उत्तराखंड के मशहूर नृत्यगीतों में से एक है थड़िया। यह नवयौवनाओं को समर्पित गीत है। थड़िया 'थाड़' शब्द से बना है। थाड़ का मतलब है आंगन। बसंतपंचमी से लेकर बैशाखी तक गढ़वाल के गांवों में किसी के आंगन में लोकगीतों का आयोजन किया जाता है। गांव के लोग विशेषकर महिलाएं इन गीतों में भाग लेती हैं। थड़िया इन गीतों का अहम अंग है।
सेरा कि मिडोळयूँ नै डाळि पयाँ जामी, नै डाळि पयाँ जामी
द्यबतूं का सतन, नै डाळि पयाँ जामी
थड़िया को देवताओं का नृत्य माना जाता है जिसमें नवयुवतियां हिस्सा लेती हैं। मधुर गीतों और ताल के साथ होता है थड़िया जिनकी विषय वस्तु धार्मिक भावना से लेकर प्रकृति और समाज में घटित घटनाएं होती हैं। गढ़वाल में चैत के महीने में विवाहित बेटियां अपने मायके आती हैं और इन गीतों के जरिये अपने बचपन और यौवन को याद करती हैं। थड़िया में नर्तकों को दो टोलियों में बांटा जाता है। नर्तक एक दूसरे के कंधे पर हाथ रखकर लयबद्ध तरीके से गीत गाते हुए आगे बढ़ते हैं। इस गीत में सिर, कमर और पांवों का तालमेल बनाये रखना अहम होता है। एक मशहूर थड़िया गीत यहां पर दे रहा हूं।
रणिहाट नि जाणो गजेसिंह
राण्यूं को रणिहाट गजेसिंह
मेरो बोल्युं मान्याली गजेसिंह
हळज़ोत का दिन गजेसिंह
तू हौसिया बैख गजेसिंह
सया तीला बाखरी गजेसिंह
छाट्ट -छाट्ट छींकदी गजेसिंह
बड़ा बाबू का बेटा गजेसिंह
त्यरा कानू कुंडल गजेसिंह
त्यरा हाथ धागुला गजेसिंह
त्वे राणि लूटली गजेसिंह
तौन मारे त्यरो बाबू गजेसिंह
वैर्यों को बंदाण गजेसिंह
त्वे ठौन्ऱी मारला गजेसिंह
आज न भोळ गजेसिंह
भौं कुछ ह्वे जैन गजेसिंह
मर्द मरि जाण गजेसिंह
बोल रइ जाण गजेसिंह
कैसी लगी आपको थड़िया के बारे में यह संक्षिप्त जानकारी जरूर बतायें। घसेरी का अपना यूट्यूब चैनल है जिसमें थड़िया और उत्तराखंड के अन्य लोकगीतों और लोकनृत्यों के बारे में जानकारी दी गयी। यूट्यूब चैनल पर जाने के लिये नीचे घसेरी पर क्लिक करें। आपका धर्मेन्द्र पंत
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