मंगलवार, 17 दिसंबर 2019

ढोल सागर का रहस्य (2)


                                प्रस्तुतिकरण : भीष्म कुकरेती 
              
     अरे आवजी आवजी कथु उपजोगी चार खाने चार बान कथु उपजोगे बलं कथु उपजोगे पंच शब्द कथं उपजोगे ढोलँ।। ईश्वरोवाच ।। अरे गुनीजन सतयुग उपजोगी चार खाने चार बाने आरम्भयुग उपजोगी ढोलम गुरुमुख उपजिगो पंचशब्द बारा जग उपजिगो ढोलम ।। पार्वत्युवाच ।। ऊँ प्रथम कनिकत्र राजा इंद्र को उदीम दास ढोली अमृतं को ढोलँ अब क्या सुने शब्द तहाँ नामिक नमोनम: इति युग को ढोल बजयिते। द्वापर युग मधे मानदाता राजा मानदाता राजा की बामादास ढोली गगन को ढोलम।  अविकाराम तम सुनी शब्दम तच्च नामिक नमो नमः।। त्रेता युगे मध्ये महेंद्र नाम राजा महेंद्र नाम राजा को बिदिपाल दास ढोली काष्ट को ढोलम अविकार ।। कलयुग मध्ये बीर विक्रमजीत राजा बीर विक्रम अगवान दास ढोली अस तत्र को ढोल वस्त्र को शब्दम तच्च नामिक नमो नमः ।। इति चार युग को ढोल बजायते।  अथ चार वेद बजायते।   प्रथम ऋषि वेदम ऋषि राजा ब्राह्मण उतपते ऋषि वेद वंश निर्माता रिषि।  रिषि पढ़ते वेदं पूर्व दिशा रिषि वेदं हन्स तथा प्रथमं रिषि वेद बजायते ।। द्वितीये याजुर वेदा।  दक्षिणे भवेतु  भूत प्रति हरता तेजस्य विष्णु वेद युजुर वेद भवेत् ब्राह्मण यजुर्वेद सदैव यजुर्वेद बजायते दक्षिण दिशा नमोस्तुते ।। तृतीया सामवेद श्याम रूपी नारायण पश्चिम दिशा जित बजन्ता ता ता नन्ता तच्च बजायते तृतीये वेद सर्व श्याम रूद्र नाम बजायते। चतुर्थ अथरवण वेद उत्तर श्रये काम्पितो उत्तरै पंचदेवता पंचनाम परमेश्वर सुमंगल बमन उल्ति पुलती तक तालिका घंटा घुंघुर वेद बाजितै इंद्र।। इति चार वेद बजायते। 



