओं ने अपना राष्ट्रीय झंडा फहराया। कन्नौज और झूंसी से आये 'विदेशी राजा और उसके कर्मचारियों' को बाहर भगाने के लिये कहा। खस राजाओं ने लगभग 200 वर्षों तक कुमांऊ पर राज किया। खस राजाओं के बारे में कहा जाता है कि लोकप्रिय नहीं थे लेकिन कुछ शिलालेखों से पता चलता है कि इस दौरान कई मंदिरों का जीर्णोद्धार किया गया। बद्रीदत्त पांडे के अनुसार खस राजाओं के अजीब नाम थे जैसे बिजड़, जीजड़, जड़, कालू, कलसू, जाहल, मूल, गुणा, पीड़ा, नागू, भागू, जयपाल, सौपाल या सोनपाल, इंद्र या इमि।
9. वीर चंद 1065-1080 कहते हैं कि खसों के शासन के दौरान चंद वंश के राजपूत तराई भाबर चले गये थे। बाद में खसों से परेशान होकर जनता ने तराई से चंद वंश के एक राजकुमार वीरचंद को गद्दी पर बिठाया था। उसने चंपावत पर आक्रमण करके राजा सोनपाल को मारकर फरि से चंदवंश की स्थापना की थी।
10. रूप चंद 1080-1093
11. लक्ष्मी चंद 1093-1113
12. धरम चंद 1113-1121
13. करम चंद या कूर्म चंद 1121-1140
14. कल्याण चंद या बल्लाल चंद 1140-1149
15. नामी चंद निर्भय चंद 1149-1170
16. नर चंद 1170-1177
17. नानकी चंद 1177-1195
18. राम चंद 1195-1205
19. भीषम चंद 1205-1226
20. मेघ चंद 1226-1233
21. ध्यान चंद 1233-1251
22. पर्वत चंद 1251-1261
23. थोहर चंद 1261-1275
24. कल्याण चंद द्वितीय 1275-1296
25. त्रिलोक चंद 1296-1303 छखाता राज्य पर कब्ज़ा किया। भीमताल में किले का निर्माण किया।
26. डमरू चंद 1303-1321
27. धर्म चंद 1321-1344
28. अभय चंद 1344-1374
29. गरुड़ ज्ञान चंद 1374-1419 भाभर तथा तराई पर अधिकार स्थापित किया। कहते हैं कि बादशाह तुगलक ने इन्हें 'गरुड़' की उपाधि दी थी। इनका सेनापति नीलू कठायत काफी वीर और साहसी था। कहते हैं कि राजा ने धोखे से अपने सेनापति को मरवाया था।
30. हरि चंद 1419 -1420
31. उद्यान चंद 1420-1421 राजधानी चम्पावत में बालेश्वर मन्दिर की नींव रखी। एक साल की मालगुजारी माफ करवायी। चौगर्खा पर कब्जा किया। इनका राज्य उत्तर में सरयू से लेकर दक्षिण में तराई तक तथा पूर्व में काली से लेकर पश्चिम में सुंवाल तक फैला था।
32. आत्म चंद द्वितीय 1421-1422
33. हरी चंद द्वितीय 1422-1423
34. विक्रम चंद 1423-1437 बालेश्वर मन्दिर का निर्माण पूर्ण किया। लेकिन बाद में भोग विलास में लीन हो गये।
35. भारती चंद 1437-1450 डोटी राजा विक्रमचंद को अपनी भोग विलासिता के कारण राजकाज छोड़कर भागना पड़ा था। उनकी जगह उनके भतीजे भारतीचंद राजा बने जो लोकप्रिय, साहसी और चरित्रवान राजा थे। अपने पुत्र कुंवर रत्नचंद की मदद से डोटी राजाओं को परास्त किया। भारती चंद ने अपने जीवित रहते ही 1450 में अपने बेटे रत्नचंद को राजकाज सौंप दिया था। राजा भारती चंद का 1461 में निधन हुआ।
36. रत्न चंद 1450-1488 बेहद प्रतापी राजा जिनके शासनकाल में कुमांऊ के राजाओं का प्रभाव बढ़ा। जागीश्वर मंदिर में बड़ा भंडारा करवाया था। अपने पिता राजा भारती चंद के निधन के बाद डोटी से दोबारा युद्ध करके उन्हें पराजित किया। बम राजाओं को हराकर सोर को अपने राज्य में मिलाया।
