उत्तराखंड देवभूमि है। यह असल में मंदिरों का गढ़ है जिसमें प्रत्येक मंदिर का अपना विशेष महत्व है। उत्तराखंड में ही केदार क्षेत्र में पांच शैव पीठ आते हैं — ताड़केश्वर महादेव, एकेश्वर महादेव, बिन्देश्वर महादेव, क्यूंकालेश्वर महादेव और किल्किलेश्वर महादेव। हम एकेश्वर महादेव और ताड़केश्वर महादेव की पहले चर्चा कर चुके हैं। आज बात करते हैं बिंदेश्वर महादेव की। इन पांचों शैव पीठ पर घसेरी के यूट्यूब चैनल पर वीडियो प्रेषित किया गया है जो लोगों को काफी पसंद आ रहा है।
बिनसर महादेव मंदिर पौड़ी गढ़वाल जिले के ही थलीसैण ब्लॉक की चौथाण पट्टी में स्थित है। यह थलीसैण से लगभग 22 किमी और जिला मुख्यालय पौड़ी से लगभग 114 किमी और कोटद्वार से लगभग 175 किमी दूर है। यह दूधातोली डांडा में स्थित यह मंदिर बांज, देवदार आदि के वृक्षों से घिरा है जिससे इसकी प्राकृतिक छटा देखते ही बनती है। बिनसर को भगवान शिव और माता पार्वती की पावन स्थली माना जाता है।
गढ़वाली में बिनसर का मतलब सुबह की बेला होता है, लेकिन इसे बिन्देश्वर मंदिर भी कहते हैं। माना जाता है कि राजा पृथ्वी जिसे स्थानीय भाषा में राजा पिरथु कहते हैं, ने अपने पिता बिंदु की याद में बिनसर मंदिर का निर्माण करवाया था। इसी कारण इसे बिंदेश्वर महादेव कहा जाता है। मंदिर के निर्माण को लेकर हालांकि एकमत नहीं है।
कुछ पौराणिक मान्यताओं के अनुसार पांडवों ने अज्ञातवास के दौरान कुछ समय इस जंगल में बिताया था और तब उन्होंने यहां पर भैरवनाथ के मंदिर का निर्माण किया था। कहा जाता है कि केवल एक रात में उन्होंने मंदिर का निर्माण किया और पूजा अर्चना के बाद अज्ञातवास पर निकल गये थे। मंदिर के गर्भगृह में गणेश, हरगौरी और महिषासुरमर्दिनी की प्रतिमा भी स्थापित है। महिषासुरमर्दिनी की प्रतिमा पर नागरी लिपि अंकित है जिससे पता चलता है कि यह प्रतिमा नौवीं शताब्दी या उससे पहले स्थापित की गयी थी।
बिनसर महादेव 2480 मीटर की ऊंचाई पर स्थित है। यहां पर बैंकुंठ चर्तुदशी के अवसर पर मेला लगता है। गढ़वाल और कुमांऊ की सीमा के पास में स्थित होने के कारण मेले में दोनों मंडलों विशेषकर पौड़ी, अल्मोड़ा, चमोली और रूद्रप्रयाग जिलों के लोग बड़ी संख्या में पहुंचते हैं। यहां पर भी इस अवसर पर संतान प्राप्ति के लिये खड़रात्रि की जाती है। बोलो जय बिनसर महादेव। .... आपका धर्मेन्द्र पंत