         शंकर वेद बोले रे गुनिजनम गगन शंकर मध्ये त्रियो ज्योति अपव्रट कहावा अठार वारे वणसापति लेनवासि कही ढोली की ढोल की उत्पति ।। फलम -फलम श्रकसे मलम परथमे को देवता कस्य पुत्र भयो ।। ईश्वरोवाच ।। अरे आवजी परथमे जलसूना का रम नही धरति नही आकास सर्वत्रे धं धं कारम तै दिन की उतपति बोलिजा रे आवजी।  पार्वतीयवाच ।। अरे गुनिजनम परथमे निराकार निरंकार से भयो साकार जलथल जल में भया अंड अण्ड फटि उपाईले नौखंड निराकार आदि गुसाई जी ने ब्रह्माण्डमलीक ब्रह्मा उपायो अंगमलोक विष्णु उपायो भौम मलिक श्रीनाथ उपायो वाव मलिक मलिक पार्वती उपाई आदि गोसाई जी पृथ्वी रचिले। सात स्वर्ग सात पातळ।  स्वर्ग थापिले राजा इन्द्रः पातळ थापिले राजा बासुकी तब उपायो कूरम करम ऊपरी पृथ्वी उठाई तब थापिले तेतीस करोड़ देवता।  तब महादेव जी ने पार्वतीले सोल श्रृंगार बत्तीस आभूषण पहराइक नाच बनायो छई राग छतीस रागण अड़तालीस राग तुत्रले छतीस बाजेत्र बजाये। सोला सौ गोपिगने श्री कृष्णजी आये छतीस बाजेव पृथ्वी में उपाये।। अरे आवजी छत्तीस बाजेत्र बोलिजे
अरे आवजी छतीस बाजेंत्र बोलिजे Iओम प्रथमे I जिव्हा बाजत्र बाजे शंख, जाम, ताल, डंवर जंत्र किंगरी डंड़ी न्क्फेरा १० सिणाई ११ बीन १२ बंसरी १३ मुरली १४ विणाई १५ बिमली १६ सितार १७ खिजरी १८ बेण १९ सारंगी २० मृदंग २१ तबला २२ हुडकी २३ डफड़ी २४ श्रेरी २५ बरंग (२६ से ३१ का वृत्तांत नही  है ) ३२ रणडोंरु ३३ श्राणे ३४ नगारा ३५ रेटि (रौंटळ/रौंटी) ३६ ढोल II  इति ढोल उत्पति बोलिजे रे आवजी II करिबना कठिन चन्द्र बिना दाताररघुपति जजर फुलम स्याम फुलं जैगंधी नाम अर बल छाया अरत परत संज्या गुनि हो गंधबर माल घोपिरस भीरुदूत चोबि फनू साख बोमंदे देवता बड़ा हश्ती गंगा पात्र पचंडे को देवता अरे आवजी अगवान बोलिजे। पैलि धरती की आकास।  पैलि स्त्री की पुरुष। पैलि रात की दिन। पैलि गुरु की चेला। पैलि धूत की सिक। पैलि माई की पूत। कौन नाम असगर  लिन्या कौन नाम फसगर लिन्या II ईश्वरोवाच II परथमे धरती पीछे आकास II परथमे स्त्री पीछे पुरुष।  पैले रात पीची दिन।  पैले गुरु पीछे चेला।  पैले सिक पीछे धूत। पैले माई पीछे पूत। अरे गुनिजनम महादेव जी ने असगर लिन्या विष्णु जी ने नारायण परखंड चढ़ाई तकस्य पुत्रगजाबलम IIअरे कुण्डली वसना IIपार्वत्युवाचII  अरे गुनीजनम गजाबलम गनारपति पुत्रंच आदि नामकंडीसणा सुरतनाम कुंडली वसना। सुनहो ब्रह्माजी  सदाशिव जटामुकुटम शारदाकामस टकीटिइक जहिरा का खंड ब्रह्माण्ड।  कहो गुनीजनम शारदा विचारम। सवता डीत पंत हो विष्णु। नव खंड ब्रह्माण्ड चार विचारम    बारा वाजी शारदा नौखंडम चैव II  ईश्वरोवाच II सुन रे वादी विवादी कहाँ बैठे तेरी अष्ट अंगुल आत्मा जीऊ।  आदि नवाति अनादि नवाति पनावति आसण तेरो कौन ठौऊ। कहाँ स्वर्ग इंद्र।  कहाँ पाताल वासुकी। कहाँ गुरु तुमारा II पार्वत्युवाच II अरे आवजी बुंदकार बसे बादी  बिबादी सुनकार बैठी मेरी आत्मा जिऊ। आदि नवाति पृथ्वी अनादि नवाति आसण आसण मेरो गुणठाऊं।  गुणठाई से प्रक्षत राजा इंद्र पातले जात बासुकी राज कहाँते। मनेच्छा काया निरंजन हमारी नाऊँ हम जल में प्रकट इष्ट घड़ी बिना जोड़ी बिना मढ़ी। फजरीमड़ी रा ली गो मां पू फु मे धे मि कौन उपाई। ईश्वरोवाच।  अरे गुनीजन बिन पौन हमारी मड़ी हु लि गो मेथरम समीजी स्यामी में धे गंगा जो पौन उपाई। पार्वत्युवाच।  कौन घट माता कौन घट पिता कौन घट बोलिजो छाजा  II जो दिन आफु शम्भु निरंजन उतपन तै दिन दुनिया मा क्या बाजन्ति बाजा  II ईश्वरोवाच  II अरे गुनीजनम घटमाता अनिलघट पिता अनिलघट बोलिजे छाजा।  जै दिन शंभु निरंजन उत्पन्न भयो तै दिन दुनिया त्रिभुवन में परथमे जियो बाजेत्र बजे।  अथ  चा चका चासणे लिख्यते। पार्वत्युवाच।  चह चह चह चस चस चस चस चासण बाजी सत्तगुरुजी ने उपाया ओंकार तुम कौन गुरु पढ़ाया।  तुमसे ज्ञान उपाऊँ रैदास किन मुख बोले चास। अरे गुनीजन ऊँकार मुष चास घासणी बाजी त्रि टि त्रि खटि भेण सुरत्य किरणि भानु मुख वा माता सुख बाजी चासणी।  चस मेरी गजामुखबाजन्ति बारामुखबाजन्ति बारबेलवाले।  चंद सूर्य दीपक बाजी वेद पुराण बाजे। जुग चार रात दिन दुई कथम बाजी धुरम कुरम पाताल बाजे श्रिष्टि संसार। चार खूंट बाजन्ति। चह चोद्ध् भुवन बाजन्ति धुरम तीन बार बाजन्ति।  गढ़ चावरंगी बाजन्ति। चह बाजन्ति मेरु मंडिल बावन बीर। चह चंदन को सारंग जमौली मरु तो मंदिरम सागरा सप्त द्वीप वसुंधरा।  चह कुरुक्षेत्र बाजन्ति।  चार जुग बाजन्ति। चह चौरासी लक्ष जीवन बाजन्ति चार वेद बाजन्ति कालदंडबाजन्ति। गजा शब्द बाजन्तिघटा घुंगरू नकतालु को धोका पीछे। चावर छत्रडंडक मण्डलु डांडी घोड़ा पीछे में अगवान दास आग.

समाप्त

सोमवार, 16 दिसंबर 2019

ढोल सागर का रहस्य (1)

                                           प्रस्तुतिकरण :    भीष्म कुकरेती

         मूल संकलन स्रोत्र : पंडित ब्रह्मा  नंद  थपलियाल, श्री बदरीकेद्दारेश्वर  प्रेस , पौड़ी , १९१३ में शुरू और १९३२ में जाकर प्रकाशित, 
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                    ( आभार स्व. अबोध बंधु बहुगुणा जन्होने इसे गाड म्यटेकी   गंगा में  आदि गद्य के नाम शे छापा, , स्व. केशव अनुरागी जिन्होंने ढोल सागर का महान संत  गोरख नाथ के  दार्शनिक सिधान्तों के आधार पर व्याख्या ही नही की अपितु ढोल सागर के कवित्व का संगीत लिपि भी प्रसारित की  , , स्व शिवा नन्द नौटियाल जिन्होंने ढोल सागर के कई छंद को गढ़वाल के नृत्य-गीत पुस्तक में सम्पूर्ण स्थान दिया, एवम   बरसुड़ी  के डा विष्णुदत्त कुकरेती एवम डा विजय दास ने ढोल सागर की व्याख्या की है )