37. कीर्ति चंद 1488-1503 अपने पिता की तरह वीर और निडर थे। बारामंडल पर विजय प्राप्त की। कैड़ारो—बौरारो को चंद राज्य में मिलाया। पाली और फल्दकोट पर भी विजय पताका फहरायी। पौराणिक बृद्धकेदार का निर्माण सम्पन्न किया तथा सोमनाथेश्वर महादेव का पुनर्निर्माण किया।
38. प्रताप चंद 1503-1517
39. तारा चंद 1517-1533
40. माणिक चंद 1533-1542
41. कल्याण चंद तृतीय 1542-1551
42. पूर्ण चंद 1551-1555
43. भीष्म चंद 1555-1560 चम्पावत से राजधानी खगमराकोट में बसायी। आलमनगर की नींव रखी। इस राजा को खस जाति के सरदार श्रीगजुवाठिंगा ने सोते समय मार डाला था।
44. बालो कल्याण चंद 1560-1568 श्रीगजुवाठिंगा को हराकर बारामण्डल पर फिर से कब्ज़ा किया। राजधानी खगमराकोट से आलमनगर में बसायी जिसका नाम अल्मोड़ा रखा। गंगोली के मणकोटि राजा और दानपुर के छोटे छोटे खस राजाओं को हराकर उन्हें अपने राज्य में मिलाया।
45. रुद्र चंद 1568-1597 चंद राजाओं में सबसे अधिक विद्धान, शिक्षाप्रेमी, प्रतापी, शूरवीर और दानी राजा। काठ एवं गोला यानि शाहजहांपुर के नवाब हुसैनखां टुकड़िया ने तराई पर कब्जा कर दिया था। राजा रुद्रचंद ने हुसैन खां के निधन के बाद तराई पर फिर से कब्जा किया। रुद्रपुर नगर की स्थापना की तथा वहां महल और किला बनवाया। अस्कोट, दारमा, जोहार और सीरा पर कब्जा किया। कुमांऊ में संस्कृत भाषा के प्रचार प्रसार में महत्वपूर्ण भूमिका निभायी।
46. लक्ष्मी चंद 1597-1621 राजा रुद्रचंद के बड़े पुत्र शक्तिसिंह अंधे थे इसलिए उनके छोटे बेटे लक्ष्मीचंद ने अपने पिता के निधन के बाद राजकाज संभाला। अल्मोड़ा में लक्ष्मेश्वर और बागेश्वर में बागनाथ मंदिर की स्थापना की। सात बार गढ़वाल पर चढ़ाई की लेकिन हर बार उन्हें हार मिली। एक बार बादशाह जहांगीर के दरबार में भी गये थे।
47. दिलीप चंद 1621-1624
48. विजय चंद 1624-1625
49. त्रिमल चंद 1625-1638 राजा लक्ष्मीचंद के चार बेटे थे —दिलीपचंद, त्रिमलचंद, नारायण चंद और नीला गुंसाई। दिलीपचंद ने केवल तीन साल राज किया। उनके पुत्र विजयचंद केवल एक साल राज कर पाये। उनके चाचा त्रिमलचंद उन्हें शासन से हटाकर खुद राजा बन गये थे। राजा विजयचंद ने रसोई दरोगा और राजचेलियों ने मिलकर मारा था इसलिए राजा त्रिमलचंद ने रसोई और राजचेलियों के लिये खास नियम बनवाये थे।
50. बाज़ बहादुर चंद 1638-1678 एटकिन्सन के अनुसार दिल्ली के बादशाह यानि औरंगजेब को खुश करने के लिये राजा बाजबहापुरचंद ने कुमांऊ से जजिया भी वसूल किया था और उसे दिल्ली भेजा था। इसके हालांकि कोई प्रमाण नहीं हैं। गढ़वाल के बधानगढ़ और लोहबागढ़ पर चढ़ाई की। तिब्बत पर भी आक्रमण किया। बाजपुर नगर की स्थापना की।
51. उद्योत चंद 1678-1698 बधानगढ़ पर चढ़ाई की। चार मंदिरों उद्योतचंदेश्वर, पार्वतीश्वर,त्रिपुरादेवी और विष्णुमंदिर का निर्माण करवाया। अल्मोड़ा में रंगमहल बनवाया।
52. ज्ञान चंद 1698-1708
53. जगत चंद 1708-1720 धार्मिक प्रवृति के राजा थे। कहा जाता है कि राजा जगतचंद ने 1000 गायें दान की थी।
54. देवी चंद 1720-1726 इस राजा के बारे में कहा जाता है कि वह अपने सलाहकारों की हाथों की कठपुतली थे और उन्होंने पिता द्वारा जमा किये गये धन को दान किया लेकिन इसमें से अधिकतर धन उनके दरबारी हड़प गये थे।