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            श्रीगणेशाय   नम: I श्री ईश्वरायनम : i श्रीपारत्युवाच  i ऊँ झे माता पिता गुरुदेवता को आदेसं ऊँ धनेनी संगति वेदति वेदेतिगगन ग्रीतायुनि आरम्भे कथम ढोलीढोल  की सीखा उच्चते i कथर बिरथा फलम फूलं सेमलं सावरीराखम   खड़कं   पृथ्वी की साखा कहाऊं पजी पृथ्वी कथभूता विष्णु जादीन कमल से उपजे ब्रमाजी तादिन कमल में चेतं विष्णु जब कमल से छूटे तबनहि  चेतं i ओंकार शब्द भये चेतं II  अथ ऊंकारशब्दलेखितम   II यदयाताभ्यां  मेते वरण गाद्यामह गिरिजामाप्रं आतेपरत्या हार करी तपस्या म्ये श्रिश्थी के रचते I सातद्वीप  नौखंडा i कौन कौन खंड i हरितखंड I भरतखंड २ भीम ० ३ कमल ४ काश्मीरी ० ५ वेद ० ६ देवा ० ७ हिरना ८ झिरना ० ९ नौखंड बोली जेरे आवजी अष्टपरबत बोली जेरे आवजी मेरु परबत I सुमेरु २ नील ० ३ हिम ४ हिंद्रागिरी ०५ आकाश ० ६ कविलाश ०७ गोबर्धन ०८ अष्टपरबत बोली जे गुनिजनम प्रिथी में उत्पति कौन कौन मंडल पृथ्वी ऊपरी वायुमंडल वायु मंडल ऊपरी तेजमंडल तेजमंडल ऊपरी मेघमंडल मेघमंडल ऊपरी गगनमंडल गगनमंडल ऊपरी   अग्निमंडल अग्निमंडल ऊपरी हीनमंडल  हीनमंडल ऊपरी सूर्य्यमंडल सूर्य्यमंडल ऊपरी चन्द्रमंडल I  तारामंडल I तारामंडल २ सिद्ध ० ३ बुद्ध ०४ कुबेर ०५ गगन ०६ भगति ० ७ ब्रम्हा ०८ विष्णु ०९ शिव ०१० निरंकारमंडल II  वैकुंटमंडल इतिपृथ्वी  की शाख बोलीजरे गुनी जनम बोल रे ढोली  कथम ढोल की शाखा I  उतब उतपति बोली जा रे आवजी I  इशवरोवाच I I  अरे आवजी कौन भूमि ते उत्पनलीन्यों  कौन भूमिते आई कौन भूमि तुमने गुरुमुख चेतीलीन्या कौन भूमिते तुम समाया I I पारव्त्युंवाच I I
अरे गुनीजन जलश्रमिते उत्पनलीन्या अर नभमिते आया अनुभुमिते गुरुमुख चेतीलीन्या सूं भूमितेसमाया I I  श्रीईश्वरीयउवाच I I  अरे आवजी कौन द्वीपते  ते उत्पन्न ढोल कौन उत्पन्नदमाम I   अरे आवजी कौन द्वीपते कनकथरहरीबाजी I I  कंहाँ की  चारकिरणे बावजी कौन द्वीपते मेंऊँ थरहरीबाजी कौन द्वीपते सिन्धुथरहरी बाजी कहाँ की चार चामणेबाजी  कहाँ की चार चरणेबाजी कहाँ की चारबेलवाल बाजी   I श्री पारबत्युवाच I I अरे आवजी ढोलं  द्वीपते उत्पन्न ढोलं  ददीद्वीपते उत्पन्न दमामं  कनक द्वीपते कनक थरहरी बाजी किरणो मंडचारचासणेलते चार किरणी  बाजे सिन्धुद्वीपते सिन्धु थरहरीवाजी नंदुथरहरीते सिंदुथरहरीवाजी चौदिशा की चार चामणे बाजी चारचासणे की चारचासणेबाजी की चार बेलवाले बाजी I श्री इश्वरीवाच  I I  अरे आवजी ढोल किले ढोल्य़ा   किले बटोल्य़ा किले ढोल गड़ायो किने  ढोल मुडाया , कीने ढोल ऊपरी कंदोटी चढाया अरेगुनी जनं ढोलइश्वर ने ढोल्य़ा पारबती ने बटोल्या विष्णु नारायण जी गड़ाया चारेजुग ढोल मुडाया ब्रह्मा जी ढोलउपरी कंदोटी चढाया I श्री इश्वरोवाच I I अरे आवजी कहो ढोलीढोल  का मूलं कहाँ ढोली ढोल कको शाखा कहाँ ढोली ढोली का पेट कहाँ ढोली ढोल का आंखा II श्री पारबत्युवाच II  अरे आवजीउत्तर ढोलीढोल का मूलं पश्चिम ढोली ढोल का शाखा दक्षिण ढोल ढोली का पेट पूरब ढोल ढोली का आंखा I  श्री इश्वरोवाच II अरे आवजी कस्य पुत्रं भवेढोलम  कस्य पुत्र च ड़ोरिका कस्यपुत्रं भवेनादम कस्यपुत्रं गजाबलम
 ii श्री पारबत्युवाच II  अरे आवजी ईश्वरपुत्रभवेढोलं ब्रह्मा पुत्र चंडोरिका पौनपुत्र भवेनाद  भीमपुत्रं गजाबल  ii श्री इश्वरोवाच II  अरे आवजी क्स्य्पुत्रभवेढोल कस्य पुत्र च ड़ोरिका कस्यपुत्रभवेपूड़मकस्यपुत्रं  कंदोंटिका कस्य पुत्र कुंडलिका कस्य पुत्र च कसणिका   शब्द ध्वनीकस्यपुत्र  चं कस्यपुत्र गजाबलम   ii श्री पारबत्युवाच II  अरे गुनीजनम आपपुत्र भवे ढोलम ब्रह्मा पुत्र च ड़ोरिका विष्णु पुत्रं  भवे पूडम कुंडली नाग पुत्र च कुरूम  पुत्र कन्दोटिका गुनी जन पुत्रं च कसणिका शब्दध्वनिआरम्भपुत्रं च भीम पुत्रं च गजाबल  ii श्री इश्वरोवाच II  अरे ढोलीढोल का वारा सरनामवेलीज्ये अरे गुनी जन श्रीवेद I सत २ पासमतों ३ गणेस ४ रणका  ५ छणक ६  बेचीं ७ गोपी ८ गोपाल ९ दुर्गा १० सरस्वती ११ जगती १२ इतिवारा शर को ढोल बोली जारे आवजी ii श्री इश्वरोवाच II  अरे आवजी कस्यपुत्रं भवेनादम  कस्यपुत्रं भवेडंवा कस्यपुत्रं कंदोटी कस्य पुत्रं जगतरां  ii  पारबत्युवाच II  अरे आवजी आपपुत्रं भवेनादं नाद्पुत्र च ऊंकारिका ऊंकारपुत्र भवे कंदोटिका कंदोटीपुत्रं जगतरा  ii श्री इश्वरोवाच II  अरे आवजी आण का कौन गुरु है I कौन है बैठक की माया लांकुडि का कौन गुरु है  i   कौन गुरु मुख तैने ढोल बजाया i पारबत्युवाच ii अरे गुनीजन आण का गुरु आरम्भ i धरती बैठकर की माया I लांकूडी का गुरु  हाथ है गुरुमुख मैंने शब्द बजाया ii श्री इश्वरोवाच II  अरे आवजी कौन तेरा मूलम कौन तेरी कला कौन गुरु चेला कौन शब्द ल़े फिरता हैं ह्दुनिया मिलाया I पारबत्युवाच II अरे आवजी मन मूल मूलं पौन कला शब्द गुरु सूरत चेला सिंहनाद शब्दली फिरा में दुनिया में लाया I ईश्वरोवाच II अरे आवजी कौन देश कौन ठाऊ कौन गिरी कौन गाऊं I पारबत्त्युवाच  II  अरे गुनी जन सरत बसंत देश धरती है मेरी गाँव अलेक को नगर ज्म्राज्पुरी बसन्ते गाँव I ईशव्रोवाच II  अरे आवजी तुम ढोल बजावो नौबत बाजि शब्द बजावो बहुत अनुपम कौन है शब्द का पेट कौन है शब्द का मुखम I पार्बत्यु वाच II  अरे गुनी जन मै श्री ढोल बजाया नौबत वाली शब्द बजाया बहू अनूप I  ज्ञान है शब्द का पेट बाहू है शब्द का मुखम II ईश्वरोवाच II  अरे आवजी कौन शब्द का रूपम I  कौन शब्द का है शाखा I शब्द का कौन विचार  I  शब्द का कौन आँखा I   शब्द का कौन मुख डिठ
I  टोई पूछ रे दास यो शब्द बजाई कहाँ जाई बैठाई I पार्बत्युवाच I I  अरे गुनी जन शब्द ईशरी रूपं च शब्द की सूरत शाखा I  शब्द को मुख विचारम शब्द का ज्ञान है आँखा शब्द का गुण है मुख डिठ टोई मैई कहूँ रे गुनी जन यो शब्द बजायी हिरदया जै बैठाई I ईश्वरोवाच I I अरे आवजी तू कौन राशि छयी I  कौन राशि तेरा ढोलं I  कसणि कौन राशि छ I कन्दोटि कौन राशि छ I  कौन राशि तेरो दैणा हाथ की ढोल की गजबलम I  पारबत्युवाच I I  अरे आवजी शारदा उतपति अक्षर प्रकाश I I  अ ई उ रि ल्रि ए औ ह य व त ल गं म ण न झ घ ढ ध  ज ब ग ड द क प श ष स इति अक्षर प्रकाशम I  इश्वरो वाच I I  अरे आवजी आवाज कौन रूपम च I कौन रूप च तेरी धिग धिग धिगी ढोलि तू कौन ठोंऊँ छयी कौन ठाउ च तेरी ढोल I  ईश्वरोवाच I I अरे गुनी जन अवाज मेघ रूपमच गगन रूपम च मेरी धिगधिगी ढोली मेई सिंघठाण छऊ गरुड़ ठाण च मेरी ढोल मारी तो नही मरे अण मरी तो मरी जाई I  बिन चड़कादिनी फिरां बिन दंताऊ अनोदिखाई इह्तो i मुह मरिये कथं रे आवजी I पारबत्यु वाच I  अरे आवजी ढोल का बारासर कौन कौन बेदंती I  प्रथम वेदणि कौन वेद्न्ति दूत्तिया वेद्न्ति कौन वेद्न्ति तृतिया ३   कौन चतुर्थी ४ पंचमी ५ षष्ठी ६ सप्तमी ७ अष्टमी ८ नवमे ९ दसम १० अग्यार वै वेदणि ११ बार वै वेदणि १२ I  ईश्वरोवाच I I अरे गुनीजन प्रथमे वेदणि ब्रह्मा वेद्न्ति ० द्वितीय ० विष्णु ० ५ त्रोतीय देवी ० चतुर्थ ० महिसुर ४ पंचमे ० पांच पंडव ५ ख्स्टमें  ०  चक्रपति  ६  सप्तमे वेदणि सम्बत धूनी बोलिज्ये ० ७ अष्टम अष्टकुली नाग ८ नवे ० नव दुर्गा वेद्न्ति ९ दसमें वेदणि देवी शक्ति वेद्न्ति I एकादसी वेदणि देवी कालिकाम