55. अजीत चंद 1726-1729 राजा ज्ञानचंद की बेटी का लड़का जिसके पिता का नाम नरपतसिंह कठेड़िया था। गैड़ा बिष्टों ने राजा देवीचंद को मारकर अजीतचंद को गद्दी पर बिठाया था लेकिन वह कठपुतली राजा ही रहे। इस दौरान पूरनमल और वृद्ध पिता मानिकचंद गैड़ा बिष्ट ने राजकाज संभाला। उनके अन्यायपूर्ण राज्यकाल को कुमांऊ में 'गैड़ागर्दी' नाम से जाना जाता है।
56. कल्याण चंद पंचम 1729-1747 गैंडागर्दी के दिनों में ही राजा अजीत सिंह की हत्या कर दी गयी थी। उनके स्थान पर राजा उद्योतचंद के छोटे बेटे कल्याणचंद को राजा बनाया गया जो पूर्व में अपने भाई के डर से डोटी में गरीबी में दिन बिता रहे थे। इस राजा ने पूरनमल और मानिकचंद गैड़ा के अत्याचारों से लोगों को मुक्ति दिलायी। इस राजा के बारे में कहा जाता है कि उन्होंने चंदवंश के कुंवर और रौतेलों को मारने का आदेश दिया था। इनके समय में रोहिला सरदार अली मोहम्मद खान ने कुमांऊ पर चढ़ाई करके विजय प्राप्त की थी लेकिन वे राजा से धन लेकर वापस लौट गये। रोहिलों ने दूसरी बार आक्रमण किया लेकिन वे पराजित हो गये।
57. दीप चंद 1747-1777 कल्याचंद के निधन के बाद उनके बेटे दीपचंद ने छोटी अवस्था में राजकाज संभाला। पानीपत की तीसरे युद्ध में मराठों के खिलाफ रोहिल्लों का साथ दिया था। मिलनसार और दयालु प्रवृति के थे। इनके समय में कुमांऊ में सुख शांति रही। इनके राज्यकाल में शिवदेव जोशी का काफी प्रभाव था। राजा दीपचंद को षडयंत्र के तहत कैद किया गया जहां उनकी मौत हुई।
58. मोहन चंद 1777-1779 गढ़वाल के राजा ललितशाह ने राजा मोहनचंद को पराजित करके अपने पुत्र प्रद्युम्नशाह को कुमांऊ की गद्दी सौंप दी थी जो प्रद्युम्नचंद के नाम से राजा बने।
59. प्रद्युम्न शाह प्रद्युम्न चंद 1779 -1786 राजा ललितशाह की दूसरी रानी डोटियाली रानी से जन्में पुत्र। राजा ललितशाह का गढ़वाल लौटते समय बीमार होने से निधन हो गया था। गढ़वाल के राजा उनके बड़े पुत्र जयकृतशाह बने लेकिन उनकी अपने सौतेले भाई प्रद्युम्नशाह से नहीं बनी। जयकृतशाह के आकस्मिक निधन के बाद गढ़वाल लौटे जिसका फायदा उठाकर मोहन चंद ने फिर से कुमांऊ की सत्ता हासिल कर ली।
60. मोहन चंद 1786-1788 दूसरी बार भी अधिक समय तक राजकाज नहीं चला सके। राजा मोहनचंद को मारकर चतुर राजनीतिज्ञ हर्षदेव जोशी ने राजा प्रद्युम्नशाह को फिर से गद्दी संभालने को कहा था। आखिर में उन्होंने राजा उद्योतचंद के रिश्तेदार शिवसिंह को शिवचंद नाम से राजा नियुक्त किया था।
61. शिव चंद 1788 कुछ महीनों तक ही राज कर पाये। नाममात्र के राजा। सारा राजकाज हर्षदेव जोशी देखते थे। कुंवर लालसिंह से पराजित होकर हर्षदेव जोशी के साथ गढ़वाल भाग गये थे।
62. महेन्द्र चंद 1788-1790 मोहनचंद के पुत्र। इनके राज्यकाल में जोशियों को काफी परेशान किया गया।
चंदवंश का अंत
राजा दीपचंद के समय से ही क्षेत्र में अराजकता फैल गयी थी। इसके वंशजों के आपस में ही लड़ते रहने का फायदा गोरखाओं ने उठाया और अल्मोड़ा पर आधिपत्य किया जिसके साथ ही चंद वंश का भी अंत हो गया।
आपका धर्मेन्द्र पंत
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