वेद्न्ति बारों वेदणि देवी पारबती देवी II  इति पाराशर ढोल की वेदणि बोलिज्ये I  ईश्वरोवाच II अरे आवजी ढोल की क्रमणि का विचार बोलिज्ये I  प्रथमे कसणि चड़ायिते क्या बोलन्ती I  द्वितीये २ त्रितये ३ चतुर्थ ४ पंचमे ५ ख्ष्ट्मे ६ सप्तमे ७ अष्टमे ८ नवमी ९ दस्मे १० एकाद्से ११ द्वार्वे १२  i  पारबत्युवाच II  अरे आवजे प्रथमे कसणि चड़ाइते त्रिणि त्रिणि ता ता ता ठन ठन करती कहती दावन्ति ढोल उच्च्न्ते I  त्रितिये कसणि चड़ा चिड़ाइतो त्रि ति तो कनाथच त्रिणि  ता ता धी धिग ल़ा धी जल धिग ल़ा ता ता अनंता बजाई तो ठनकारंति खंती दावम ति ढोल उचते I चौथी कसणि चड़ाइत चौ माटिका चैव कहन्ति दागंति ढोल उचते I पंचमे कसणि चड़ इतों पांच पांडव बोलन्ति कहन्ति दावन्ति ढोल उचते   I  खषटमे कसणी चड़ायितो छयी चक्रपति बोलंती कहन्ति  दावन्ति  ढोल उचते I सप्तमे कसणी चड़ाइतो सप्त धुनी बोलिज्यौ कहन्ति गावन्ति ढोल उचते I अष्टमे कसणी चड़ाइता अष्टकुली नाग बोलन्ती क० ढो ० ढाल उचते I  नवमे कसणी चड़ाइतो निग्रह बोलन्ती क० ढा ० ढो ० उ ० I  दसमी कसणी चड़ाइतो दुर्गा बोलन्ती क ० दा  ०  ० ढो ० उ ० i  अग्यारे क ० च ० देवी कालिका बोलन्ती क ० दा  ०  ० ढो ० उ ० i  बारों देवी पारबती बोलंती क ० दा  ०  ० ढो ० उ ० i   इति बारो कसणे का विचार बोली जेरे गुनीजन II  अरे आवजी क्योंकर उठाई तो ढोल क्योंकरी बजाई तो ढोल फिरावती ढोलम क्योंकरी  सभा में रखी ढोलम I इश्वरो वाच Ii अरे गुनी जनम उंकार द्वापते उठाई तो ढोल सुख म बजाई तो ढोल I सरब गुण में फेरे तो ढोल लान्कुड़ी शब्द ते राखऊ सभा में ढोल I पारबत्यु वाच II प्रथमे अंगुळी कौन शब्द बाजन्ति I द्वितीये  अंगुळी कौन शब्द बाजन्ति I तृतीय अंगुळी कौन शब्द बाजन्ति I चतुर्थ अंगुळी कौन शब्द बाजन्ति I पंचम अंगुळी कौन शब्द बाजन्ति I I  इश्वरो वाच II  अरे आवजी प्रथमे अंगुळी में ब्रण बाजती I  दूसरी अंगुली मूल बाजन्ती I तीसरी अंगुली अबदी बाजंती I चतुर्थ अंगुली ठन ठन ठन करती I झपटि झपटि बाजि अंगुसटिका  I  धूम धाम बजे गजाबलम I  पारबत्यु वाच I  अरे आवजी दस दिसा को ढोल बजाई तो I पूरब तो खूंटम . दसतो त्रि भुवनं . नामाम गता नवधम  तवतम ता ता तानम तो ता ता दिनी ता दिगी ता धिग ता दिशा शब्दम प्रक्रित्रित्ता . पूरब दिसा को सुन्दरिका  I बार सुंदरी नाम ढोल बजायिते  I  उत्तर दिसा दिगनी ता ता ता नन्ता झे झे नन्ता उत्तर दिसा को सूत्रिका बीर उत्तर दिसा नमस्तुत्ये I इति उत्तर दिसा शब्द बजायिते I
           अग्न्या वायव्या नैरीत्मच ईशानछ तै माशी प्रतक विवाद शब्द दक्षिण दिशा प्रकीर्तित्ता I दक्षिण दिसा को वाकुली बीर वकुली नाम ढोल बजायिते I  दक्षिण दिसा नमोस्तुते I इति दक्षिण दिसा बजायिते I पश्चिम दिसा झे झे नन्ता ता ता नन्ता छ बजाइते पश्चिम दिसा प्रक्रीर्तता : II को झाड खंडी बीर झाड खंड नामा ढोल बजाइते पश्चिम दिस नमोस्तुते इति पश्चिम दिसा : II अथ बार बेला को ढोल बजाइता II  सिन्धु प्रातक रिदसम अहम गता जननी कं चैव  एवम प्रात काल ढोल बजाइते I प्रा प्रा प्रवादे चैत्र पुर कालं सवेर कं जननी क च व प्रराणी नाम ढोल बजाइते I मध्यानी मध्यम रूपम च सर्वरूपी परमेश्वर कं जननी कं चैत्र एवम मध्यानी ढोल बजाइते I  लंका अधि सुमेरु वा चैत्र रक्तपंचई शंकरो I  सूं होरे आवजी चाँद सूर्य्य  का  कहाँ निवासं कहाँ समागता सुण हो देवी पारबती I  इश्वरो वाच II  अरे आवजी चाँद सूर्य्य पूर्ब मसा सूर्य मंडल निगासा II सुमेरु पर्वत अस्त्नगता II इति बार्बेला को ढोल बजायते II  अथ चार युग को ढोल बजायते I  अरे आवजी

जारी 

गुरुवार, 8 अगस्त 2019

कुमांऊ के चंद वंश के राजा

                चंद वंश का संस्थापक कौन था इसको लेकर इतिहासकारों की राय अलग अलग है। कुमांऊ का इतिहास नामक पुस्तक के लेखक बद्रीदत्त पांडे ने अपनी किताब में कन्नौज के चंद वंश के राजकुमार सोमचंद को कुमांऊ में चंद वंश का संस्थापक माना है लेकिन कुछ अन्य इतिहासकार थोहरचंद को चंद वंश का संस्थापक मानते हैं। चंद वंश की स्थापना कब हुई इसको लेकर भी इतिहासकार एकमत नहीं हैं। श्री बद्रीदत्त पांडे ने सोमचंद का राज्यकाल 700 ईस्वी सन से 721 ईस्वी सन तक माना है मतलब उनके अनुसार चंदवंश की स्थापना 700 ईस्वी सन में हुई थी। कुमांऊ और गढ़वाल के इतिहास के जानकार एडविन थामस एटकिन्सन का मानना था कि चंद वंश की स्थापना सन 953 में हुई जबकि एक अन्य इतिहासकार डा. एम पी जोशी इसे सन 1250 मानते हैं। हम यहां पर श्री बद्रीदत्त पांडे की सूची के अनुसार आपको कुमांऊ के चंद वंश के राजाओं की जानकारी देंगे।

1.             सोमचंद          700—721

             कहा जाता है राजकुमार सोमचंद अपने 27 साथियों के साथ भगवान बद्रीनाथ के दर्शन के लिये आये थे। तब उनका कुमांऊ के कत्यूरी शासक ब्रह्मदेव से संपर्क हुआ और उन्होंने राजकुमार के चाल चलन और रहन सहन से प्रभावित होकर अपनी एकमात्र पुत्री का विवाह सोमचंद से कर दिया। उन्होंने सोमचंद को 15 बीघा जमीन दहेज में दी थी। राजा सोमचंद ने चंपावत में अपना किला बनवाया जिसका नाम 'राजबुंगा' रखा। सोमचंद ने वहां अपना राज्य स्थापित किया तथा चंपावत को अपनी राजधानी बनाया। इनके चार फौजदार या किलेदार थे जिन्हें चार आलों के नाम से जाना जाता था। ये फौजदार थे —कार्की, बोरा, तड़ागी और चौधरी। आपस में लड़ने वाले विभिन्न क्षेत्रीय सरदारों पर जीत दर्ज की। महर और फरत्याल वर्गों की शुरुआत राजा सोमचंद के काल में ही हुई थी।



2.   आत्मचंद        721—740

3.   पूरणचंद                   740-758

4.   इंद्र चंद                     758-778  इस राजा ने कुमांऊ में पहली बार रेशम का कारखाना खोला था।

5.   संसार चंद      778-813     

6.   सुधा चंद       813-833

7.   हमीर चंद उर्फ हरिचंद  833-856

8.   बीणाचंद                   856-869

               राजा बीणाचंद भोग विलास में लीन रहे। इसका फायदा उठाकर खस राजाओं ने कुमांऊ पर अपना आधिपत्य जमा दिया। खस राजाओं ने अपना राष्ट्रीय झंडा फहराया। कन्नौज और झूंसी से आये 'विदेशी राजा और उसके कर्मचारियों' को बाहर भगाने के लिये कहा। खस राजाओं ने लगभग 200 वर्षों तक कुमांऊ पर राज किया। खस राजाओं के बारे में कहा जाता है कि लोकप्रिय नहीं थे लेकिन कुछ शिलालेखों से पता चलता है कि इस दौरान कई मंदिरों का जीर्णोद्धार किया गया। बद्रीदत्त पांडे के अनुसार खस राजाओं के अजीब नाम थे जैसे बिजड़, जीजड़, जड़, कालू, कलसू, जाहल, मूल, गुणा, पीड़ा, नागू, भागू, जयपाल, सौपाल या सोनपाल, इंद्र या इमि।

9.   वीर चंद         1065-1080  कहते हैं कि खसों के शासन के दौरान चंद वंश के राजपूत तराई भाबर चले गये थे। बाद में खसों से परेशान होकर जनता ने तराई से चंद वंश के एक राजकुमार वीरचंद को गद्दी पर बिठाया था। उसने चंपावत पर आक्रमण करके राजा सोनपाल को मारकर फरि से चंदवंश की स्थापना की थी।

10.                रूप चंद         1080-1093 

11.                लक्ष्मी चंद      1093-1113 

12.                धरम चंद       1113-1121 

13.                करम चंद या कूर्म चंद  1121-1140 

14.                कल्याण चंद या बल्लाल चंद    1140-1149 

15.                नामी चंद निर्भय चंद   1149-1170

16.                नर चंद                   1170-1177

17.                नानकी चंद     1177-1195 

18.                राम चंद        1195-1205 

19.                भीषम चंद      1205-1226 

20.                मेघ चंद        1226-1233 

21.                ध्यान चंद      1233-1251 

22.                पर्वत चंद       1251-1261 

23.                थोहर चंद       1261-1275 

24.                कल्याण चंद द्वितीय  1275-1296 

25.                त्रिलोक चंद    1296-1303  छखाता राज्य पर कब्ज़ा किया। भीमताल में किले का निर्माण किया।

26.                डमरू चंद       1303-1321 

27.                धर्म चंद        1321-1344 

28.                अभय चंद      1344-1374 

29.                गरुड़ ज्ञान चंद 1374-1419  भाभर तथा तराई पर अधिकार स्थापित किया। कहते हैं कि बादशाह तुगलक ने इन्हें 'गरुड़' की उपाधि दी थी। इनका सेनापति नीलू कठायत काफी वीर और साहसी था।  कहते हैं कि राजा ने धोखे से अपने सेनापति को मरवाया था।

30.                हरि चंद         1419 -1420

31.                उद्यान चंद    1420-1421  राजधानी चम्पावत में बालेश्वर मन्दिर की नींव रखी। एक साल की मालगुजारी माफ करवायी। चौगर्खा पर कब्जा किया। इनका राज्य उत्तर में सरयू से लेकर दक्षिण में तराई तक तथा पूर्व में काली से लेकर पश्चिम में सुंवाल तक फैला था।

32.                आत्म चंद द्वितीय     1421-1422 

33.                हरी चंद द्वितीय        1422-1423 

34.                विक्रम चंद     1423-1437  बालेश्वर मन्दिर का निर्माण पूर्ण किया। लेकिन बाद में भोग विलास में लीन हो गये।

35.                भारती चंद 1437-1450  डोटी राजा विक्रमचंद को अपनी भोग विलासिता के कारण राजकाज छोड़कर भागना पड़ा था। उनकी जगह उनके भतीजे भारतीचंद राजा बने जो लोकप्रिय, साहसी और चरित्रवान राजा थे। अपने पुत्र कुंवर रत्नचंद की मदद से डोटी राजाओं को परास्त किया। भारती चंद ने अपने जीवित रहते ही 1450 में अपने बेटे रत्नचंद को राजकाज सौंप दिया था। राजा भारती चंद का 1461 में निधन हुआ।

36.                रत्न चंद        1450-1488  बेहद प्रतापी राजा जिनके शासनकाल में कुमांऊ के राजाओं का प्रभाव बढ़ा। जागीश्वर मंदिर में बड़ा भंडारा करवाया था। अपने पिता राजा भारती चंद के निधन के बाद डोटी से दोबारा युद्ध करके उन्हें पराजित किया। बम राजाओं को हराकर सोर को अपने राज्य में मिलाया।

37.                कीर्ति चंद      1488-1503  अपने पिता की तरह वीर और निडर थे। बारामंडल पर विजय प्राप्त की। कैड़ारो—बौरारो को चंद राज्य में मिलाया। पाली और फल्दकोट पर भी विजय पताका फहरायी। पौराणिक बृद्धकेदार का निर्माण सम्पन्न किया तथा सोमनाथेश्वर महादेव का पुनर्निर्माण किया।

38.                प्रताप चंद      1503-1517 

39.                तारा चंद        1517-1533 

40.                माणिक चंद    1533-1542 

41.                कल्याण चंद तृतीय     1542-1551 

42.                पूर्ण चंद        1551-1555 

43.                भीष्म चंद      1555-1560  चम्पावत से राजधानी खगमराकोट में बसायी। आलमनगर की नींव रखी। इस राजा को खस जाति के सरदार श्रीगजुवाठिंगा ने सोते समय मार डाला था।

44.                बालो कल्याण चंद      1560-1568  श्रीगजुवाठिंगा को हराकर बारामण्डल पर फिर से कब्ज़ा किया। राजधानी खगमराकोट से आलमनगर में बसायी जिसका नाम अल्मोड़ा रखा। गंगोली के मणकोटि राजा और दानपुर के छोटे छोटे खस राजाओं को हराकर उन्हें अपने राज्य में मिलाया।

45.                रुद्र चंद         1568-1597  चंद राजाओं में सबसे अधिक विद्धान, शिक्षाप्रेमी, प्रतापी, शूरवीर और दानी राजा। काठ एवं गोला यानि शाहजहांपुर के नवाब हुसैनखां टुकड़िया ने तराई पर कब्जा कर दिया था। राजा रुद्रचंद ने हुसैन खां के निधन के बाद तराई पर फिर से कब्जा किया। रुद्रपुर नगर की स्थापना की तथा वहां महल और किला बनवाया। अस्कोट, दारमा, जोहार और सीरा पर कब्जा किया। कुमांऊ में संस्कृत भाषा के प्रचार प्रसार में महत्वपूर्ण भूमिका निभायी।

46.                लक्ष्मी चंद      1597-1621  राजा रुद्रचंद के बड़े पुत्र शक्तिसिंह अंधे थे इसलिए उनके छोटे बेटे लक्ष्मीचंद ने अपने पिता के निधन के बाद राजकाज संभाला। अल्मोड़ा में लक्ष्मेश्वर और बागेश्वर में बागनाथ मंदिर की स्थापना की। सात बार गढ़वाल पर चढ़ाई की लेकिन हर बार उन्हें हार मिली। एक बार बादशाह जहांगीर के दरबार में भी गये थे।

47.                दिलीप चंद     1621-1624 

48.                विजय चंद     1624-1625 

49.                त्रिमल चंद     1625-1638  राजा लक्ष्मीचंद के चार बेटे थे —दिलीपचंद, त्रिमलचंद, नारायण चंद और नीला गुंसाई। दिलीपचंद ने केवल तीन साल राज किया। उनके पुत्र विजयचंद केवल एक साल राज कर पाये। उनके चाचा त्रिमलचंद उन्हें शासन से हटाकर खुद राजा बन गये थे। राजा विजयचंद ने रसोई दरोगा और राजचेलियों ने मिलकर मारा था इसलिए राजा त्रिमलचंद ने रसोई और राजचेलियों के लिये खास नियम बनवाये थे।

50.                बाज़ बहादुर चंद                   1638-1678  एटकिन्सन के अनुसार दिल्ली के बादशाह यानि औरंगजेब को खुश करने के लिये राजा बाजबहापुरचंद ने कुमांऊ से जजिया भी वसूल किया था और उसे दिल्ली भेजा था। इसके हालांकि कोई प्रमाण नहीं हैं। गढ़वाल के बधानगढ़ और लोहबागढ़ पर चढ़ाई की। तिब्बत पर भी आक्रमण किया। बाजपुर नगर की स्थापना की।

51.                उद्योत चंद    1678-1698  बधानगढ़ पर चढ़ाई की। चार मंदिरों उद्योतचंदेश्वर, पार्वतीश्वर,त्रिपुरादेवी और विष्णुमंदिर का निर्माण करवाया। अल्मोड़ा में रंगमहल बनवाया।

52.                ज्ञान चंद       1698-1708 

53.                जगत चंद      1708-1720  धार्मिक प्रवृति के राजा थे। कहा जाता है कि राजा जगतचंद ने 1000 गायें दान की थी।

54.                देवी चंद        1720-1726  इस राजा के बारे में कहा जाता है कि वह अपने सलाहकारों की हाथों की कठपुतली थे और उन्होंने पिता द्वारा जमा किये गये धन को दान किया लेकिन इसमें से अधिकतर धन उनके दरबारी हड़प गये थे।

55.                अजीत चंद     1726-1729  राजा ज्ञानचंद की बेटी का लड़का जिसके पिता का नाम नरपतसिंह कठेड़िया था। गैड़ा बिष्टों ने राजा देवीचंद को मारकर अजीतचंद को गद्दी पर बिठाया था लेकिन वह कठपुतली राजा ही रहे। इस दौरान पूरनमल और वृद्ध पिता मानिकचंद गैड़ा बिष्ट ने राजकाज संभाला। उनके अन्यायपूर्ण राज्यकाल को कुमांऊ में 'गैड़ागर्दी' नाम से जाना जाता है।

56.                कल्याण चंद पंचम      1729-1747 गैंडागर्दी के दिनों में ही राजा अजीत सिंह की हत्या कर दी गयी थी। उनके स्थान पर राजा उद्योतचंद के छोटे बेटे कल्याणचंद को राजा बनाया गया जो पूर्व में अपने भाई के डर से डोटी में गरीबी में दिन बिता रहे थे। इस राजा ने पूरनमल और मानिकचंद गैड़ा के अत्याचारों से लोगों को मुक्ति दिलायी। इस राजा के बारे में कहा जाता है कि उन्होंने चंदवंश के कुंवर और रौतेलों को मारने का आदेश दिया था। इनके समय में रोहिला सरदार अली मोहम्मद खान ने कुमांऊ पर चढ़ाई करके विजय प्राप्त की थी लेकिन वे राजा से धन लेकर वापस लौट गये। रोहिलों ने दूसरी बार आक्रमण किया लेकिन वे पराजित हो गये।

57.                दीप चंद        1747-1777 कल्याचंद के निधन के बाद उनके बेटे दीपचंद ने छोटी अवस्था में राजकाज संभाला। पानीपत की तीसरे युद्ध में मराठों के खिलाफ रोहिल्लों का साथ दिया था। मिलनसार और दयालु प्रवृति के थे। इनके समय में कुमांऊ में सुख शांति रही। इनके राज्यकाल में शिवदेव जोशी का काफी प्रभाव था। राजा दीपचंद को षडयंत्र के तहत कैद किया गया जहां उनकी मौत हुई।

58.                मोहन चंद      1777-1779  गढ़वाल के राजा ललितशाह ने राजा मोहनचंद को पराजित करके अपने पुत्र प्रद्युम्नशाह को कुमांऊ की गद्दी सौंप दी थी जो प्रद्युम्नचंद के नाम से राजा बने।
59.                प्रद्युम्न शाह प्रद्युम्न चंद      1779 -1786  राजा ललितशाह की दूसरी रानी डोटियाली रानी से जन्में पुत्र। राजा ललितशाह का गढ़वाल लौटते समय बीमार होने से निधन हो गया था। गढ़वाल के राजा उनके बड़े पुत्र जयकृतशाह बने लेकिन उनकी अपने सौतेले भाई प्रद्युम्नशाह से नहीं बनी। जयकृतशाह के आकस्मिक निधन के बाद गढ़वाल लौटे जिसका फायदा उठाकर मोहन चंद ने फिर से कुमांऊ की सत्ता हासिल कर ली।

60.                मोहन चंद      1786-1788  दूसरी बार भी अधिक समय तक राजकाज नहीं चला सके। राजा मोहनचंद को मारकर चतुर राजनीतिज्ञ हर्षदेव जोशी ने राजा प्रद्युम्नशाह को फिर से गद्दी संभालने को कहा था। आखिर में उन्होंने राजा उद्योतचंद के रिश्तेदार शिवसिंह को शिवचंद नाम से राजा नियुक्त किया था। 

61.                शिव चंद        1788 कुछ महीनों तक ही राज कर पाये। नाममात्र के राजा। सारा राजकाज हर्षदेव जोशी देखते थे। कुंवर लालसिंह से पराजित होकर हर्षदेव जोशी के साथ गढ़वाल भाग गये थे।

62.                महेन्द्र चंद     1788-1790 मोहनचंद के पुत्र। इनके राज्यकाल में जोशियों को काफी परेशान किया गया।

चंदवंश का अंत 
         राजा दीपचंद के समय से ही क्षेत्र में अराजकता फैल गयी थी। इसके वंशजों के आपस में ही लड़ते रहने का फायदा गोरखाओं ने उठाया और अल्मोड़ा पर आधिपत्य किया जिसके साथ ही चंद वंश का भी अंत हो गया।


                                                              आपका धर्मेन्द्र पंत 

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